अमित शाह के राज्यसभा में अंबेडकर पर दिए बयान, जिसमें उन्होंने कहा कि “आजकल अंबेडकर का नाम लेना फैशन बन गया है,” पर विपक्षी दलों ने कड़ा विरोध जताया। कांग्रेस, टीएमसी, शिवसेना (UBT) समेत विपक्ष ने इसे अंबेडकर और संविधान का अपमान बताया। मल्लिकार्जुन खड़गे ने शाह से माफी और इस्तीफे की मांग की, ममता बनर्जी ने इसे संविधान पर हमला कहा, जबकि उद्धव ठाकरे ने आरएसएस पर निशाना साधा। मायावती ने बीजेपी और कांग्रेस दोनों पर अंबेडकर के नाम का राजनीतिक इस्तेमाल करने का आरोप लगाया। राहुल गांधी ने इसे बीजेपी की संविधान-विरोधी मंशा का हिस्सा बताया। संसद के अंदर और बाहर जोरदार प्रदर्शन हुआ।
संसद के शीतकालीन सत्र में राज्यसभा में संविधान पर चर्चा के दौरान केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने जो बयान दिया, उसने विपक्ष को एकजुट होकर सरकार पर हमला करने का मौका दे दिया। शाह ने कहा, “आजकल बाबा साहेब अंबेडकर का नाम लेना एक फैशन बन गया है। हर बात में अंबेडकर-आंबेडकर-आंबेडकर लिया जाता है। इतना नाम अगर भगवान का लेते तो स्वर्ग मिल जाता।” इस बयान के बाद कांग्रेस, टीएमसी, शिवसेना (UBT), और अन्य विपक्षी दलों ने अमित शाह और बीजेपी पर तीखे हमले शुरू कर दिए। विपक्ष ने इस टिप्पणी को न केवल अंबेडकर का अपमान बताया, बल्कि इसे संविधान और देश के दलित समुदाय के लिए अपमानजनक करार दिया।
खड़गे ने किया इस्तीफे की मांग
राज्यसभा में नेता प्रतिपक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने अमित शाह के बयान को अस्वीकार्य बताते हुए माफी और इस्तीफे की मांग की। खड़गे ने कहा, “यह बयान संविधान के प्रति सरकार की नकारात्मक सोच को उजागर करता है। बाबा साहेब का नाम फैशन नहीं, करोड़ों दलितों और पिछड़ों के लिए प्रेरणा है। अमित शाह को तुरंत अपने शब्दों को वापस लेना चाहिए और माफी मांगनी चाहिए।”
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ममता बनर्जी का पलटवार: संविधान का अपमान
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने अमित शाह की टिप्पणी को संविधान और उसके निर्माताओं का अपमान करार दिया। उन्होंने कहा, “यह केवल बाबा साहेब का नहीं, बल्कि संविधान की ड्राफ्टिंग कमेटी के हर सदस्य का अपमान है। अंबेडकर के विचार न केवल दलितों बल्कि हर भारतीय के मार्गदर्शक हैं। यह बयान संविधान पर सीधा हमला है।” ममता बनर्जी ने बीजेपी की विचारधारा पर भी निशाना साधते हुए कहा कि यह पार्टी संविधान के आदर्शों से पूरी तरह अलग दिशा में काम कर रही है।
उद्धव ठाकरे ने साधा आरएसएस पर निशाना
महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री और शिवसेना (UBT) प्रमुख उद्धव ठाकरे ने कहा, “अमित शाह का बयान बीजेपी और आरएसएस के वास्तविक एजेंडे को दर्शाता है। आरएसएस हमेशा से ही संविधान को बदलने का प्रयास करता रहा है, और अमित शाह ने इस बयान से उनकी मंशा उजागर कर दी है।” ठाकरे ने कहा कि बीजेपी के शीर्ष नेता बिना आरएसएस के समर्थन के ऐसा बयान देने की हिम्मत नहीं कर सकते। उन्होंने पीएम मोदी से मांग की कि अमित शाह के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाए।
मायावती का बयान: दोनों पार्टियों पर हमला
बसपा प्रमुख मायावती ने भी इस विवाद में अपनी बात रखते हुए कहा कि बीजेपी और कांग्रेस दोनों पार्टियां बाबा साहेब अंबेडकर के नाम का राजनीतिक फायदा उठाने में लगी हैं। मायावती ने कहा, “बीजेपी और कांग्रेस बाबा साहेब का नाम अपनी-अपनी राजनीति चमकाने के लिए लेती हैं। बाबा साहेब ने दलितों और पिछड़ों को जो कानूनी अधिकार दिए हैं, वही हमारे लिए सबसे बड़ा स्वर्ग है। बीजेपी और कांग्रेस को बाबा साहेब की आड़ में राजनीति करना बंद करना चाहिए।”
राहुल गांधी का तीखा हमला
कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने कहा, “अमित शाह का बयान संविधान और बाबा साहेब अंबेडकर के खिलाफ बीजेपी की मंशा को दर्शाता है। बीजेपी शुरू से ही संविधान बदलने की बात करती रही है। यह बयान उनके असली चेहरे को उजागर करता है। बाबा साहेब ने इस देश के लिए जो किया, उसे हर भारतीय जानता है, लेकिन बीजेपी और आरएसएस की सोच हमेशा संविधान और दलित हितों के खिलाफ रही है।”
बीजेपी के खिलाफ संसद में प्रदर्शन
अमित शाह के बयान के बाद विपक्षी दलों ने संसद के अंदर और बाहर जमकर प्रदर्शन किया। कांग्रेस, टीएमसी, शिवसेना और अन्य दलों ने बीजेपी पर अंबेडकर और उनके विचारों का अपमान करने का आरोप लगाते हुए विरोध जताया। प्रदर्शन के दौरान दलित समुदाय और संविधान के प्रति सरकार की नीतियों पर भी सवाल उठाए गए।
क्या कहता है अमित शाह का बयान?
अमित शाह का यह बयान उनके और बीजेपी के लिए बड़ा सियासी संकट बन गया है। विपक्ष इस बयान को लेकर आरएसएस की विचारधारा और बीजेपी की रणनीतियों को उजागर करने का प्रयास कर रहा है। हालांकि, सरकार की ओर से अब तक इस विवाद को शांत करने के लिए कोई ठोस बयान नहीं आया है।
संविधान और अंबेडकर पर विवाद क्यों?
अमित शाह का बयान उस सियासी ध्रुवीकरण की ओर इशारा करता है, जो बाबा साहेब अंबेडकर और संविधान को लेकर बीजेपी और विपक्षी दलों के बीच है। विपक्ष इसे दलितों और संविधान पर हमले के रूप में देखता है, जबकि बीजेपी इसे राजनीतिक आरोपों के रूप में खारिज करती है। यह विवाद न केवल संसद बल्कि देश के राजनीतिक और सामाजिक विमर्श में एक नई बहस को जन्म देता है।
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