शिक्षा में जातिगत भेदभाव: BHU में दलित छात्र के साथ उत्पीड़न, SC आयोग की मदद से मिला हक

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क्या अब शिक्षा भी जातिवाद हो गयी हैं ? BHU में कुछ ऐसे ही मामले सामने आये है पहले एक शिक्षक द्वारा दलित छात्र पर सामासे फेंकने का मामला सामने आया और अब एक बार फिर दलित छात्र का उत्पीड़न हुआ हैं . जहाँ SC आयोग के दखल से उसे एडमिशन मिला .

BHU: शिक्षा के क्षेत्र में जातिवाद की समस्या अब चिंता का विषय बन गई है। बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (BHU) में हाल ही में एक दलित छात्र के साथ जातिगत भेदभाव और प्रशासनिक लापरवाही का मामला सामने आया है। इस घटना ने शिक्षा प्रणाली में जातिवाद की गहरी जड़ों को उजागर किया है। हाल के वर्षों में, BHU में जातिवाद के कई मामले सामने आ चुके हैं, जिनमें बीतें दिनों में एक शिक्षक द्वारा दलित छात्र पर सामासे फेंकने जैसे अपमानजनक व्यवहार की खबर भी शामिल हैं।

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दलित को M.com से निरस्त कर दिया

हाल ही में, बी.कॉम के छात्र निर्भयचंद अहिरवार के मामले में, विश्वविद्यालय प्रशासन की गलती के कारण उनके अंक और एम.कॉम में प्रवेश पर संकट खड़ा हो गया था। उन्हें बी.कॉम के एक पेपर का मूल्यांकन न होने के कारण साल भर की पढ़ाई दोहराने की सलाह दी गई और एम.कॉम में प्रवेश भी निरस्त कर दिया गया। जब उन्होंने राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग (NCSC) का सहारा लिया, तो उनकी मार्कशीट के अंक अपडेट किए गए और अंततः एम.कॉम में प्रवेश भी बहाल किया गया।

दलित का भविष्य को संकट में डाल दिया

छात्र निर्भयचंद अहिरवार ने अपनी बी.कॉम की सभी सेमेस्टर परीक्षाएं सफलतापूर्वक उत्तीर्ण की और CUET-PG परीक्षा भी पास की थी, जिससे वे एम.कॉम में प्रवेश लेना चाहते थे। लेकिन विश्वविद्यालय प्रशासन की गलती ने उनके भविष्य को संकट में डाल दिया। बी.कॉम के पहले सेमेस्टर के एक पेपर का मूल्यांकन विश्वविद्यालय ने नहीं किया, जिसके कारण उनकी मार्कशीट अधूरी रह गई। इस कारण उन्हें न केवल सालभर की पढ़ाई दोहराने (ईयरबैक) का सुझाव दिया गया, बल्कि 18 जुलाई 2024 को उनका एम.कॉम में प्रवेश भी निरस्त कर दिया गया।

राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग ने किया समाधान

इस समस्या ने न केवल उनकी शिक्षा की राह को बाधित किया, बल्कि प्रशासन की लापरवाही और अक्षम प्रबंधन को भी उजागर किया। इस मामले की गंभीरता को देखते हुए निर्भयचंद ने न्याय प्राप्त करने के लिए राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग (NCSC) और उच्च न्यायालय का सहारा लिया, जो अंततः उनके लिए समाधान का मार्ग प्रशस्त हुआ।

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क्या अब शिक्षा भी जातिवाद हो गयी हैं ?

इस घटना ने शिक्षा के क्षेत्र में जातिवाद और भेदभाव के गहरे मुद्दे को फिर से उकेरा है। विश्वविद्यालय प्रशासन की लापरवाही, शिकायतों की अनदेखी, और जातिगत भेदभाव की उपस्थिति ने यह स्पष्ट कर दिया है कि शिक्षा के क्षेत्र में समानता और न्याय की दिशा में अभी बहुत काम किया जाना बाकी है। यह स्थिति न केवल दलित छात्रों के लिए बल्कि पूरे समाज के लिए एक गंभीर चिंता का विषय है, जो यह दर्शाता है कि जातिवाद केवल सामाजिक और आर्थिक क्षेत्रों तक ही सीमित नहीं है, बल्कि शिक्षा के क्षेत्र में भी गहरे तरीके से व्याप्त है।

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