प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ डॉ. भीमराव अंबेडकर के विचारों की प्रशंसा करते हैं और दलितों के विकास के लिए प्रतिबद्धता का दावा करते हैं। लेकिन जमीनी हकीकत इसके बिल्कुल विपरीत है। उत्तर प्रदेश में दलितों को अपने संवैधानिक अधिकारों के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है। घुड़चढ़ी जैसी साधारण रस्म को भी जातिवादियों द्वारा रोका जा रहा है, और सरकार इन घटनाओं को रोकने में पूरी तरह विफल है। योगी सरकार के शासनकाल में दलित दूल्हों की घुड़चढ़ी रोकने की घटनाएं पढियें….
UP News: उत्तर प्रदेश में दलित समाज के खिलाफ हो रहे अत्याचारों की फेहरिस्त दिन-ब-दिन लंबी होती जा रही है। सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि इन घटनाओं का केंद्र समाज के सबसे सामान्य और सांस्कृतिक अधिकारों को लेकर है, जैसे शादी की रस्में। दलित दूल्हों की घुड़चढ़ी रोकने के मामले न केवल जातीय भेदभाव का प्रतीक हैं, बल्कि प्रशासनिक उदासीनता की कहानी भी बयां करते हैं। संविधान के समता, स्वतंत्रता और सम्मान के वादे को खुलेआम ठेंगा दिखाते हुए, ये घटनाएं यह साबित करती हैं कि जातीय मानसिकता आज भी हमारे समाज की गहरी सच्चाई है। ये घटनाएं जातीय मानसिकता, प्रशासनिक लापरवाही, और भाजपा सरकार के “सबका साथ, सबका विकास” नारे की सच्चाई को उजागर करती हैं। हाल ही में बुलंदशहर के जहांगीराबाद थाना क्षेत्र के गांव टिटौटा में एक दलित युवक, जो खुद यूपी पुलिस में सिपाही है, की घुड़चढ़ी को रोका गया और उसे दबंगों ने मारपीट व दुर्व्यवहार का शिकार बनाया।
बुलंदशहर: घुड़चढ़ी रोकने का ताजा मामला
उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर जिले के जहांगीराबाद थाना क्षेत्र के गांव टिटौटा में 11 दिसंबर को एक दलित पुलिसकर्मी रोबिन की शादी के दौरान घुड़चढ़ी रोकने का मामला सामने आया। रोबिन, जो यूपी पुलिस में सिपाही है, अपनी शादी की रस्म निभा रहा था। घुड़चढ़ी के दौरान जातिवादियों, जिनमें दिनेश, कलुआ, पुरुषोत्तम, मांगे और प्रमोद शामिल थे, ने उसे घोड़ी से नीचे खींच लिया और मारपीट शुरू कर दी। घटना के दौरान न केवल दूल्हे को अपमानित किया गया, बल्कि महिलाओं के साथ अभद्रता की गई और शादी के डीजे पर हमला कर उसे तोड़ दिया गया। आरोपियों ने जातिसूचक गालियां देते हुए धमकी दी कि “दलित को घोड़ी पर चढ़ने का अधिकार नहीं है।”
पुलिसकर्मी और बीएसएफ अधिकारी भी असुरक्षित
चौंकाने वाली बात यह है कि दूल्हे रोबिन और उनकी पत्नी, दोनों सरकारी सेवाओं में कार्यरत हैं—रोबिन यूपी पुलिस में सिपाही और उनकी पत्नी बीएसएफ में तैनात हैं। बावजूद इसके, उन्हें अपनी शादी की रस्म निभाने के लिए जातीय अपमान और हिंसा का सामना करना पड़ा। इसके अलावा इस घटना में दलित सिपाही की बारात को रोका जाना इस बात का प्रमाण है कि योगी-मोदी सरकार में जातीय भेदभाव अपने चरम पर है। पुलिसकर्मी युवक और उसके पिता, जो खुद भी पुलिस विभाग में कार्यरत हैं, के साथ इस तरह का बर्ताव दलित समाज की सुरक्षा पर सवाल खड़े करता है। अगर पुलिसकर्मी का परिवार ही सुरक्षित नहीं है, तो आम दलितों का क्या हाल होगा?
