PDA मॉडल: सपा का राजनीतिक ढोंग, दलित, पिछड़े और अल्पसंख्यकों के लिए खोखले दावे

Share News:

दलित, पिछड़ा, और आदिवासी समाज, जो भारत की राजनीति में निर्णायक भूमिका निभाता है, भाजपा और सपा दोनों के शासनकाल में उपेक्षित रहा है। भाजपा ने संविधान और आरक्षण को कमजोर करने की कोशिश की, जबकि सपा ने बहुजन प्रतीकों और सम्मान को चोट पहुंचाई। सपा का पीडीए मॉडल महज चुनावी रणनीति है। 

दलित, पिछड़ा और आदिवासी समाज जो भारत के सम्पूर्ण जनसँख्या का बहुत बड़ा अंश है और रानीतिक रूप से अत्यंत महत्पूर्ण और निर्णायक भी है. भारत में राजनीतिक सत्ता को प्राप्त करने में यह समाज निर्णायक भूमिका निभाता है. फलस्वरूप सभी राजनीतिक दल उपरोक्त समाज को रिझाने और उनका शुभचिंतक होने का तरह तरह के प्रयास और ढोंग करते रहते हैं. हाल ही में गृहमंत्री अमित शाह द्वारा बाबासाहेब आंबेडकर पर आपत्ति जनक टिप्पड़ी करने के पूरे भारत में इसका विरोध हुआ. राजनीतिक पार्टियाँ भी इसको अवसर की तरह भुनाने का भरसक प्रयास किया. इस सन्दर्भ में समाजवादी पार्टी की भूमिका और चरित्र उसकी ‘कथनी’ और ‘करनी’ पर सवालिया निशान खड़े कर रहे है. जहाँ एक तरफ सपा उक्त विवाद में भाजपा और गृहमंत्री अमितशाह पर हमलावर हो रही है, वहीँ दूसरी तरफ उसकी आंबेडकर और दलित समाज के प्रति उनकी घृणा और नफरत उसके शाशनकाल में अपने चरम पर था. प्रस्तुत लेख समाजवादी पार्टी द्वारा बाबा साहेब आंबेडकर और दलित पिछड़े समाज से आने वाले महापुरुषों और महानायीकाओं के प्रति सम्मान और प्रेम की भावना की जाँच करता है.

समाजवादी पार्टी जिसने हाल ही में नए सामाजिक और राजनितिक गठजोड़ बनाया है और नाम दिया है पीडीए (पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक). उक्त गठजोड़ के माध्यम से समाजवादी पार्टी अपने आपको आंबेडकर और दलित, पिछड़े और अल्पसंख्यक समाज का सबसे बड़ा हितैसी होने का ढोंग कर रही है. ढोंग कहना कत्तई अनुचित नहीं है क्योंकि अपने शासन काल में समाजवादी पार्टी ने बसपा के शाशनकाल में किये गए दलित, पिछड़े और अल्पसंख्यक समाज के लिए योजनाओं और उसके महापुरुषों के प्रति इसकी घृणा और नफरत किसी से छिपी नहीं है.

सपा नेताओं ने कहा:

सपा भाजपा सरकार पर दलितों और पिछड़ों के खिलाफ नीतिगत फैसले लेने का आरोप लगाया। सपा नेताओं ने कहा कि भाजपा सरकार संविधान को कमजोर करने और आरक्षण खत्म करने की कोशिश कर रही है। निजीकरण और भूमि अधिग्रहण की नीतियों ने दलितों की जमीन और अधिकार छीन लिए हैं। सपा ने भाजपा पर निशाना साधते हुए कहा कि उसने अपने शासनकाल में दलितों और पिछड़ों के खिलाफ कई नीतिगत फैसले लिए। सरकारी नौकरियों में आरक्षण को कमजोर करने और निजीकरण को बढ़ावा देने से दलितों और पिछड़े वर्गों को मुख्यधारा से बाहर करने की कोशिश की गई। भूमि अधिग्रहण और कॉर्पोरेट्स को फायदा पहुंचाने के लिए वंचित समुदायों की जमीनें हड़प ली गईं। किसानों की समस्याओं को नजरअंदाज कर, उनकी जमीनों को बड़े उद्योगपतियों को दिया गया।

सपा का दोहरा चेहरा: बहुजन प्रतीकों और स्मारकों का अपमान

भाजपा की आलोचना करने वाली समाजवादी पार्टी खुद भी दलित और पिछड़े समाज के अधिकारों और सम्मान की रक्षा करने में असफल रही है।

