मध्य प्रदेश के छतरपुर जिले के अतरार गांव में दलित जगत अहिरवार द्वारा मंदिर में प्रसाद चढ़ाने के बाद, सरपंच संतोष तिवारी ने उनका और प्रसाद खाने वाले 20 लोगों का सामाजिक बहिष्कार कर दिया। इन लोगों को गांव के किसी भी सामाजिक कार्यक्रम में शामिल नहीं किया जा रहा है। पीड़ित परिवार ने पुलिस से शिकायत की है, लेकिन अभी तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई। मामला छुआछूत और जातिवाद की गहरी समस्या को उजागर करता है।
मध्य प्रदेश के छतरपुर जिले के अतरार गांव में छुआछूत और जातिवादी मानसिकता का एक शर्मनाक मामला सामने आया है। यह घटना 20 अगस्त को शुरू हुई, जब दलित समाज के जगत अहिरवार ने हनुमान मंदिर में पुजारी के माध्यम से प्रसाद चढ़वाया और उसे गांव के लोगों में वितरित किया। लेकिन जैसे ही यह बात सरपंच संतोष तिवारी और गांव के कुछ उच्च जाति के लोगों को पता चली, उन्होंने जगत और प्रसाद खाने वाले 20 अन्य लोगों का सामाजिक बहिष्कार कर दिया। दलित परिवार का आरोप है कि इस बहिष्कार ने उनकी जिंदगी में अकल्पनीय मानसिक और सामाजिक पीड़ा ला दी है।
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सरपंच पर आरोप: छुआछूत को बढ़ावा देने का प्रयास
पीड़ित दलित परिवार और अन्य प्रभावित लोगों का कहना है कि सरपंच संतोष तिवारी ने खुलेआम छुआछूत का समर्थन किया और दलित परिवार को सजा देने का आदेश दिया। गांव में शादी, तेरहवीं और अन्य सामाजिक कार्यक्रमों में इन लोगों को बुलाना बंद कर दिया गया है। इसका कारण केवल इतना है कि जगत अहिरवार ने एक दलित होकर मंदिर में प्रसाद चढ़ाने की हिम्मत की। इस घटना से यह साफ हो जाता है कि छुआछूत जैसी बर्बर प्रथाएं आज भी समाज के कुछ हिस्सों में गहराई तक जड़ें जमाए हुए हैं।
सरकार और प्रशासन की नाकामी
सरकार और प्रशासन पर यह सवाल उठना लाजिमी है कि क्यों आज़ादी के 78 साल बाद भी इस तरह की घटनाएं भारत में हो रही हैं। प्रदेश की सरकार ने दलितों के अधिकारों और समानता की गारंटी तो दी है, लेकिन इस मामले में उनकी निष्क्रियता ने न्याय पर सवाल खड़े कर दिए हैं। पीड़ित परिवार ने पुलिस में शिकायत दर्ज कराई है, लेकिन अभी तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं की गई है। बिजावर के एसडीओपी शाशंकर जैन ने भले ही मामले को गंभीर बताते हुए जांच का आश्वासन दिया हो, लेकिन क्या यह आश्वासन पीड़ितों की जिंदगी में आई पीड़ा को कम कर सकता है?
जातिवादी सोच का समाज पर प्रभाव
यह घटना केवल एक व्यक्ति या परिवार की नहीं है, बल्कि यह हमारी जातिवादी सोच का प्रतीक है। छुआछूत जैसी प्रथाओं ने न केवल दलित समाज को कमजोर किया है, बल्कि पूरे समाज को विभाजित कर दिया है। अगर आज एक दलित परिवार को मंदिर में प्रसाद चढ़ाने के लिए सामाजिक बहिष्कार का सामना करना पड़ रहा है, तो यह सवाल उठता है कि क्या हम वाकई 21वीं सदी में हैं?
दलितों के पक्ष में आवाज उठाना जरूरी
इस घटना ने यह स्पष्ट कर दिया है कि दलितों के अधिकारों और सम्मान की रक्षा के लिए एकजुटता की आवश्यकता है। अगर गांव के 20 लोग जिन्होंने प्रसाद खाया, बहिष्कार का सामना कर रहे हैं, तो उन्हें एकजुट होकर इस अन्याय के खिलाफ खड़ा होना चाहिए। समाज को यह समझना होगा कि समानता और न्याय का अधिकार हर व्यक्ति का है।
सरकार और समाज के लिए चुनौती
अतरार गांव की यह घटना केवल एक मिसाल है, लेकिन यह सरकार और समाज दोनों के लिए चेतावनी है। अगर ऐसे मामलों पर सख्त कदम नहीं उठाए गए, तो यह सामाजिक समरसता को खोखला कर देगा। सरकार को दलित परिवारों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए कठोर कदम उठाने होंगे और दोषियों को सजा देनी होगी।
एक नई शुरुआत की जरूरत
यह घटना हमें यह सोचने पर मजबूर करती है कि क्या हम वाकई एक विकसित समाज का हिस्सा हैं? छतरपुर की यह घटना केवल दलितों का नहीं, बल्कि पूरे भारतीय समाज का अपमान है। इसे रोकने के लिए हमें जातिवाद, छुआछूत और सामाजिक अन्याय के खिलाफ खड़ा होना होगा। जब तक दोषियों को सजा नहीं मिलेगी और दलित समाज को उनका हक नहीं मिलेगा, तब तक न्याय अधूरा रहेगा।
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