भारतीय न्यायपालिका के सर्वोच्च पद पर आसीन होने के महज 5 दिन बाद चीफ जस्टिस बीआर गवई को उनकी जाति और दलित समाज से होने का अहसास करा दिया गया. 14 मई को बीआर गवई ने CJI के तौर पर शपथ ली और 18 मई को महाराष्ट्र-गोवा बार एसोसिएशन ने बीआर गवई के सम्मान में एक समारोह का आयोजन किया जिसमें CJI के लिए जो प्रोटोकॉल होता है उसकी अनदेखी की गई.
दरअसल, सीजेआई के रूप में नियुक्ति के बाद महाराष्ट्र-गोवा बार काउंसिल ने सम्मान समारोह आयोजित किया था। प्रोटोकॉल के अनुसार, कानून और न्याय विभाग के मुख्य सचिव और उप सचिव के साथ प्रोटोकॉल विभाग की अतिरिक्त मुख्य सचिव और मुख्य प्रोटोकॉल अधिकारी की उपस्थिति अनिवार्य थी। लेकिन महाराष्ट्र सरकार ने एक संविदा अधिकारी और किराए की मर्सिडीज-बेंज भेजकर प्रोटोकॉल का उल्लंघन किया। वहीं DGP संजय कुमार वर्मा और चीफ सेक्रेटरी सुजाता सौनिक नहीं आए. जिस पर बीआर गवई भी भड़क गए.
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उन्होंने महाराष्ट्र-गोवा बार काउंसिल के कार्यक्रम में गहरी नाराजगी जताई। सीजेआई ने कहा, ‘मैं ऐसे छोटे-मोटे मुद्दों पर बात नहीं करना चाहता, लेकिन मैं इस बात से निराश हूं कि महाराष्ट्र के बड़े अफसर प्रोटोकॉल का पालन नहीं करते।’ CJI ने भरे मंच से कहा, महाराष्ट्र राज्य का एक व्यक्ति चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया होते हुए पहली बार महाराष्ट्र आता है और ऐसे में महाराष्ट्र के चीफ सेक्रेटरी और DGP या पुलिस कमिश्नर को वहाँ जाने की जरूरत महसूस नहीं हो तो इस बारे में उन्हें सोचना चाहिए. इतना ही नहीं CJI ने आगे कहा कि, “मेरा मानना है कि लोकशाही के तीन स्तंभ होते है, न्यायपालिका, विधायिका और कार्यपालिका. यह तीनों समान हैं. ऐसे में तीनों को एक दूसरे का सम्मान करना चाहिए.
बता दें कि हाल ही 14 मई को बीआर गवई ने CJI के तौर पर शपथ ली थी. वह अगले छह महीने के लिए भारत के CJI यानी चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया बने हैं. वह भारत के दूसरे दलित और बहले बौद्ध CJI हैं. भारत के पहले बौद्ध CJI बनने पर बीआर गवई ने गर्व महसूस किया था साथ ही उन्होंने कहा था कि वह सर्व धर्म को मानने वाले है और किसी भी चीज़ से ऊपर भारत के संविधान को मानते हैं. वहीं महाराष्ट्र पहुंच कर CJI ने सबसे पहले चैत्य भूमि जाकर बाबा साहेब अंबेडकर को पुष्पांजलि अर्पित की थी.
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वहीं CJI बीआर गवई के प्रोटोकॉल में हुई इस अनदेखी पर लोगों ने कहा कि दलित कितनी भी उंची पोस्ट पर पहुंच जाए लेकिन उसकी जाति उसका पीछा नहीं छोड़ती. मनुवादी लोग आरक्षण को गाली देकर दलितों को कोसते हैं. आरक्षण खत्म करने की बात करते हैं लेकिन ऊंची पोस्ट पर पहुंचे दलित को उसकी जाति के आधार पर मापते हैं. इसलिए कहा जाता है कि जाति है कि जाति नहीं.