समाजवादी पार्टी, जो खुद को सामाजिक न्याय की पक्षधर कहती है, ने भी अपने कार्यकाल में दलित और पिछड़े समाज को ठेस पहुंचाने का काम किया है। लखनऊ में डॉ. बी. आर. अंबेडकर हरित उद्यान का नाम बदलकर जनेश्वर मिश्रा पार्क करना सपा की बहुजन विरोधी मानसिकता का बड़ा उदाहरण है। बाबा साहेब के नाम पर बने ‘भीम नगर’ जिले का नाम बदलकर मुगलकालीन नाम “संभल” करना भी सपा के जातिवादी सोच को दिखाता है।

नाम बदलने की राजनीति: लखनऊ में डॉ. बी. आर. अंबेडकर हरित उद्यान का नाम बदलकर जनेश्वर मिश्रा पार्क करना सपा की बहुजन विरोधी मानसिकता को उजागर करता है। इसी तरह, बाबा साहेब के नाम पर बने ‘भीम नगर’ जिले का नाम बदलकर मुगलकालीन नाम “संभल” कर दिया गया।

मूर्तियों का अपमान: सपा सरकार के दौरान डॉ. अंबेडकर सामाजिक परिवर्तन स्थल पर बहुजन महापुरुषों की मूर्तियों को तोड़ा गया।

विवादित बयान: सपा नेता आजम खान ने डॉ. अंबेडकर की मूर्तियों की उठी हुई उंगली पर टिप्पणी करते हुए कहा था कि “यह खाली प्लॉट की ओर इशारा करती है।” यह बयान न सिर्फ दलित समाज का अपमान करता है, बल्कि सपा की मानसिकता को भी उजागर करता है।

बहुजन समाज पार्टी का योगदान: दलित अस्मिता की रक्षा

जहां भाजपा और सपा ने अपने-अपने कार्यकाल में वंचित समाज के अधिकारों को कमजोर किया, वहीं बहुजन समाज पार्टी (बसपा) ने दलित और पिछड़े समाज के उत्थान के लिए कई सकारात्मक कदम उठाए। बसपा सरकार ने बाबा साहेब और अन्य बहुजन महापुरुषों के सम्मान में स्मारकों, पार्कों, कॉलेजों, और विश्वविद्यालयों का निर्माण कराया।

मायावती सरकार ने किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी का नाम छत्रपति शाहू जी महाराज के नाम पर रखा, लेकिन सपा ने इसे बदलकर फिर से किंग जॉर्ज कर दिया। यह सपा की बहुजन विरोधी मानसिकता का बड़ा उदाहरण है।

सपा का दावा: खोखला और दिखावटी

सपा द्वारा पेश किया गया पीडीए (पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक) मॉडल केवल राजनीतिक एजेंडे का हिस्सा है। सपा ने अपने कार्यकाल में न केवल दलितों और पिछड़ों के सम्मान को ठेस पहुंचाई बल्कि उनके प्रतीकों को मिटाने और उनकी आवाज दबाने का काम भी किया। जब सपा सरकार के दौरान बहुजन महापुरुषों की मूर्तियों को तोड़ा गया, तब अखिलेश यादव ने कोई कदम नहीं उठाया। आज, बाबा साहेब के प्रति प्रेम दिखाना केवल चुनावी राजनीति का हिस्सा है।

संविधान और सामाजिक न्याय की रक्षा का सवाल

भाजपा और सपा दोनों ने अपने-अपने कार्यकाल में दलितों और पिछड़ों के अधिकारों को कमजोर किया। भाजपा ने संविधान पर हमला किया, तो सपा ने बहुजन प्रतीकों को मिटाने की साजिश रची। ऐसे में बहुजन समाज के सामने सबसे बड़ी चुनौती है कि वे इन दोनों दलों की साजिशों को समझें और अपने अधिकारों की रक्षा के लिए एकजुट होकर संघर्ष करें।

निष्कर्ष

भाजपा और सपा दोनों ही दल दलित और पिछड़े समाज के लिए खतरनाक साबित हुए हैं। जहां भाजपा ने संविधान और आरक्षण को निशाना बनाया, वहीं सपा ने बहुजन प्रतीकों और महापुरुषों के सम्मान को ठेस पहुंचाई। दलित समाज को इन साजिशों को समझते हुए बाबा साहेब के दिखाए मार्ग पर चलकर अपने अधिकारों और सम्मान की रक्षा करनी होगी।

*दलित टाइम्स उन करोड़ो लोगो की आवाज़ है जिन्हें हाशिए पर रखा गया है। *

महिला, दलित और आदिवासियों के मुद्दों पर केंद्रित पत्रकारिता करने और मुख्यधारा की मीडिया में इनका प्रतिनिधित्व करने के लिए हमें आर्थिक सहयोग करें।

  Donate

प्रातिक्रिया दे

आपका ईमेल पता प्रकाशित नहीं किया जाएगा. आवश्यक फ़ील्ड चिह्नित हैं *