पुलिस कार्रवाई और प्रशासनिक उदासीनता
घटना के बाद पुलिस ने पांच आरोपियों को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया, लेकिन सवाल उठता है कि ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए क्या सरकार और प्रशासन गंभीर कदम उठा रहे हैं? क्या केवल गिरफ्तारियां समस्या का समाधान हैं, या जातीय मानसिकता को खत्म करने के लिए ठोस कदम उठाने की जरूरत है?
योगी सरकार के शासनकाल में दलित दूल्हों की घुड़चढ़ी रोकने की घटनाएं:
यह कोई पहली घटना नहीं है। उत्तर प्रदेश में दलित समाज के साथ जातीय भेदभाव और हिंसा की घटनाएं बहुत समय से सुर्खियों में हैं। पिछले कुछ वर्षों में, योगी आदित्यनाथ के शासनकाल में उत्तर प्रदेश में दलित दूल्हों को घोड़ी पर चढ़ने से रोकने के कई मामलों ने राज्य सरकार और प्रशासन की नाकामी को उजागर किया। दलितों के खिलाफ जातीय भेदभाव की घटनाओं में बढ़ोतरी हुई है, खासकर जब वे अपनी शादी में घुड़चढ़ी की परंपरा निभाने की कोशिश करते हैं। योगी सरकार के दौरान 2017 से अब तक कई मामले सामने आए, जब दलित दूल्हों को घोड़ी पर चढ़ने के कारण हिंसा का शिकार होना पड़ा।
2017 में दलित दूल्हे को घोड़ी पर चढ़ने से रोकने की घटना
बदायूं, 2017: बदायूं जिले के एक गाँव में दलित दूल्हे ने घुड़चढ़ी की रस्म पूरी करने के लिए घोड़ी पर चढ़ने का प्रयास किया, लेकिन ऊंची जाति के कुछ लोगों ने इसका विरोध किया। उन्होंने दूल्हे से कहा कि वह “उनके मोहल्ले से” नहीं गुजर सकता और घोड़ी पर चढ़ने का कोई अधिकार नहीं रखता। इस घटना को लेकर ग्रामीणों ने दबाव डालते हुए दूल्हे की घुड़चढ़ी रोकने की कोशिश की। जब दूल्हे और उसके परिवार ने इसका विरोध किया, तो मामला बढ़ गया, और उन्हें पुलिस से सुरक्षा की मांग करनी पड़ी। इस घटना के बाद पुलिस ने हस्तक्षेप किया और कुछ लोगों को गिरफ्तार किया, लेकिन प्रशासनिक कार्यवाही बहुत धीमी थी और दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई नहीं की गई। इस प्रकार की घटनाएँ जातीय असमानता और भेदभाव को और बढ़ावा देती हैं, जो भारतीय समाज में गहरे तक मौजूद हैं।
सरकार की प्रतिक्रिया: योगी आदित्यनाथ के शासनकाल में यह घटना यह साबित करती है कि सरकार और प्रशासन द्वारा जातीय भेदभाव के खिलाफ पर्याप्त कदम नहीं उठाए गए हैं। ये घटनाएँ समाज में असमानता की गहरी जड़ों को दर्शाती हैं, जहाँ दलितों को उनके सम्मानजनक अधिकारों से वंचित किया जाता है, और यह सरकार की विफलता का प्रतीक बनती हैं।
2018 में दलित दूल्हे को घोड़ी पर चढ़ने से रोकने की घटनाएं
अलीगढ़: 2018 में उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ जिले के जवां इलाके में जातीय भेदभाव का एक गंभीर मामला सामने आया, जब एक दलित दूल्हे की बारात पर हमला किया गया। घटना तब हुई जब बारात ऊंची जाति के मोहल्ले से गुजर रही थी। जातिवादियों ने बारात को रोकने की कोशिश की और उस पर पत्थरों और लाठियों से हमला कर दिया। इस हिंसा में बारातियों को चोटें आईं और बारात में भगदड़ मच गई। दबंगों का कहना था कि दलित बारात का उनके मोहल्ले से गुजरना उनकी “इज्जत” के खिलाफ है। दूल्हे के परिवार ने मामले की शिकायत पुलिस में दर्ज कराई, लेकिन प्रशासनिक कार्रवाई में लापरवाही देखी गई। यह घटना दलित समाज के अधिकारों और उनकी गरिमा पर किए गए हमलों का एक और उदाहरण थी, जो समाज में गहराई तक फैले जातीय भेदभाव और असमानता को उजागर करती है।
