दिल्ली की सियासत में बसपा का नया प्रयोग: क्या बहनजी मायावती का नेतृत्व दिल्ली में बसपा को पुनर्जीवित कर पाएगा?

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दिल्ली विधानसभा चुनाव में बसपा प्रमुख मायावती ने पार्टी की पूरी कमान अपने हाथों में ले ली है। उन्होंने दिल्ली को 5 जोन में बांटकर 5 सिपहसालारों को जिम्मेदारी सौंपी है और आकाश आनंद को प्रचार अभियान का नेतृत्व सौंपा है। बहनजी  मायावती भाजपा और आप पर दलितों को गुमराह करने का आरोप लगाते हुए हर विधानसभा सीट पर दमखम से चुनाव लड़ेंगी। पार्टी महिलाओं, युवाओं और स्वच्छ छवि वाले उम्मीदवारों पर फोकस कर रही है। दलित वोट बैंक को वापस पाने के लिए डोर-टू-डोर अभियान और जनसभाओं की योजना बनाई गई है।

दिल्ली विधानसभा चुनाव के मद्देनज़र बहुजन समाज पार्टी (बसपा) ने अपने नए सियासी प्रयोग की तैयारी शुरू कर दी है। पार्टी प्रमुख मायावती ने इस बार दिल्ली की सियासत में अपनी सक्रियता बढ़ाने का ऐलान करते हुए पार्टी की कमान अपने हाथों में रखने का निर्णय लिया है। बहनजी ने दिल्ली को पांच ज़ोन में बांटकर अपने पांच प्रमुख सिपहसालारों को जिम्मेदारी सौंपी है। इनमें सुदेश आर्या, सीपी सिंह, धर्मवीर अशोक, रंधीर बेनीवाल और सुजीत सम्राट जैसे मजबूत नेताओं को अहम भूमिका दी गई है। इस बार बहनजी मायावती की योजना है कि दलितों और शोषितों का समर्थन दोबारा बसपा के पाले में लाया जाए, जिसे अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी (आप) और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने छीन लिया था।

आम आदमी पार्टी और भाजपा पर हमला: दलितों को गुमराह करने का आरोप

बहनजी  मायावती ने भाजपा और आप पर आरोप लगाया है कि उन्होंने दलित समुदाय को केवल वोट बैंक के रूप में इस्तेमाल किया है। भाजपा की नीतियां दलितों के अधिकार छीनने और आरक्षण को कमजोर करने की दिशा में काम कर रही हैं। वहीं, आप के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल पर निशाना साधते हुए बहनजी मायावती ने कहा कि उन्होंने दलितों के नाम पर केवल वादे किए और सत्ता में आने के बाद उन्हें भुला दिया। दिल्ली में दलित बस्तियों में मूलभूत सुविधाओं की कमी और आरक्षित सीटों पर ध्यान न देने का मुख्य कारण आप सरकार की विफल नीतियां हैं।

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कांशीराम की विरासत को आगे बढ़ाने का प्रयास

बसपा ने अपनी रणनीति में बाबा साहेब आंबेडकर और कांशीराम की विचारधारा को केंद्र में रखा है। बहनजी का कहना है कि दलित समुदाय को उनकी राजनीतिक ताकत का एहसास कराना जरूरी है। उन्होंने अपने पांच सिपहसालारों को यह निर्देश दिया है कि वे दिल्ली के हर विधानसभा क्षेत्र में घर-घर जाकर दलितों को बसपा की नीतियों और संघर्ष के बारे में जागरूक करें। बसपा ने यह भी ऐलान किया है कि इस बार टिकट केवल स्वच्छ छवि वाले नेताओं को ही दिया जाएगा, ताकि पार्टी की विश्वसनीयता बनी रहे।

आप की लहर और भाजपा की नीतियों से गुमनाम हुई बसपा

2013 में आप के उदय के साथ दिल्ली की सियासत में बसपा का वर्चस्व कम हुआ। 2020 के विधानसभा चुनाव में बसपा का वोट प्रतिशत 0.71% तक सिमट गया था। लेकिन बहनजी मायावती का मानना है कि दलित समाज को अब आप और भाजपा की सच्चाई समझ आ चुकी है। अरविंद केजरीवाल ने दलितों के लिए नीतिगत सुधार के नाम पर केवल दिखावा किया है। वहीं, भाजपा ने संविधान में छेड़छाड़ की मंशा से दलितों को हाशिए पर धकेलने का काम किया है।

मायावती का दिल्ली में डेरा: चुनावी घोषणा का इंतजार

बहनजी ने ऐलान किया है कि वह 15 जनवरी को दिल्ली में आकर खुद चुनाव अभियान की कमान संभालेंगी। उनका कहना है कि बसपा इस बार सभी 70 सीटों पर मजबूती से चुनाव लड़ेगी और महिलाओं व युवाओं को प्राथमिकता दी जाएगी। आकाश आनंद को प्रचार अभियान की जिम्मेदारी दी गई है, जो 5 जनवरी से अंबेडकर पार्क, कोंडली से बसपा के अभियान का शुभारंभ करेंगे।

दलितों का कोर वोट बैंक वापस लाने की रणनीति

दिल्ली की 12 आरक्षित सीटों और 17% दलित वोटरों पर फोकस करते हुए बसपा ने जाटव, वाल्मीकि, खटीक और अन्य दलित जातियों को जोड़ने का मिशन शुरू कर दिया है। बहनजी मायावती का कहना है कि भाजपा और आप दलितों को बांटने की राजनीति कर रही हैं, लेकिन बसपा उन्हें उनकी राजनीतिक ताकत का एहसास कराएगी।

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क्या बहनजी मायावती का फार्मूला दिल्ली में बसपा को पुनर्जीवित करेगा?

मायावती के इस नए सियासी प्रयोग पर सबकी नजरें टिकी हैं। क्या वह दलित समुदाय को भाजपा और आप के चंगुल से निकालकर बसपा के साथ जोड़ पाएंगी? या दिल्ली की सियासत में बसपा के लिए वापसी का रास्ता अभी भी मुश्किल रहेगा? इस सवाल का जवाब चुनाव परिणाम ही देंगे। लेकिन एक बात तय है कि मायावती के इस मास्टर प्लान ने दिल्ली की राजनीति में हलचल मचा दी है।

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