सुप्रीम कोर्ट के जज जस्टिस अभय श्रीनिवास ओका बोले ‘कोर्ट में बंद करो पूजा-पाठ, सिर्फ संविधान के आगे झुकायें शीश’

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जस्टिस अभय श्रीनिवास ओका ने कहा, जब मैं कर्नाटक में था, मैंने ऐसे धार्मिक कार्यक्रमों को कम करने के लिए कई बार कोशिश की, लेकिन मैं उन्हें पूरी तरह से रोकने में असमर्थ रहा, लेकिन संविधान के 75 वर्ष पूरा होना हमारे लिए धर्मनिरपेक्षता को आगे बढ़ाने का सबसे अच्छा अवसर है…

‘अदालतों में कार्यक्रमों के दौरान पूजा-अर्चना बंद कर देनी चाहिए, सिर्फ संविधान के आगे सिर झुकाएं।’ यह बात कही है सुप्रीम कोर्ट के जज जस्टिस अभय श्रीनिवास ओका ने। जस्टिस अभय ओका ने 4 मार्च को कहा कि कोर्ट परिसर में किसी भी तरह की पूजा-अर्चना नहीं की जानी चाहिए। यह बात उन्होंने पुणे के पिंपरी चिंचवड़ में एक “भूमि पूजन” समारोह में भाग लेने के दौरान कही। उनका यह बयान सोशल मीडिया पर वायरल है, जिसने एक नई बहस को भी जन्म दे दिया है।

गौरतलब है कि भूमि पूजन कार्यक्रम के दौरान जस्टिस अभय एस ओका ने अपने कानूनी बिरादरी के साथियों वकीलों-जजों को सलाह दी है कि उन्हें अदालत परिसर में पूजा-पाठ से बचना चाहिए,और शीश ही झुकाना है तो संविधान के आगे झुकायें। कानूनी जगत में शामिल वकीलों-जजों या अन्य लोगों को किसी भी काम की शुरुआत संविधान की प्रति के सामने झुककर करनी चाहिए।

जस्टिस अभय श्रीनिवास ओका ने कहा, ‘मेरे लिए ‘लोकतांत्रिक’ और ‘धर्मनिरपेक्ष’ शब्द बहुत महत्वपूर्ण हैं। संविधान के 75 वर्ष पूरे होने पर नयी प्रथा शुरू की जानी चाहिए कि अदालत परिसर में पूजा-पाठ के बजाय संविधान की प्रति के आगे शीश झुकाना शुरू कर देना चाहिए।

उन्होंने कहा, “बाबा साहेब डॉ. भीमराव अंबेडकर ने हमें एक आदर्श संविधान दिया है, जिसमें धर्मनिरपेक्षता (Secularism) का उल्लेख किया है। हमारी अदालत व्यवस्था भले ही अंग्रेजों द्वारा बनायी गयी हो, लेकिन यह हमारे संविधान से चलती है। अदालतें संविधान द्वारा दी गयी हैं।”

कर्नाटक हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान किये गये प्रयासों के बारे में बताते हुए जस्टिस अभय श्रीनिवास ओका ने कहा, “जब मैं कर्नाटक में था, मैंने ऐसे धार्मिक कार्यक्रमों को कम करने के लिए कई बार कोशिश की, लेकिन मैं उन्हें पूरी तरह से रोकने में असमर्थ रहा, लेकिन संविधान के 75 वर्ष पूरा होना हमारे लिए धर्मनिरपेक्षता को आगे बढ़ाने का सबसे अच्छा अवसर है।”

25 मई 1960 को जन्मे जस्टिस ओका ने 1983 में बॉम्बे में एक वकील के रूप में दाखिला लिया और अपने करियर की शुरुआत पिता के चैंबर में ठाणे जिला न्यायालय में की। इसके बाद वह 1985 में भारत संघ के तत्कालीन वरिष्ठ वकील वीपी टिपनिस के चैंबर में शामिल हुए। वर्ष 2003 में बॉम्बे हाईकोर्ट के अतिरिक्त न्यायाधीश के रूप में उन्हें नियुक्ति मिली और 2005 में उन्हें स्थायी न्यायाधीश बना दिया गया। जस्टिस ओका ने 13 साल से अधिक समय तक बॉम्बे हाईकोर्ट में अपनी सेवायें दीं। 17 अगस्त, 2021 को सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश के रूप में पदोन्नत होने से पहले, उन्हें 2019 में कर्नाटक उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के रूप में नियुक्त किया गया था। उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में पर्यावरण संरक्षण और बैंगलोर और बॉम्बे में बेहतर जीवन स्थितियों के लिए दिये गये उनके कई आदेश चर्चित रहे थे।

जस्टिस अभय श्रीनिवास ओका के बारे में एक दिलचस्प बात यह है कि वह इंजीनियर बनना चाहते थे, मगर आ गये वकालत के पेशे में। जस्टिस ओका ने विज्ञान में ग्रेजुएशन किया था। हालांकि इंजीनियर बनने का विचार उन्होंने बीच में ही त्याग दिया और कानूनी बिरादरी में शामिल होने का फैसला किया। उनका कहना है कि यह बताना मुश्किल है कि वह कानूनी बिरादरी में क्यों शामिल हुए, लेकिन ऐसा इसलिए हो सकता है क्योंकि उनका जन्म और पालन-पोषण वकीलों के परिवार में हुआ था।

जस्टिस ओका कहते रहे हैं कि निचली अदालतों में बिताए गए समय से उन्हें सबसे अधिक मदद मिली। अगर किसी को उच्च न्यायालय या उच्चतम न्यायालय में सफल होना है, तो उसे ट्रायल कोर्ट में वकील के रूप में कुछ साल बिताने होंगे।

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