क्या है BT एक्ट 1949 जिसके खिलाफ बोधगया में 18 दिनों से आंदोलन कर रहे हैं बौद्ध भिक्षु ?

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बोधगया: जिस बोधगया में तथागत बुद्ध को ज्ञान की प्राप्ति हुई वहीं पिछले 18 दिनों से बौद्ध भिक्षु तथागत बुद्ध के ब्राह्मणीकरण के विरोध में अनशन पर बैठे हैं। ये अनशन बिहार के महाबोधि महाविहार की ट्रस्ट कमेटी में ब्राह्मणों की दखल अंदाज़ी और महाबोधि महाविहार को ब्राह्मणों से मुक्त करवाने के लिए किया जा रहा है। बताते चलें कि बौद्ध भिक्षु इस आंदोलन के द्वारा BT ACT 1949 यानी बौद्धगया मंदिर एक्ट 1949 को रद्द कर महाविहार का पूरा प्रबंधन बौद्ध समाज को सौंपने की मांग कर रहे है। वर्तमान में यहां प्रबंधन (BTMC:Bodhgaya Temple Management Committee) में ब्राह्मण और बौद्ध दोनों है।

 

BT एक्ट को रद्द करें:

बौद्ध भिक्षुओं द्वारा यह आरोप लगाया जाता है कि यहां ब्राह्मणों द्वारा उन बौद्धों को ही प्रबंधन में रखा जाता है जो उनकी हां में हां मिलाते हैं। बौद्ध समाज का कहना है कि बोधगया मंदिर अधिनियम, 1949 (BT Act 1949) पूर्ण रूप से असंवैधानिक है। इसे रद्द किया जाना चाहिए। उनका कहना है कि यह कानून बौद्ध समुदाय के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है। महाबोधि मंदिर का प्रबंधन पूरी तरह से बौद्ध समुदाय को सौंपा जाना चाहिए।

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इस आंदोलन को न केवल देश में बल्कि विदेशों से भी समर्थन मिल रहा है। भारत के अनेक राज्यों में आंदोलन के समर्थन में डीएम को ज्ञापन सौंपे जा रहे हैं। महाराष्ट्र में भीम आर्मी द्वारा प्रदर्शन किया गया। तो वहीं मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में बौद्ध भिक्षुओं के समर्थन में मूक यात्रा निकाली गयी।

 

बुद्ध को विष्णु का अवतार बताते हैं :

अनशन पर बैठे बौद्ध भिक्षुओं के मुताबिक बीटी एक्ट 1949 के कारण बौद्ध भिक्षुओं के अधिकारों का हनन हो रहा है। BT एक्ट के तहत बीटीएमसी (BTMC) बनाई गई है। जिसके मुताबिक बोधगया मंदिर के संरक्षण के लिए 9 लोगों की कमेटी बनाई जाती है। इन 9 लोगों की कमेटी में 4 बौद्ध भिक्षु, 4 गैर- बौद्ध भिक्षु (अधिकतर ब्राह्मण) और एक कलेक्टर रखा जाता है। कमेटी में सिर्फ ब्राह्मणों की ही चलती है। जो बौद्ध भिक्षु होते हैं वो देश के दूसरे कोने से बनाए जाते हैं। जब मीटिंग करनी होती है या मंदिर के लिए कोई फैसला लेना होता है तो उन्हें बुलाया जाता है। वह आकर चले जाते हैं और फिर पूरे महाबोधि महाविहार पर ब्राह्मणों का कब्जा हो जाता है। यही नहीं भिक्षुओं ने यह भी आरोप लगाया है कि गैर- बौद्ध भिक्षु बुद्ध को विष्णु का अवतार बताते हैं, महाबोधि विहार को शिवालय बताते हैं।

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महाबोधि महाविहार की मुक्ति के लिए पहले भी हो चुके हैं आंदोलन:

बताते चलें कि महाबोधि महाविहार की मुक्ति के लिए पहले भी आंदोलन हो चुके हैं। 1995 में भी इसी तरह का एक आंदोलन किया गया था जो पूरे 86 दिनों तक चला था। जिसके बाद कमेटी में 4 बौद्ध भिक्षु रखे गए। इससे पहले बीटीएमसी कमेटी में कोई बौद्ध भिक्षु नहीं था। अनशन पर बैठे भिक्षुओं का कहना है कि BT Act 1949 संविधान की हत्या कर रहा है। यह एक काला कानून है। वह आगे कहते हैं कि जैसे जैन, सिख, लिंगायत, मुस्लिम अपने-अपने धार्मिक स्थानों का संचालन करते हैं वैसे ही बौद्ध स्थानों का संचालन बौद्ध भिक्षुओं के हाथों में होना चाहिए ना की किसी ब्राह्मण के हाथ में। 

 

 

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