कासगंज: 2018 में उत्तर प्रदेश के कासगंज जिले में एक और जातीय भेदभाव की शर्मनाक घटना सामने आई, जब दलित दूल्हे की बारात के रास्ते को प्रशासन को बदलना पड़ा। यह घटना तब घटी जब दलित दूल्हा अपनी शादी की बारात लेकर जा रहा था और रास्ता ऊंची जाति के मोहल्ले से गुजरने वाला था। ऊंची जाति के लोगों ने इस पर आपत्ति जताई और दबाव डाला कि दलित दूल्हा उनके मोहल्ले से बारात नहीं गुजर सकता। प्रशासन ने दबाव के आगे झुकते हुए दूल्हे की बारात का रास्ता बदलने का आदेश दिया, जिससे यह साबित हो गया कि समाज में मौजूद जातीय भेदभाव की ताकतें प्रशासन से भी अधिक प्रभावशाली हैं।
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2019 में दलित दूल्हे को घोड़ी पर चढ़ने से रोकने की घटनाएं
बदायूं: 2019 में उत्तर प्रदेश के बदायूं जिले के कुंवरगांव में जातीय भेदभाव की शर्मनाक घटना सामने आई, जब एक दलित दूल्हे की घुड़चढ़ी की रस्म के दौरान ऊंची जाति के लोगों ने उसके घर पर हमला कर रस्म रोकने की कोशिश की। जातिवादियों ने दावा किया कि दलितों को घोड़ी पर चढ़ने का अधिकार नहीं है और परिवार को धमकाया। इस हमले से शादी की तैयारियों में बाधा पड़ी, जिससे दूल्हे के परिवार को पुलिस से सुरक्षा की गुहार लगानी पड़ी। हालांकि पुलिस ने मामूली कार्रवाई की, लेकिन दोषियों को सख्त सजा नहीं मिली। यह घटना न केवल दलित समाज की गरिमा पर हमला थी, बल्कि समाज में गहराई तक मौजूद जातीय भेदभाव और असमानता को उजागर करती है, जो आज भी एक गंभीर चुनौती बनी हुई है।
आगरा: फतेहाबाद में ऊंची जाति के मोहल्ले से बारात ले जाने पर दलित दूल्हे की बारात पर पथराव किया गया। यह कोई पहली घटना नहीं है। 2021 में महोबा जिले के अलखराम का मामला सामने आया था, जिसमें उसने पुलिस से अपनी बारात की सुरक्षा की मांग की थी। अलखराम ने कहा था कि अगर उसकी घुड़चढ़ी हो गई, तो यह बाकी दलित लड़कों के लिए एक मिसाल होगी। लेकिन दबंगों की धमकियों और प्रशासन की ढिलाई के कारण यह मुद्दा राष्ट्रीय चर्चा का विषय बन गया।
कानपुर देहात, 2020: रसूलाबाद में दलित दूल्हे को घोड़ी से नीचे खींचकर पीटा गया
2020 में उत्तर प्रदेश के कानपुर देहात जिले के रसूलाबाद इलाके में जातीय भेदभाव का एक भयावह मामला सामने आया, जब एक दलित दूल्हे को घोड़ी से नीचे खींचकर बेरहमी से पीटा गया। यह घटना तब हुई जब दलित दूल्हा अपनी शादी के दौरान घुड़चढ़ी की रस्म निभा रहा था। ऊंची जाति के कुछ लोगों ने इसे अस्वीकार करते हुए दूल्हे को घोड़ी से खींच लिया और उसे मारपीट का शिकार बना दिया। आरोपियों ने दूल्हे से कहा, “दलित को घोड़ी पर चढ़ने का अधिकार नहीं है।”
मऊ, 2021: एक अनोखा और विवादास्पद मामला
