विशेष पॉक्सो अदालत: 7 साल की दलित बच्ची से अश्लील हरकत करने पर दोषी को मिली 7 साल की सजा

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सात साल की एक दलित बच्ची घर के सामने खेलते समय अचानक गायब हो गई। उसे 40 वर्षीय व्यक्ति बहला-फुसलाकर अपने साथ ले जा रहा था । 40 वर्षीय आरोपी को 7 साल की जेल और 18,000 रुपये जुर्माने की सजा ।

उत्तर प्रदेश के औराई जिले में, मार्च 2024 में एक दिल दहला देने वाली घटना सामने आई, जिसने क्षेत्र को झकझोर कर रख दिया। 30 मार्च की शाम को गांव की सात साल की एक मासूम दलित बच्ची घर के सामने खेलते समय अचानक गायब हो गई। परिवार और आस-पास के लोगों ने बच्ची की खोज शुरू की, लेकिन उसका कहीं कोई पता नहीं चल रहा था। इसी बीच, गांव के कुछ लोगों ने बच्ची को एक गेंहू के खेत की ओर जाते हुए देखा, जहां एक 40 वर्षीय व्यक्ति, पिंटू चौबे, उसे बहला-फुसलाकर अपने साथ ले जा रहा था। इन लोगों को शक हुआ और उन्होंने चौबे का पीछा करते हुए उसका वीडियो भी बनाना शुरू कर दिया।

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लोगों ने पकड़ा रंगे हाथों

गांव के निवासियों ने देखा कि चौबे बच्ची के साथ अश्लील हरकतें कर रहा था। इससे गुस्साए लोगों ने तुरंत उसे रंगे हाथों पकड़ लिया और बच्ची को उसकी पकड़ से छुड़ाया। घटना का वीडियो भी पुलिस के पास पहुंचाया गया, जो मामले की गंभीरता को साबित करने के लिए अहम सबूत था।

पुलिस कार्रवाई और आरोपियों की गिरफ्तारी

बच्ची के पिता ने इस घिनौनी घटना के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई, जिसके बाद पुलिस अधीक्षक मीनाक्षी कात्यायन ने संज्ञान लेते हुए तुरंत कार्रवाई की। एक अप्रैल को पिंटू चौबे के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की विभिन्न धाराओं, पॉक्सो अधिनियम, और अनुसूचित जाति/जनजाति अधिनियम के तहत मामला दर्ज किया गया। आरोपी को जल्द ही पुलिस ने हिरासत में ले लिया और आगे की कार्यवाही शुरू की। इस घटना ने न केवल उस गांव में, बल्कि आसपास के क्षेत्रों में भी आक्रोश फैला दिया, और समाज के विभिन्न वर्गों ने इस मामले में कड़ी कार्रवाई की मांग की।

विशेष अदालत में सुनवाई और दोष सिद्ध

मामला विशेष पॉक्सो अदालत में लाया गया, जहां विशेष लोक अभियोजक कौलेश्वर नाथ पांडेय और अश्विनी कुमार मिश्रा ने सबूतों के आधार पर आरोपी के खिलाफ मजबूत पक्ष रखा। अदालत में पीड़ित बच्ची और गवाहों के बयान दर्ज किए गए, और घटना के वीडियो ने अदालत में अभियोजन पक्ष को मजबूत आधार दिया। इन सभी प्रमाणों के आधार पर विशेष सत्र न्यायाधीश (पॉक्सो) मधु डोगरा ने इस मामले पर अपना फैसला सुनाया। अदालत ने आरोपी पिंटू चौबे को दोषी ठहराते हुए उसे सात साल के कठोर कारावास की सजा सुनाई और 18,000 रुपये का जुर्माना भी लगाया।

सजा का समाज पर प्रभाव

इस सजा ने समाज को यह संदेश दिया कि कानून किसी भी प्रकार के अपराध को सहन नहीं करेगा, खासकर जब यह अपराध मासूम और कमजोर वर्ग से जुड़े हों। यह निर्णय यह भी दर्शाता है कि कानून सबके लिए समान है और दोषियों को उनकी जाति, धर्म या वर्ग के आधार पर कोई विशेष छूट नहीं मिल सकती। इस सजा से पीड़ित परिवार को थोड़ी राहत जरूर मिली होगी, लेकिन घटना ने समाज में बच्चों की सुरक्षा को लेकर कई प्रश्न खड़े कर दिए हैं।

अपराधी को सजा मिलने के बावजूद बच्ची के परिवार की व्यथा

इस घटना के बाद बच्ची और उसका परिवार मानसिक आघात से गुजर रहा है। बच्ची को समाज और परिवार के समर्थन की जरूरत है ताकि वह इस घटना के बुरे प्रभाव से उबर सके। वहीं, इस तरह की घटनाओं से समाज में जागरूकता बढ़ाने की आवश्यकता है, ताकि भविष्य में कोई मासूम ऐसी भयावह स्थिति का शिकार न बने।

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निष्कर्ष: न्याय की जीत और समाज को सीख

इस मामले में विशेष अदालत का सख्त फैसला यह दर्शाता है कि कानून के समक्ष सभी बराबर हैं और किसी भी प्रकार का अपराध बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। इस सजा से समाज में यह संदेश गया है कि ऐसे मामलों में कड़ी कार्रवाई होगी और दोषियों को उनके किए की सजा अवश्य मिलेगी।

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