NHFS Report: जातीय भेदभाव और शिक्षा की कमी से दलित-आदिवासी महिलाओं की स्वास्थ्य स्थिति सबसे खराब

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NHFS की रिपोर्ट के अनुसार, दलित महिलाओं की औसत आयु गरीबी, स्वच्छता की कमी और कुपोषण के कारण सवर्ण महिलाओं से 14.6 साल कम है, जहां 76.7% को बीमार होने पर इलाज नहीं मिलता। रिपोर्ट जातीय भेदभाव और शिक्षा की कमी को इन असमानताओं का प्रमुख कारण बताती है।

Health: दलितों के खिलाफ हिंसा का विषय अक्सर समाचारों में सुर्खियाँ बनता है, लेकिन इसके साथ ही दलितों की स्वास्थ्य संबंधी स्थिति भी गंभीर चिंता का विषय है। नेशनल फैमिली एंड हेल्थ सर्वे (NHFS-4) की रिपोर्ट के अनुसार, दलितों को स्वास्थ्य सेवाओं की अनुपलब्धता और भेदभाव का सामना करना पड़ता है, जिससे उनके हेल्थकेयर इंडेक्स भी काफी पिछड़े हुए हैं।

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दलित महिलाएं कम उम्र में मर जाती हैं

नेशनल फैमिली एंड हेल्थ सर्वे (NHFS-4) की रिपोर्ट ने दलित महिलाओं के स्वास्थ्य और जीवनकाल पर गंभीर चिंताओं को उजागर किया है। नेशनल फैमिली एंड हेल्थ सर्वे (NHFS-4) की रिपोर्ट और संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में दलित महिलाओं की स्वास्थ्य स्थिति अत्यंत चिंताजनक है। NHFS-4 की रिपोर्ट में यह पाया गया है कि दलित महिलाओं की औसत आयु बाकी जातियों की महिलाओं से 14.6 साल कम है। जहां दलित महिलाओं की औसत आयु केवल 39.5 साल है, वहीं सवर्ण जातियों की महिलाओं की औसत आयु 54.1 साल है। बता दें, फरवरी 2018 में संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट ने भी यह तथ्य सामने रखा था कि भारत में महिलाओं की आयु जाति पर निर्भर करती है।

कारण : 

रिपोर्ट के अनुसार, दलित महिलाओं की कम आयु का मुख्य कारण गरीबी, स्वच्छता की कमी, पानी की अनुपलब्धता, कुपोषण और स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं हैं। गरीबी के कारण दलित महिलाओं के पास स्वास्थ्य सेवाओं की पहुंच सीमित होती है, जिससे वे गंभीर बीमारियों और स्वास्थ्य समस्याओं का शिकार होती हैं। स्वच्छता की कमी और पानी की अनुपलब्धता भी उनकी स्वास्थ्य स्थिति को प्रभावित करती है, जिससे वे संक्रामक रोगों के प्रति अधिक संवेदनशील होती हैं। कुपोषण भी एक बड़ा कारक है, जो उनकी सामान्य स्वास्थ्य स्थिति और जीवनकाल को कम कर देता है।

महिलाओं को बीमार पड़ने पर इलाज उपलब्ध नहीं होता

नेशनल फैमिली एंड हेल्थ सर्वे (NHFS) की रिपोर्ट के अनुसार, आदिवासी महिलाओं को स्वास्थ्य देखभाल की सुविधाओं की सबसे बड़ी कमी का सामना करना पड़ता है। रिपोर्ट के मुताबिक, 76.7% आदिवासी महिलाओं को बीमार पड़ने पर इलाज की सुविधा उपलब्ध नहीं होती है, जबकि 70.4% दलित महिलाओं के लिए भी यही स्थिति बनी हुई है। इसके विपरीत, अन्य जातियों की तुलना में ओबीसी महिलाओं में 66.7% और सवर्ण महिलाओं में 61.3% को बीमार होने पर बुनियादी इलाज की सुविधाएं नहीं मिलतीं।

दलित महिलाएं अनीमिया की शिकार

इस रिपोर्ट में यह भी सामने आया है कि 25-49 वर्ष की उम्र की 55.9% दलित महिलाएं अनीमिया से प्रभावित हैं। यह आंकड़ा देश भर की महिलाओं में अनीमिया की सामान्य दर का एक गंभीर संकेतक है, जो सामाजिक और आर्थिक विषमताओं को स्पष्ट करता है। अनीमिया और अन्य स्वास्थ्य समस्याओं के कारण दलित महिलाओं को उचित स्वास्थ्य देखभाल की कमी और चिकित्सा सुविधाओं का अभाव झेलना पड़ता है। इसके अतिरिक्त, प्रेग्नेंसी के दौरान भी दलित और आदिवासी महिलाओं को आवश्यक मेडिकल सुविधाएं प्राप्त नहीं होतीं, जिससे उनकी स्वास्थ्य स्थिति और भी बिगड़ जाती है।

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रिपोर्ट ने स्पष्ट किया दलितों के प्रति भेदभाव है जारी

NHFS-4 की रिपोर्ट ने स्पष्ट किया है कि दलित महिलाओं की स्वास्थ्य समस्याएं और जीवनकाल में अंतर, भारत में जातीय और आर्थिक विषमताओं का एक गंभीर परिणाम हैं। यह रिपोर्ट एक स्पष्ट संकेत है कि समाज में असमानता और भेदभाव को खत्म करने के लिए ठोस कदम उठाने की आवश्यकता है ताकि सभी महिलाओं को समान स्वास्थ्य सुविधाएं और जीवन की गुणवत्ता मिल सके।

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