हरियाणा के भिवानी जिले में एक 22 वर्षीय दलित छात्रा ने फीस न चुका पाने के कारण आत्महत्या कर ली। परिवार का आरोप है कि कॉलेज प्रशासन ने उसे परीक्षा में बैठने से रोका और मानसिक रूप से प्रताड़ित किया। पुलिस ने मामला दर्ज कर जांच शुरू कर दी है। विपक्ष ने इसे संविधान की मूल भावना का अपमान बताया, वहीं सरकार ने दोषियों पर कार्रवाई का आश्वासन दिया है। यह घटना गरीब और दलित छात्रों के लिए शिक्षा के अधिकार पर गंभीर सवाल खड़े करती है।
हरियाणा के भिवानी जिले में एक 22 वर्षीय दलित छात्रा की आत्महत्या ने एक बार फिर समाज और प्रशासनिक तंत्र की असंवेदनशीलता को उजागर कर दिया है। मृतक युवती बीए अंतिम वर्ष की छात्रा थी और एक निजी महिला कॉलेज में पढ़ाई कर रही थी। परिवार ने आरोप लगाया है कि कॉलेज प्रशासन ने फीस न चुका पाने के कारण उसे परीक्षा देने से रोक दिया, जिसके चलते वह मानसिक रूप से तनाव और प्रताड़ना झेलने को मजबूर हुई। आर्थिक रूप से कमजोर परिवार की इस बेटी की कहानी ना केवल दिल दहला देने वाली है, बल्कि यह सवाल भी उठाती है कि क्या शिक्षा के अधिकार और सामाजिक न्याय का सपना अब भी अधूरा है।
“बेटी को न्याय चाहिए”: परिवार की गुहार
छात्रा के पिता जगदीश ने बताया कि उनकी बेटी पांचवें सेमेस्टर की परीक्षा देने वाली थी, लेकिन फीस बकाया होने की वजह से कॉलेज प्रशासन ने उसे परीक्षा में बैठने की अनुमति नहीं दी। आर्थिक तंगी के कारण समय पर फीस नहीं भर पाने के बावजूद, परिवार ने कॉलेज प्रशासन से कई बार राहत देने की गुजारिश की, लेकिन उन्हें सिर्फ अपमान और धमकियों का सामना करना पड़ा। उन्होंने आरोप लगाया कि प्राचार्य और अन्य स्टाफ ने उनकी बेटी को मानसिक रूप से परेशान किया।
“शर्मनाक और हृदयविदारक घटना”: विपक्ष का हमला
कांग्रेस नेता रणदीप सिंह सुरजेवाला ने इस घटना की कड़ी निंदा करते हुए कहा कि यह संविधान में निहित समानता और न्याय की मूल भावना का अपमान है। उन्होंने कहा, “यह बेहद शर्मनाक है कि हरियाणा में एक दलित लड़की को परीक्षा की फीस न चुका पाने के कारण अपनी जान देनी पड़ी। इस घटना की गहन जांच होनी चाहिए और दोषियों को कड़ी सजा मिलनी चाहिए।”
प्रशासन पर उठे सवाल: सवेदनहीनता का आरोप
पुलिस ने धारा 108 के तहत आत्महत्या के लिए उकसाने का मामला दर्ज कर जांच शुरू कर दी है। हालांकि, अब तक कोई सुसाइड नोट नहीं मिला है और पोस्टमार्टम रिपोर्ट का इंतजार किया जा रहा है। लोहारू थाना प्रभारी जितेंद्र ने कहा, “कई पहलुओं पर जांच जारी है। दोषियों को बख्शा नहीं जाएगा।” लेकिन इस घटना ने प्रशासन की भूमिका पर सवाल खड़े कर दिए हैं। क्या प्रशासन और कॉलेज प्रबंधन की जिम्मेदारी नहीं थी कि वे छात्रा की आर्थिक स्थिति को समझते हुए उसे परीक्षा में बैठने की अनुमति देते?
“सरकार पीड़ित परिवार के साथ”: मंत्री का बयान
हरियाणा के सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्री कृष्ण कुमार बेदी ने कहा कि दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी। उन्होंने कांग्रेस से मामले का राजनीतिकरण न करने की अपील करते हुए कहा कि सरकार पीड़ित परिवार के साथ खड़ी है। लेकिन क्या यह आश्वासन उन सवालों का जवाब दे पाएगा, जो इस घटना ने उठाए हैं?
शिक्षा का अधिकार या आर्थिक उत्पीड़न?
यह घटना केवल एक छात्रा की आत्महत्या नहीं है; यह समाज और प्रशासन के संवेदनहीन रवैये की कहानी है। गरीब और दलित छात्रों के लिए शिक्षा का सपना अब भी एक संघर्ष बना हुआ है। प्रशासनिक उदासीनता और निजी संस्थानों की मनमानी ने शिक्षा को एक अधिकार से अधिक एक विलासिता बना दिया है। यह घटना हमें याद दिलाती है कि जब तक शिक्षा प्रणाली आर्थिक और सामाजिक रूप से कमजोर वर्गों के प्रति संवेदनशील नहीं होगी, तब तक ऐसी घटनाएं रुकने वाली नहीं हैं।
यह समय है कि सरकार और समाज मिलकर दलित और आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के लिए शिक्षा के द्वार खोलें, ताकि कोई और बेटी मजबूरी में अपनी जिंदगी का अंत न करे।
*दलित टाइम्स उन करोड़ो लोगो की आवाज़ है जिन्हें हाशिए पर रखा गया है। *
महिला, दलित और आदिवासियों के मुद्दों पर केंद्रित पत्रकारिता करने और मुख्यधारा की मीडिया में इनका प्रतिनिधित्व करने के लिए हमें आर्थिक सहयोग करें।