अंबेडकर जयंती पर जानिये संविधान और लोकतंत्र के बीच आस्था को ढाल क्यों बनाया जा रहा है?

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देश में चुनावी बिगुल बज चुका है और इस चुनावी मौसम में आज हर पार्टी सैद्धांतिक रूप से बाबासाहब भीमराव अंबेडकर की विचारधारा, लोकतंत्र और संविधान बचाने की चर्चा कर रही है. लेकिन भाजपा आस्था का सहारा लेकर आम जन मानस के मन तक अपनी बात पहुंचाना चाहती है। गारंटियों के इस दौर में धर्म ही एकमात्र सहारा बचा है भाजपा को 400 पार कराने में…

बाबा साहेब डॉक्टर भीमराव अंबेडकर की जयंती के अवसर पर जानिये  संविधान और लोकतंत्र के बीच आस्था को ढाल क्यों  बनाया जा रहा है? पर स्तंभकार, लेखिका और दलित चिंतक “सविता आनंद” की विशेष टिप्पणी

BR AMBEDKAR JYANTI 2024 : पिछले साल जारी वैश्विक भुखमरी सूचकांक में भारत को 125 देशों की सूची में 111वें स्थान पर रखा गया. हालांकि सरकार ने इसे खारिज किया है, लेकिन क्या मात्र खारिज़ कर देने से सरकार की नैतिक ज़िम्मेदारी पूरी हो जाती है? क्या सरकार को इस पर गंभीरता से नहीं सोचना चाहिए था? कभी 2020 में देश के विकसित होने का दावा आज 2047 तक के लिए धकेला जा चुका है। आज एक आम नागरिक भाजपा शासित केंद्र सरकार की ओर 2014 से टकटकी लगाए देख रहा है कि उसके परिवार का विकास कब होगा?

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वोटों का आदान प्रदान हमारे अधिकारों को सुनिश्चित करने का एक माध्यम :

आज़ादी के 75 वर्षों के बाद भी आज देश का युवा बेरोज़गारी, महंगाई, अच्छी शिक्षा, स्वास्थ्य, नौकरी और काम की मार झेल रहा है ऐसे में आने वाली सरकार से क्या अपेक्षाएं होनी चाहिए इस पर सिर्फ़ जनता को नहीं, वोट लेने वाली पार्टियों को भी सोचना होगा। वोटों का यह आदान प्रदान हमारे अधिकारों को सुनिश्चित करने का एक माध्यम है जो हमें संविधान देता है। यह व्यवस्था इसीलिए बनाई गई ताकि देश के हर एक नागरिक को अपने अधिकारों के प्रतिरूप मनपसंद सरकार चुनने का मौका मिल सके लोकतंत्र की यही खूबसूरती भी है और कर्तव्य भी। लेकिन लोकतंत्र तब मजबूत होगा जब संविधान के अनुरूप राष्ट्रीय एकता, समानता और न्याय के आधार पर सामाजिक सुधार को अपनाया जाएगा। संविधान व्यक्ति के सर्वाधिक तथा शासन के न्यूनतम अधिकारों और असमानता व गैर-बराबरी की खाई को पाटने का महत्त्वपूर्ण दस्तावेज होता है लेकिन पिछले कुछ समय से यह विवाद भी उठते रहें कि संविधान की आधारभूत मूल्यों और सिद्धांतों को ध्वस्त करने की कोशिशें लगातार जारी हैं।

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जनता की रोजमर्रा की परेशानियां बढ गई हैं :

संविधान अर्थात सरकार सेवा देने वाली एवं जनता सेवा लेनेवाली इकाई होती है। समाज में औसत 98% लोग सज्जन होते हैं और 2% अपराधी. 98% सज्जन लोगों की सेवा करने के लिए सरकार होती है और 2% अपराधियों को सजा देने के लिए न्यायालय. पिछले कुछ वर्षों से सरकार ने 98% को सेवा देने के बदले 2% को सजा देना शुरु कर दिया है। इसी कारण 98% की समस्याएं, जैसे महंगाई, बेरोजगारी, कमाई आदि की चोट बढ गई है। क्योंकि सरकार का सारा ध्यान बहुसंख्य की सेवा में नहीं अपवादों को सजा देने में लग गया है इसीलिए जनता की रोजमर्रा की परेशानियां बढ गई हैं। युवा बेरोज़गार है, घर पर महंगाई की मार है, बेटियां पहलवान नेता के चंगुल में है, और किसान सडकों के दंगल में हैै।

