माता सावित्रीबाई फूले ने महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने के लिए कई पहल कीं जैसे विधवा पुनर्विवाह को बढ़ावा देना और गर्भवती विधवाओं को समाज के तिरस्कार से बचाने के लिए ‘बालहत्या प्रतिबंधक गृह’ की स्थापना की। ऐसी सामाजिक और धार्मिक व्यवस्थाओं के जाल में इस तरह के क्रन्तिकारी कदम उठाना अपने आप में अद्विती है.
बीते , 10 मार्च, महान समाज सुधारक और भारत की प्रथम महिला शिक्षिका सावित्रीबाई फुले जी की पुण्यतिथि मनाया। वे न केवल शिक्षा के क्षेत्र में अग्रणी थीं, बल्कि महिलाओं और दलित समाज के अधिकारों के लिए संघर्ष करने वाली एक क्रांतिकारी व्यक्तित्व भी थीं। उन्होंने अपना संपूर्ण जीवन शिक्षा के प्रसार, छुआछूत के उन्मूलन और महिला सशक्तिकरण के लिए समर्पित कर दिया।
उनका योगदान केवल दलित समाज तक सीमित नहीं था, बल्कि उन्होंने पूरे भारतीय समाज को यह संदेश दिया कि शिक्षा और समानता किसी भी राष्ट्र की प्रगति के मूल स्तंभ हैं। उनका संघर्ष और बलिदान हमें आज भी प्रेरित करता है कि सामाजिक असमानता और अन्याय के विरुद्ध अडिग रहकर संघर्ष करें।
शिक्षा और सामाजिक सुधार की अग्रदूत
1848 में, उन्होंने अपने जीवन साथी महात्मा ज्योतिराव फूले के साथ मिलकर पुणे में लड़कियों के लिए भारत में पहला विद्यालय स्थापित किया, जो भारतीय शिक्षा के इतिहास में एक क्रांतिकारी पहल थी। उनके प्रयासों से न केवल महिलाओं को शिक्षा का अधिकार मिला, बल्कि दलित और वंचित वर्गों को भी जागरूकता की एक नई रोशनी मिली।
सावित्रीबाई फूले न केवल एक शिक्षिका और समाज सुधारक थीं, बल्कि एक प्रख्यात कवयित्री भी थीं। उनकी रचनाएँ सामाजिक न्याय, शिक्षा और महिला सशक्तिकरण की गूंज हैं। “काव्य फुले” और “बावनकशी सुबोधरत्नाकर” उनकी प्रमुख काव्य कृतियाँ हैं, जिनमें उन्होंने समाज की विषमताओं और सुधार की आवश्यकता को प्रभावशाली ढंग से अभिव्यक्त किया है।
माता सावित्रीबाई फुले का समाज में योगदान
माता सावित्रीबाई फूले केवल भारत की प्रथम महिला शिक्षिका ही नहीं, बल्कि सामाजिक परिवर्तन और समानता की प्रमुख सूत्रधार थीं। उन्होंने शिक्षा, जाति-प्रथा, महिलाओं के अधिकार और सामाजिक बुराइयों के खिलाफ अपना संपूर्ण जीवन समर्पित किया। परिणाम स्वरुप, उनके प्रयासों ने न केवल दलित समाज बल्कि पूरे भारतीय समाज को जागरूक करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। पाठक के पढ़ने और समझने की सुविधा को ध्यान में रखकर माता सावित्रीबाई फूले का योगदान और उनके महत्त्व को आगे बिंदुआर रखा गया है.
