विदेशों में पीएम मोदी जिस शान से कहते हैं कि मैं उस धरती से आया हूँ जिसने विश्व को युद्ध नहीं बल्कि बुद्ध दिए हैं. 7 मई को उन्हीं तथागत बुद्ध की विरासत को हॉगकांग में निलाम कर दिया जाएगा. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक इस निलामी में 1,800 बौद्धकालीन अवशेष जिसमें मोती, माणिक, पुखराज, नीलम और पैटर्न वाली सोने की चादर शामिल है की बोली लगाई जाएगी.
ये वही अवशेष हैं जिन्हें 1898 में ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के दौरान विलियम क्लैक्स्टन पेपे ने उत्तर प्रदेश के सिद्धार्थनगर जिले के पिपरहवा स्तूप से निकाला था और अंग्रेज़ी सरकार ने अपने कब्ज़े में लेते हुए उनका एक हिस्सा क्लैक्स्टन पेपे को दे दिया था. 7 मई को क्लैक्स्टन पेपे के चौथे वंशज इन 2500 साल पुराने अवशेषों को हांगकांग के ‘सोथबीज़’ में नीलाम करेंगे.
यह भी पढ़ें : हरियाणा: मदनहेड़ी में जाटों ने क्यों किया 80 दलित परिवारों का सामाजिक बहिष्कार ?
जब से यह खबर सामने आई है तो से अंबेडकरवादी खेमा और बौद्ध धम्म को मानने वाले लोग लगातार ये कह रहे हैं कि ये हमारी धरोहर और बौद्ध आस्था का अपमान है. भारत सरकार से लगातार गुहार भी लगाई जा रही हैं कि इन अवशेषों को संरक्षित करके भारत लाया जाना चाहिए क्योंकि इन अवशेषों का असली हकदार भारत है. लेकिन दुख की बात ये है कि इस खबर को सामने आए हुए इतने दिन हो गए है लेकिन ना तो पीएम मोदी ने इस खबर पर कोई प्रतिक्रिया दी है और ना ही अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री किरेन रिजीजू ने जो की खुद बुधिस्ट हैं.

इस मामले पर बहुजन वंचित आघाड़ी के मुखिया प्रकाश अंबेडकर ने कहा, “”बुद्ध के पार्थिव अवशेषों से जुड़े रत्नों, जिसे आधुनिक युग की सबसे आश्चर्यजनक पुरातात्विक खोजों में से एक माना गया है, हांगकांग के एक नीलामी में नीलाम किया जाएगा।
इन रत्नों को बुद्ध के अवशेषों के साथ 1898 में खोजा गया था। इन रत्नों को मूल रूप से वर्तमान भारत के उत्तर प्रदेश के पिपराहवा में स्तूप में लगभग 240-200 BC दफनाया गया था, जब उन्हें बुद्ध के कुछ दाह-अवशेषों के साथ मिला दिया गया था, जिनकी मृत्यु लगभग 480 BC में हुई थी। ये रत्न बुद्ध के शरीर के अवशेषों के साथ सदैव एक भेंट के रूप में रहना था, और इस दृष्टि से वे स्वयं बुद्ध की संपत्ति हैं।
इन रत्नों को अंग्रेजों के भारत में राज के दौरान गलत तरीके से हासिल किए गए थे और अब नीलाम किए जा रहे हैं। कल्पना कीजिए कि अगर ईसा मसीह या किसी अन्य धर्म के अवशेषों को कला की तरह नीलाम किया जाता तो क्या होता। ये केवल रत्न नहीं हैं। बौद्ध शब्दों में, ये रत्न भक्ति की वस्तुएं हैं, बुद्ध को एक भेंट हैं और बुद्ध के सांसारिक अवशेषों के निकटता से पवित्र हैं।”
वहीं सोशल मीडिया इंफ्लुएंसर सूरज कुमार बौद्ध ने लिखा, “यह अत्यंत शर्म की बात है कि भगवान बुद्ध के पवित्र रत्न, जो ब्रिटिश शासनकाल में भारत के पिपरहवा (सिद्धार्थनगर) स्थित उनके अवशेषों के स्तूप से खुदाई के दौरान प्राप्त हुए थे, अब सोथबेज़ द्वारा उन्हें बाजार में नीलामी के लिए रखे जा रहे हैं।

यह भी पढ़ें : PHULE: The man With the Mission फिल्म को देखना क्यों जरूरी है ?
ये रत्न मात्र पुरातात्विक धरोहर नहीं हैं, बल्कि करोड़ों बौद्ध अनुयायियों की आस्था, श्रद्धा और आध्यात्मिक विश्वास के प्रतीक हैं। इनकी नीलामी केवल स्पष्ट रूप से बल्कि हमारी आध्यात्मिक विरासत की लूट और औपनिवेशिक हिंसा का एक क्रूर विस्तार है।
मैं इस निंदनीय और अमानवीय कृत्य की कड़े शब्दों में भर्त्सना करता हूँ। यह न केवल धार्मिक भावनाओं का अपमान है, बल्कि तथागत बुद्ध के करुणा, समता और अहिंसा के संदेश की भी अवमानना है।“
पिपरहवा बौद्ध धर्म के लिए एक पवित्र तीर्थस्थल है.इतिहासकारों के अनुसार, भगवान बुद्ध के महापरिनिर्वाण (लगभग 480 ईसा पूर्व) के बाद शाक्य वंशजों द्वारा उनके दाह-अवशेषों का एक हिस्सा पिपरहवा में निर्मित एक स्तूप में सुरक्षित रखा गया था। ये अवशेष और उनके साथ रखे गए रत्न 240-200 ईसा पूर्व के हैं. ये बौद्ध धर्म की भक्ति और श्रद्धा का प्रतीक हैं। ये रत्न बुद्ध के अवशेषों के साथ एक भेंट के रूप में दफनाए गए थे और इन्हें बुद्ध की संपत्ति माना जाता है।