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दलित, पीड़ित और शोषित समाज को मूलभूत अधिकारों से रखा गया वंचित :

बाबासाहब डॉ. भीमराव अंबेडकर ने संविधान के जरिए सामाजिक न्याय, समानता और हाशिए पर रहने वाले समुदायों के अधिकारों की गारंटी सुनिश्चित की। जाति-आधारित भेदभाव को चुनौती देने और पीड़ितों के उत्थान की वकालत करने में उनके दूरदर्शी विचार और अथक प्रयास आज और भी महत्त्वपूर्ण और ज़रूरी लगते हैं, इसलिए, अंबेडकर के दृष्टिकोण को चुनावी आधार बनाकर समावेशी विकास को बढ़ावा देने और सभी नागरिकों के कल्याण को सुनिश्चित करने के उद्देश्य से नीतियों और कार्यक्रमों के आत्मनिरीक्षण और पुनर्मूल्यांकन किया जाना चाहिए। आज यह काम काफ़ी हद तक आम आदमी पार्टी की सरकार दिल्ली और पंजाब में करती दिखाई पड़ रही है। शिक्षा, स्वास्थ्य, पानी -बिजली, महिला सशक्तिकरण जैसी मूलभूत जरूरतें पूरी होने पर ही कोई व्यक्ति अपना जीवन सुधार सकता है और सदियों से दलित, पीड़ित और शोषित समाज को साजिशन इन्हीं चीजों से वंचित रखा गया।

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गारंटियों का सहारा लेकर पार्टियां बड़े बड़े वादे करती हैं :

आम आदमी पार्टी द्वारा दी जाने वाली सार्वभौमिक विश्वस्तरीय और मुफ़्त सुविधाओं का लाभ सबसे ज़्यादा दिल्ली में रहने वाले दलित, गरीब, वंचित, शोषित, अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों को हुआ है और अब पंजाब में भी मिल रहा है। इन्हीं गारंटियों का सहारा लेकर आज कई पार्टियों अपने अपने मेनिफेस्टो में बड़े बड़े वादे भी करती दिखाई दे रही हैं। डॉ. अम्बेडकर के विचारों के साथ सार्थक जुड़ाव के लिए सामाजिक न्याय, समानता और समावेशिता को बढ़ावा देने वाली नीतियों को लागू करने के लिए वास्तविक प्रतिबद्धता की आवश्यकता होती है और यह प्रतिबद्धता अरविंद केजरीवाल की नीतियों में दिखाई पड़ती है। क्योंकि अरविंद केजरीवाल की इन नीतियों ने लोगों के जीवन में सकारात्मक और गहरा प्रभाव डाला है।

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आस्थाओं के नाम पर संविधान के खिलाफ काम करने की कोशिश :

धार्मिक, सांस्कृतिक, या राजनीतिक आस्थाओं के नाम पर संविधान के खिलाफ काम करने की कोशिश करना एक संकट का सूचक है, जो किसी भी समाज के लिए खतरनाक हो सकता है। धर्मनिरपेक्षता, सामाजिक समानता, और न्याय के लिए संविधान के मूल्यों का समर्थन करना हमारे लोकतंत्र की मजबूती के लिए आवश्यक है लेकिन इसे ढाल बनाकर लोगों की चेतना में शामिल करना घातक है. यह व्यक्ति विशेष के मूलभूत अधिकारों और अभिव्यक्ति का हनन है।  राजनीतिक दलों को प्रतीकात्मक रूप से आगे बढ़ना चाहिए और हाशिए पर पड़े समुदायों के उत्थान और उत्पीड़न की संरचनाओं को खत्म करने की दिशा में ठोस कदम उठाने चाहिए।

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यह सिर्फ हमारे लोकतंत्र की सुरक्षा के लिए ही महत्वपूर्ण नहीं होगा बल्कि यह हमें विकसित राष्ट्र के निर्माण की ओर भी अग्रसर करेगा। हम भारत के लोगों का संविधान तभी बचेगा जब लोग वोट की ताकत से जबरन सरकारों को समझा देंगे कि सरकार का काम लोगों को सेवा देना है और सजा देने वाले नौकर को विदा कर दिया जाएगा।

*दलित टाइम्स उन करोड़ो लोगो की आवाज़ है जिन्हें हाशिए पर रखा गया है। *

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