अंबेडकर स्मारकों पर राजनीति: दलित समुदाय की उम्मीदों पर पानी, यूपी सरकार का दिखावटी कदम

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उत्तर प्रदेश सरकार ने लखनऊ और नोएडा के प्रमुख दलित स्मारकों की मरम्मत और सुंदरीकरण के लिए 115 करोड़ रुपये की योजना शुरू की है। अंबेडकर स्थल, कांशीराम स्मारक और दलित प्रेरणा स्थल पर मरम्मत व सौंदर्यीकरण कार्य किए जा रहे हैं। हालांकि, आलोचकों का कहना है कि यह कदम दलित समुदाय को खुश करने का दिखावटी प्रयास है, क्योंकि सरकार दलितों के सशक्तिकरण और उनके अधिकारों पर ध्यान नहीं दे रही।

UP News: उत्तर प्रदेश में दलित स्मारकों की मरम्मत और सुंदरीकरण के नाम पर 115 करोड़ रुपये खर्च करने की घोषणा ने एक बार फिर दलित समुदाय के बीच उम्मीद और आशंका दोनों को जन्म दिया है। लखनऊ स्थित डॉ. भीमराव अंबेडकर सामाजिक परिवर्तन स्थल, मान्यवर कांशीराम स्मारक स्थल, और नोएडा के राष्ट्रीय दलित प्रेरणा स्थल पर सरकार ने बड़े सुधार कार्यों की बात कही है, लेकिन सवाल यह है कि क्या यह कदम दलित समुदाय के वास्तविक सशक्तिकरण की दिशा में है या महज राजनीतिक दिखावा? योगी सरकार के इस कदम को कई लोग दलित समुदाय को खुश करने की एक रणनीति मान रहे हैं, खासकर उस समय जब दलितों के अधिकारों और उनके प्रतीकों पर हमले लगातार बढ़ रहे हैं।

अंबेडकर स्थल पर 20 करोड़ की मरम्मत, लेकिन मूल समस्याएं जस की तस

गोमती नगर स्थित डॉ. भीमराव अंबेडकर सामाजिक परिवर्तन स्थल पर 20 करोड़ रुपये खर्च कर मरम्मत और सफाई का कार्य किया जाएगा। सरकार का दावा है कि महापुरुषों की मूर्तियों, हाथी दीर्घा, और स्तूप के बीम की दरारों को भरने के लिए यह कदम उठाया गया है। साथ ही सैंड स्टोन और ग्रेनाइट पत्थरों की सफाई व पेंटिंग का काम भी किया जाएगा। हालांकि, यह सब केवल सतही सुधार लगता है क्योंकि दलित समुदाय के लिए इन स्मारकों का महत्व उनकी सामाजिक और राजनीतिक पहचान से जुड़ा है, जो सरकार की नीतियों और रवैये के चलते बार-बार उपेक्षित होता रहा है।

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कांशीराम स्मारक पर 25 करोड़ की मरम्मत, लेकिन दलितों के हितों की अनदेखी

मान्यवर कांशीराम स्मारक स्थल पर 25 करोड़ रुपये खर्च किए जाएंगे हैं। मुख्य गुंबद की छत की दरारें और जल रिसाव की समस्याएं हल की जा रही हैं। परिसर में सिलिकॉन कोटिंग, वाटरप्रूफिंग, और लाइटिंग का रखरखाव भी किया जाएगा। लेकिन आलोचकों का कहना है कि सरकार केवल इमारतों को चमकाने में जुटी है, जबकि कांशीराम और अंबेडकर की विचारधारा को दबाने की कोशिशें लगातार जारी हैं। दलितों के लिए शिक्षा, रोजगार और सुरक्षा जैसे मुद्दों पर योगी सरकार की निष्क्रियता इन सतही प्रयासों को बेमानी बनाती है।

नोएडा का दलित प्रेरणा स्थल: मरम्मत के नाम पर खानापूर्ति

नोएडा स्थित राष्ट्रीय दलित प्रेरणा स्थल पर तीन करोड़ रुपये खर्च कर पत्थरों की मरम्मत, सफाई, और म्यूजिकल फाउंटेन को चालू करने का दावा किया जा रहा है। लेकिन सवाल यह है कि क्या यह राशि उन समस्याओं को हल कर पाएगी जो वर्षों से इस स्थल की पहचान और रखरखाव पर सवाल खड़े कर रही हैं?

दलितों के प्रतीकों पर राजनीति, सशक्तिकरण के लिए नहीं उठाए जा रहे ठोस कदम

योगी सरकार के इस कदम को दलित समुदाय के बीच बढ़ती नाराजगी को शांत करने की कोशिश के रूप में देखा जा रहा है। आलोचकों का कहना है कि यह सरकार दलित स्मारकों को चमकाने में तो करोड़ों खर्च कर रही है, लेकिन दलितों पर हो रहे अत्याचार, उनके खिलाफ बढ़ते अपराध और उनके सामाजिक-आर्थिक उत्थान के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठा रही।

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दलित स्मारकों का सौंदर्यीकरण या दलित वोट बैंक साधने का प्रयास?

यह स्पष्ट है कि 115 करोड़ रुपये की यह योजना दलित समुदाय के जख्मों पर मरहम लगाने की बजाय उनकी भावनाओं से खेलने का प्रयास है। योगी सरकार द्वारा दलित प्रतीकों को संरक्षित करने की यह पहल तब तक अधूरी और दिखावटी मानी जाएगी जब तक कि दलितों के अधिकारों और उनकी मूलभूत समस्याओं पर ध्यान नहीं दिया जाता। दलित समुदाय को इस समय सजावटी स्मारकों की नहीं, बल्कि शिक्षा, रोजगार, और सामाजिक न्याय की आवश्यकता है।

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