हर साल सितंबर के चौथे रविवार को डॉटर्स डे (Daughters Day) सेलिब्रेट किया जाता है। इस बार भी सोशल मीडिया “Happy Daughters Day” के नाम से भरा दिखाई दिया। डॉटर्स डे
अलग-अलग देशों में अलग अलग दिन पर मनाया जाता है, पर मक़सद सिर्फ़ एक ही जान पड़ता “बेटियों का सम्मान”, लेकिन क्या हम सच में बेटियों का सम्मान करते हैं?
ख़ास कर भारत के पित्र सत्ता के लोग, जहां आये दिन लड़कियों को माँ बाप मारते रहते हैं, कभी गर्भ में कन्या भ्रूण हत्या तो कभी खुद की मर्ज़ी से शादी करने के कारण तो कभी ग़ैर जाति (ख़ास कर नीची कही जाने वाली जातियों) के व्यक्ति से शादी के बाद ओनर किलिंग के नाम पर।
आए दिन हम अखबारों में लड़कियों के साथ बलात्कार और हत्या की खबर देखते रहते हैं, हत्यारे बलात्कार करके बेरहमी से इनकी हत्या कर देते हैं, वो भी तड़पा तड़पा कर। हमारा ज़मीर फिर भी नहीं पिघलता। समाज विरोध करने से पहले यह देखता है कि पीड़ित किस जाति की है, और अपराधी किस जाति का है, अगर पीड़ित विरोध करने वाले समाज की हुई तभी विरोध करेंगे अन्यथा लग जाते हैं अपराधियों को बचाने में। एक बात जो हमेशा कही जाती है कि, “लड़कों से ग़लतियाँ हो जाती हैं” यही एकमात्र कारण है कि लड़कियों के अधिकार और न्याय के लिए समाज उतना मुखर होकर नहीं लड़ा जितना लड़ना चाहिए।
मेरा एक सवाल या कहें कि कुछ सोचने वाली पंक्तियाँ-
“फूलों को मसलने का जुनून किसका है?
इन दरिंदो की रगों में खून किसका है?
कभी किसी अपराधी से पूछा है अपनो ने?
रूह को नोचने वाला नाखून किसका है?
कौन देता है पनाह इन गुनहगारों को?
इंसानियत को मार कर सुकून किसका है?”
ख़ैर जो लड़कियों को भ्रूण में में मार दें वो भला ऐसी सोच लाएँगे कहाँ से, इन्हें तो संस्कार ऐसे मिले हैं जहां लड़का, लड़कियों से ज़्यादा सम्मान और तवज्जो का हक़दार है।
सितंबर 2016 में एक ऐसी ही घटना सामने आई थी जिस पर विश्वास किया जाना मुश्किल था। न्यूज़ की हेड लाइन थी “हवन कराया फिर भी बेटी हुयी, 13 दिन बाद माँ ने क़बूला- मैंने ने उसे मारकर AC में छुपाया।” ऐसी सामाजिक कुरीतियों से हमे खुद निपटना होगा।

माँ की ममता को बुरा कहूँ,
या फिर कहूँ बुरे संस्कार तेरे!
लोगों की नजर को बुरा कहूँ,
या फिर कहूँ बुरे रिस्तेदार तेरे!
पर उस परी को कैसे बुरा कहूँ,
थी बेटा-बेटी के अंतर से परे!
उसे अम्बर में उड़ने के बदले में,
अपने हाथों से कैसे पर कतरे!
तू भी तो किसी की बिटिया है,
क्यों भूल गयी बचपन अपना!
बेटी होकर जो नही कर सकती
था वो कौन सा ऐसा तेरा सपना!
क्या भूल गयीं ओलम्पिक तुम,
जहां देश की लाज बचाई थी।
एक नही कई भारत की बेटियां,
जब मेडल जीत कर लायीं थीं।
यह गलती सिर्फ नही तुम्हारी है,
फिर एक गुड़िया जीवन हारी है,
हम खुद की तो सुनते नही कभी,
और परम्पराएं जीवन पर भारी हैं।
इन नन्ही परियों का सम्मान करो,
दुत्कारो मत इनका सत्कार करो!
इनके होने से चहकता रहे समाँ,
हर आंगन मे इनको स्वीकार करो!
बिन बहू है बेटों का संसार कहाँ,
बेटे से बढ़कर बेटी से प्यार करो।
इनके होने से महकता रहे जहाँ,
हर आंगन मे इनको स्वीकार करो!

ऐसी घटनायें हमेशा से भारत में होती रही हैं और बदस्तूर जारी हैं। हमारी कोशिश आपकी आँखे खोलना और आपकी सोच में कुछ बदलाव लाने की है। अगर आप कुछ सोचने पर मजबूर हुए हों तो हम अपने आप को सफल मानेंगे।
ख़ैर, बताइए इस खास दिन (Daughters Day) पर आपने अपनी बेटी को स्पेशल फील करवाने के लिए क्या क्या किया ? और हाँ वो बेटी के साथ वाली सेल्फ़ी सोशल मीडिया पर डालना भूले तो नहीं।
यह लेख जितेन्द्र कुमार गौतम (ट्विटर @ErJKGautam) द्वारा लिखा गया है, लेखक मानवाधिकार, महिला सशक्तिकरण, जातिवाद एवं सामाजिक मुद्दों इत्यादि पर लेख और कवितायेँ लिखते रहते हैं।