उत्तर प्रदेश के मऊ जिले में 2021 में एक अनोखा और विवादास्पद मामला सामने आया था, जब एक दूल्हे को घोड़ी पर चढ़ने से रोक दिया गया। यह घटना मऊ जिले के एक गांव में हुई, जहां एक दूल्हे ने अपनी शादी के दिन घोड़ी पर चढ़ने की कोशिश की। लेकिन गांव के कुछ बुजुर्गों और पंचायत के सदस्यों ने उसे घोड़ी पर चढ़ने से रोक दिया और इस पर एक फरमान जारी किया। इस फैसले का कारण यह था कि दूल्हे के परिवार ने गांव के एक परिवार से कर्ज लिया था, और इस कर्ज को चुकाने में वे विफल रहे थे। कर्ज की अदायगी को लेकर दोनों परिवारों के बीच विवाद था, और इसी विवाद के चलते गांव के बुजुर्गों ने यह आदेश दिया कि दूल्हे को घोड़ी पर चढ़ने की अनुमति नहीं दी जाएगी। यह एक सामाजिक दंड था, जिसे पारंपरिक रूप से उस परिवार को दिए गए सामाजिक आदेश के रूप में देखा गया।
2022 में दलित दूल्हे को घोड़ी पर चढ़ने से रोकने की घटनाएं
मेरठ में घोड़ी पर न बैठने देने का मामला: मेरठ जिले के एक गांव में एक दुल्हे को उसकी शादी के दिन घोड़ी पर चढ़ने से रोक दिया गया। आरोप है कि गांव के उच्च जाति के लोगों ने दुल्हे को घोड़ी पर न बैठने देने का फरमान जारी किया, जिससे दुल्हे के परिवार को काफी अपमान और मानसिक दबाव का सामना करना पड़ा।
आगरा में घोड़ी पर न बैठने देने का मामला: आगरा जिले के एक गांव में भी एक दुल्हे को घोड़ी पर बैठने से रोकने का मामला सामने आया। दुल्हे के परिवार ने आरोप लगाया कि गांव के प्रभावशाली और उच्च जाति के लोगों ने जातिगत भेदभाव का पालन करते हुए घोड़ी पर बैठने से रोक दिया, जिससे उनके सम्मान को ठेस पहुंची।
बाराबंकी में घोड़ी पर न बैठने देने का मामला: बाराबंकी जिले के एक गांव में भी ऐसा ही एक विवाद हुआ था , जब एक दुल्हे को उसकी शादी के दिन घोड़ी पर चढ़ने से मना कर दिया गया। यहां भी आरोप था कि उच्च जाति के लोगों ने दुल्हे के परिवार को अपमानित करने के लिए यह कदम उठाया।
2023 में दलित दूल्हे को घोड़ी पर चढ़ने से रोकने की घटनाएं
आगरा : 2023 में आगरा के ठाकुर मोहल्ले में एक दलित दूल्हे की घुड़चढ़ी को लेकर ठाकुर बिरादरी के लोगों ने बारात पर हमला किया था । इस दौरान महिलाओं तक को पीटा गया। 2018 में कासगंज में भी दलित बारात का रास्ता प्रशासन को बदलना पड़ा था, जिससे योगी आदित्यनाथ सरकार की विफलता सामने आई।
आजमगढ़: 2023 में आजमगढ़ जिले में जातीय भेदभाव का एक और चौंकाने वाला मामला सामने आया था , जब एक दलित युवक को घोड़ी पर चढ़ने के कारण जान से मारने की धमकी दी गई। यह घटना तब हुई जब युवक अपनी शादी के दौरान घुड़चढ़ी की रस्म निभा रहा था। ऊंची जाति के कुछ दबंगों ने इसे अपनी “परंपरा” के खिलाफ बताते हुए युवक और उसके परिवार को डराने-धमकाने की कोशिश की। उन्होंने युवक से घोड़ी से उतरने को कहा और ऐसा न करने पर गंभीर परिणाम भुगतने की धमकी दी।
परिवार ने पुलिस से सुरक्षा की गुहार लगाई, लेकिन प्रशासनिक कार्रवाई धीमी और प्रभावहीन रही। यह घटना दलित समाज के साथ हो रहे भेदभाव और उनके संवैधानिक अधिकारों की अनदेखी का एक और उदाहरण है। सामाजिक असमानता और जातीय हिंसा से जूझ रहे दलित समुदाय के लिए यह घटना उनके आत्मसम्मान पर गहरा प्रहार थी, जो आज भी हमारे समाज में गहरी जड़ें जमाए भेदभाव को उजागर करती है।
