बीते कुछ वर्षों में देश भर में दलितों और आदिवासियों के ऊपर हमलों में इज़ाफ़ा देखा गया है या यूं कहें कि जबरदस्त बढ़ोतरी हुई है,आए दिन किसी न किसी राज्य से हमले की खबर आती रहती है
बीते दिनों मामला मध्यप्रदेश के ग्वालियर का आया जहां एक आदिवासी महिला को ज़िंदा जलाया गया जिसकी हालात गंभीर बनी हुई है इससे पहले राजस्थान में जितेंद्र मेघवाल की हत्या की ख़बर आयी।
प्रशासन का रवैया है जिम्मेदार:- ऐसे कई मामलें दे देखा गया है कि स्थानीय प्रशासन दलितों आदिवासियों के मामले को गंभीरता से नहीं लेता है, आना कानी करता है जिससे अपराधियों के हौसले बुलंद होते हैं जैसे हाथरस का मामला।
सरकारों की उदासीनता:-राज्य सरकारों का भी गंभीर ना होना एक मुख्य कारण है,जब अत्याचार के मामलें सामने आते हैं उसी वक़्त अगर कठोर कार्यवाही की जाए तो दलितों और आदिवासियों के ऊपर हमलों में निश्चित कमी देखी जा सकती है,जितेंद्र मेघवाल के मामलें में यह साफ़ तौर पर दिखा
सवर्ण मानसिकता :- इस मानसिकता के लोग आज भी वैदिक काल में जीते हैं जहाँ ब्रम्हा के मुख वाला कॉन्सेप्ट (concept) है ये लोग स्वघोषित दंडाधिकारी के भूमिका में रहते हैं, यह तय करते हैं कि दलित शादि के वक़्त घोड़ी पर नहीं चढ़ेगा,दलित मूछ नहीं रखेगा, दलित जमीन पर बैठेगा इत्यादि
संविधान है ताकत:- बाबा साहब का संविधान आज अगर ना होता तो दलित समाज का जीना मुश्किल हो जाता वो तो संविधान की ताकत है कि सभी को एक समान बनाया ऊंच नीच का भेदभाव ख़त्म किया और ब्राह्मणवादियों को यही बात सबसे बुरी लगती है वे बराबरी में नहीं गैर बराबरी में विश्वास रखते हैं।
देश में जहां जहां भाजपा की सरकारें हैं वहां यह हमला सबसे ज्यादा है मसलन भाजपा आरएसएस का एजेंडा ही है ब्राह्मण वाद को बढ़ावा देना और दलित आदिवासियों का उत्पीड़न करना।
क्या है समाधान:-आज अगर दलितों -आदिवासियों पर हो रहे हमलों को रोकना है तो लड़ाई सड़क पर लड़नी होगी,तभी जाकर मामलों में कमी देखी जा सकती है वर्ना सरकार और सवर्ण मानसिकता के लोग आए दिन दलित-आदिवासियों को रौंदते रहेंगे,फास्टट्रैक कोर्ट में मुकदमें को चलाना होगा और अपराधियों को सजा दिलवाना होगा, तभी एक सभ्य समाज का निर्माण हो सकेगा जहां कोई ऊंच नीच नहीं बल्कि सब बराबर होंगे जो संविधान की मूल भावना भी है लेकिन यह दुर्भाग्य है इस देश का कि देश भौतिक रूप से आज़ाद तो हो गया लेकिन मानसिक गुलामी की आज़ादी अभी बाकी है जो सिर्फ़ और सिर्फ़ भारत का संविधान ही दिला सकता है।
Shivam kumar
Law Student , Kurukshetra University Kurukshetra