उत्तर प्रदेश का चुनाव

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कल से उत्तर प्रदेश के चुनावों का बिगुल बज चुका है। प्रधानमंत्री ने कल से चुनाव की कमान संभाल ली है। हालांकि उन्होंने कहा था उत्तर प्रदेश के चुनाव में उनकी फोटो या नाम का प्रयोग विधानसभा चुनाव के अंदर नहीं होगा। लेकिन हम देखते हैं कि मोदीजी और योगीजी दोनों के फोटो एक ही होर्डिंग्स पर नजर आ रहे हैं। दूसरा उन्होंने जो कोराना के दौरान हुई बदइंतजामी को ढकने के लिए खूब झूठ बोला। प्रधानमंत्री की यही कला है, इसी के लिए जाने जाते हैं कि वो झूठ भी इतनी खूबसूरती से बोलते हैं कि एक बार तो सच भी उनके सामने लज्जित हो जाए। गंगा में तैरती लाशों व कब्र में दबाने पडे हिंदूओं का कोई जिक्र तक नहीं किया जिस के लिए मई में मगरमच्छ के आंसू बहा रहे थे। उन्ही के सांसद क्षेत्र में ऐसे स्वागत हो रहा था जैसे ट्रंप का गुजरात में हुआ था।

वहां तो गरीबी को ढंकने के लिए दीवारों को चुनवाया गया था। यहां पर सफेद रंग के पर्दे लगाए गए ताकि पता न चलें कि कोई विकास नहीं हुआ। साम – दाम- दंड – भेद के अस्त्र-शस्त्र के साथ अपनी अक्षौहिणी सेना को लेकर बंगाल की हार के बाद सभी भाजपाई योद्धाओं ने अपने खेम उत्तर प्रदेश में ठोंक दिये हैं। भाजपा के साम्राज्यवादी रथ ने उत्तर प्रदेश की ओर कूच कर दिया है।

सरकार भाजपा की ही बनेगी चाहे अपने बलबूते या छोटी पार्टी और बीएसपी के माध्यम से। जनता के पास कोई विकल्प नहीं छोड़ा गया है। उनके दिन नहीं फिरने वाले। उन्होंने वोट करनी है और वहीं सत्ता का विभित्स और घिनौना रूप ही देखना है जो अब तक देखते आए हैं। बहनजी के लिए चुनौती सपा से है भाजपा से नहीं इसलिए भाजपा का खुला विरोध उनके समर्थन में वोट नहीं ला सकता परंतु सपा की सीटें ही बढ़ाएगा। बहनजी भाजपा का मुखर विरोध कभी नहीं करेगी। बल्कि कांग्रेस और सपा के खिलाफ ही ताल ठोंकेगी। वो नहीं चाहती है कि दोबारा सपा सत्ता में आए क्योंकि उन्हें पता है उनकी सीटे और वोट बैंक कही नहीं खिसक सकता। वो चाहेगी की बिना उनके समर्थन के यूपी में सरकार न बने। उन्होंने भी सत्ता सुख भोगे एक दशक हो जाएगा इसलिए सत्ता की आवश्यकता उन्हें है।

अपने बलबूते पर सत्ता नहीं मिल सकती तो गठबंधन के जरिए ही सही परंतु यह गठबंधन चुनाव के बाद इसलिए होगा ताकि वो अपनी ताकत को परख सकें और समय आने पर ही अपने पत्ते खोले। पहले किया गया गठबंधन उनके मनसूबो पर पानी फेर सकता है। वे चुप – चाप अपने मिशन में लगे रहना है ईडी- सीबीआई आदि की कार्रवाई से भी उनको बचना हैं। जहां उद्देश्य इतने सारे हो तो हर कदम फूंक फूंक कर ही रखना पड़ेगा। आज की राजनीति सीधी-सादी व सरल नहीं है जिसे कोई भी सामान्य व्यक्ति एक झटके में समझ सकें बल्कि यह कहना चाहिए बडे-बडे दिग्गज भी यह नहीं बता सकते कि ऊंट किस करवट बैठेगा। अभी तो यह देखना शेष है कि चुनाव में कितनी हिंसा होती है और धन- बल- छल- कपट का खेल कैसे खेला जाता है। हर कोई कयास लगा रहा है कि प्रशांत किशोर क्या रणनीति अपनाते हैं उन्होंने जो कांग्रेसी आलाकमान से जो बातचीत की है उसका क्या नतीजा निकलेगा? हर सवाल का जवाब भविष्य के गर्भ में है। हमें तो तेल देखना है और तेल की धार देखनी है।

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