2024 में मुजफ्फरनगर में एक दलित दूल्हे को जबरन घोड़ी से उतारा गया और उसकी बारात पर हमला किया गया। इस हिंसा में तीन लोग घायल हो गए थे। पुलिस ने मामले को “दंगा” का नाम दिया, लेकिन दोषियों के खिलाफ कार्रवाई में सख्ती की कमी रही।
इन घटनाओं से स्पष्ट है कि उत्तर प्रदेश में दलित समाज को बार-बार अपमान और हिंसा का सामना करना पड़ता है, और योगी-मोदी प्रशासन इन मामलों को रोकने में असफल रहा है। अब समय आ गया है कि योगी और मोदी सरकार इस मुद्दे पर गंभीरता से ध्यान दें और दलित समाज को समान अधिकार दिलाने की दिशा में ठोस कदम उठाएं। वरना, “सबका साथ, सबका विकास” का नारा केवल दिखावा बनकर रह जाएगा .
योगी-मोदी के दलित समर्थक दावों की हकीकत
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ डॉ. भीमराव अंबेडकर के विचारों की प्रशंसा करते हैं और दलितों के विकास के लिए प्रतिबद्धता का दावा करते हैं। लेकिन जमीनी हकीकत इसके बिल्कुल विपरीत है। उत्तर प्रदेश में दलितों को अपने संवैधानिक अधिकारों के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है। घुड़चढ़ी जैसी साधारण रस्म को भी दबंग जातियों द्वारा रोका जा रहा है, और सरकार इन घटनाओं को रोकने में पूरी तरह विफल है।
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प्रशासनिक विफलता:
घुड़चढ़ी पर रोक: आगरा, कासगंज, और मुजफ्फरनगर जैसी बहुत सी जगहों पर दलित दूल्हों को घोड़ी पर चढ़ने से रोकने के मामले सामने आए।
हिंसा और धमकियां: बारातों पर हमले, महिलाओं से बदसलूकी, और दूल्हों के साथ मारपीट आम हो चुकी है।
प्रभावी कार्रवाई की कमी: पुलिस अधिकतर मामलों में एफआईआर तो दर्ज करती है, लेकिन दोषियों पर कार्रवाई नहीं होती।
जातीय भेदभाव पर मोदी-योगी सरकार की चुप्पी
योगी आदित्यनाथ सरकार के कार्यकाल में दलितों के खिलाफ अपराध बढ़े हैं। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के आंकड़ों के अनुसार, उत्तर प्रदेश में दलितों पर अत्याचार के मामलों में लगातार वृद्धि हो रही है। यह सरकार के “डबल इंजन विकास” और “सुरक्षित समाज” के दावों को ध्वस्त करता है।
भाजपा सरकार ने दलितों को राजनीतिक मंच पर तो जगह दी है, लेकिन वास्तविकता यह है कि दलित समाज आज भी सामाजिक और आर्थिक भेदभाव का शिकार है। घुड़चढ़ी जैसे साधारण अधिकार को लेकर संघर्ष करना इस बात का प्रमाण है कि सरकार न केवल दलितों के मुद्दों को नजरअंदाज कर रही है, बल्कि सामाजिक समानता के अपने दावों में भी विफल हो रही है।
प्रधानमंत्री मोदी और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को यह समझना होगा कि डॉ. अंबेडकर का नाम लेना पर्याप्त नहीं है। जातीय भेदभाव को खत्म करने के लिए ठोस कदम उठाने होंगे। अगर ऐसा नहीं हुआ, तो उत्तर प्रदेश के दलित समाज के लिए न्याय और सम्मान की लड़ाई और लंबी हो जाएगी, और भाजपा के “सबका साथ, सबका विकास” का नारा एक झूठ बनकर रह जाएगा।
*दलित टाइम्स उन करोड़ो लोगो की आवाज़ है जिन्हें हाशिए पर रखा गया है। *
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