राहुल गांधी की असंध रैली में कुमारी शैलजा और भूपेंद्र हुड्डा मंच पर साथ दिखे, लेकिन आपसी संवाद नहीं हुआ। कांग्रेस और राहुल गांधी द्वारा दलित समाज का वोट हथियाने के लिये कुमारी शैलजा को दबाव बना कर असंध में लाया गया, ओर वहां भी उनको सिर्फ एक डम्मी के रूप में बिठाया गया।
हरियाणा में विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने असंध विधानसभा क्षेत्र में अपनी पहली रैली से चुनाव प्रचार का आगाज किया। असंध में कांग्रेस उम्मीदवार शमशेर सिंह गोगी के समर्थन में आयोजित इस रैली में कांग्रेस के दो प्रमुख नेता कुमारी सैलजा और भूपेंद्र सिंह हुड्डा भी मंच पर साथ नजर आए। यह मंच साझा करना महत्वपूर्ण इसलिए भी था क्योंकि टिकट बंटवारे के बाद पार्टी के भीतर नाराजगी बढ़ी थी। दोनों नेताओं के बीच मंच पर कोई सीधा संवाद नहीं हुआ, लेकिन अपने भाषणों में उन्होंने एक-दूसरे का नाम जरूर लिया।
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कांग्रेस की तरफ से दलितों के समर्थन का दिखावा किया जा सके
हरियाणा की असंध विधानसभा सीट पर कांग्रेस के नेतृत्व में दलित वोट बैंक को लेकर चल रही राजनीति पर कई आलोचनाएं उठ रही हैं, विशेष रूप से राहुल गांधी और भूपेंद्र सिंह हुड्डा के संदर्भ में। असंध में बसपा पिछले चुनाव में केवल 1700 वोटों से हार गई थी, और यह दिखाता है कि यहां दलित वोटों का बड़ा महत्व है। बसपा की इस सफलता के बाद कांग्रेस की रणनीति स्पष्ट रूप से इस वोट बैंक को हथियाने की है, जिसके लिए कुमारी शैलजा को चुनाव मैदान में लाया गया है। लेकिन इस निर्णय को लेकर यह आलोचना उठ रही है कि शैलजा को केवल एक प्रतीकात्मक “डमी” के रूप में पेश किया गया है, ताकि कांग्रेस की तरफ से दलितों के समर्थन का दिखावा किया जा सके।
कुमारी शैलजा को असंध में लाने का मकसद केवल बसपा के दलित वोटों को बांटना
राहुल गांधी और भूपेंद्र सिंह हुड्डा की जोड़ी पर आरोप है कि वे असली मुद्दों और क्षेत्र की जमीनी हकीकत को समझने में विफल रहे हैं। कुमारी शैलजा को असंध में लाने का मकसद केवल बसपा के दलित वोटों को बांटना और अपनी राजनीतिक गणित को साधना है, जबकि कांग्रेस के अंदरूनी गुटों के बीच बढ़ती दरार को नजरअंदाज किया गया है। टिकट वितरण के बाद पार्टी के अंदर बढ़ी नाराजगी और मंच पर हुड्डा और शैलजा के बीच संवादहीनता ने यह दर्शाया कि कांग्रेस में आपसी तालमेल की कमी है, और यह आंतरिक संघर्ष पार्टी के चुनावी प्रदर्शन पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है।
कुमारी शैलजा को चुनावी गणित का मोहरा बना दिया
राहुल गांधी पर भी यह आरोप है कि उन्होंने नेतृत्व के नाम पर केवल पारिवारिक और प्रतीकात्मक राजनीति की है, और पार्टी की आंतरिक समस्याओं को सुलझाने में नाकाम रहे हैं। हुड्डा के साथ मिलकर उन्होंने कुमारी शैलजा जैसी मजबूत दलित नेता को केवल चुनावी गणित का मोहरा बना दिया है, जिससे कांग्रेस के अंदर नेतृत्व की एकता की कमी साफ झलकती है।
दलित समाज के प्रति कांग्रेस की ईमानदारी पर सवाल उठे
इसके अलावा, यह भी कहा जा रहा है कि राहुल गांधी और हुड्डा असली मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करने की बजाय, जातिगत समीकरणों के आधार पर राजनीति कर रहे हैं। दलित समाज को अपने पक्ष में करने के लिए कुमारी शैलजा का उपयोग किया जा रहा है, लेकिन वे वास्तविक सत्ता और निर्णय प्रक्रिया में प्रभावी भूमिका नहीं निभा पा रही हैं। इससे दलित समाज के प्रति कांग्रेस की ईमानदारी पर सवाल उठते हैं।
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कुल मिलाकर, राहुल गांधी और भूपेंद्र सिंह हुड्डा पर यह आरोप है कि उन्होंने असंध जैसे महत्वपूर्ण चुनाव क्षेत्र में केवल प्रतीकात्मक राजनीति और आंतरिक संघर्षों से पार्टी की छवि को कमजोर किया है। पार्टी के अंदर नेतृत्व की कमी, असंतोष, और असली मुद्दों से भटकने के कारण कांग्रेस की चुनावी संभावनाओं पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है, और इसका सीधा फायदा विपक्षी दलों को हो सकता है।
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