1. भारत की पहली महिला शिक्षिका और दलित शिक्षा की प्रवर्तक
उस समय भारतीय समाज में महिलाओं और दलितों को समाजिक और धार्मिक बंधनों के कारण शिक्षा से वंचित रखा गया था। सावित्रीबाई फुले ने इस घोर अन्याय के खिलाफ आवाज उठाई और 1848 में पुणे में पहला बालिका विद्यालय खोला। यह विद्यालय सभी जातियों और धर्मों की लड़कियों के लिए था। इस विद्यालयों का महत्त्व इसलिए भी बढ़ जाता है कि इनमें जाति, धर्म से ऊपर उठकर सभी के लिए खुला हुआ था. यहाँ तक कि विधवाओं और सामाजिक रूप से बहिस्कृत कन्याओं को भी शिक्षा से जोड़ने का काम किया गया.
हालाँकि इन सबके लिए उन्हें बहुत सारी चुनौतियों का सामना भी करना पड़ा. लेकिन वो सारी चुनौतियों का सामना डटकर की. शिक्षा का प्रचार करने के दौरान लोग उन पर पत्थर और गोबर फेंकते थे, उन्हें अपमानित करते थे, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। उन्होंने न केवल लड़कियों को शिक्षा दी बल्कि समाज के उपेक्षित और दलित वर्ग के लोगों को भी शिक्षित करने के कारण उन्हें समाज द्वारा बार बार त्रिस्कृत होना पड़ा.
2. जाति-प्रथा और छुआछूत के खिलाफ आंदोलन
क्षैक्षिक आंदोलन चलाने के साथ साथ उन्होंने छुआछूत और जातिगत भेदभाव के खिलाफ प्रभावशाली संघर्ष किया। जैसा कि हम जानते हैं कि उस समय दलितों को मंदिरों, सार्वजनिक कुओं और स्कूलों में प्रवेश की अनुमति नहीं थी। इस तरह उन्होंने दलित, पिछड़े और महिलाओं को सम्मानजनक जीवन जीने के समाज में चेतना जगाई जिससे वो अपने अस्मिता, स्वाभिमान और सम्मान से जीवन जी सकें.
उन्होंने महात्मा ज्योतिराव फुले के साथ ‘सत्यशोधक समाज’ की स्थापना की, जिसका उद्देश्य जातिवाद को समाप्त करना और सामाजिक न्याय की स्थापना करना था। इस तरह ‘सत्यशोधक समाज’ ने भारत में ब्राह्मणवादी और सामंतवादी व्यवस्था के खिलाफ क्रांति की पटकथा लिखी. जिसका प्रभाव कालांतर में हमें देखने को मिलता है.
3. महिलाओं और विधवाओं के लिए संघर्ष
माता सावित्रीबाई फूले ने महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने के लिए कई पहल कीं जैसे विधवा पुनर्विवाह को बढ़ावा देना और गर्भवती विधवाओं को समाज के तिरस्कार से बचाने के लिए ‘बालहत्या प्रतिबंधक गृह’ की स्थापना की। ऐसी सामाजिक और धार्मिक व्यवस्थाओं के जाल में इस तरह के क्रन्तिकारी कदम उठाना अपने आप में अद्विती है.
4. सामाजिक बुराइयों के खिलाफ आंदोलन
उन्होंने बाल विवाह, सती प्रथा और अन्य सामाजिक बुराइयों के खिलाफ लड़ाई लड़ी। उनका मानना था कि महिलाओं को शिक्षित और आत्मनिर्भर बनाए बिना समाज में सुधार संभव नहीं है। जिस परिपाटी को बाबा साहेब आंबेडकर ने आगे बढ़ाया. यह दुर्भाग्य है कि भारत में मुख्यधारा की स्त्रीवाद की मुहीम चलाने वाले आंदोलनों का चेहरा इनको नहीं बनाया गया. परन्तु जाति उन्मूलन आन्दोलनों के मुख्य चेहरे और आदर्श के रूप में इनको स्थान प्राप्त है. क्योंकि उनकी कविताएँ स्त्रियों और वंचितों के लिए संघर्ष, आत्मनिर्भरता और आत्मसम्मान का संदेश देती हैं।
सावित्रीबाई फुले की कविता – नारी शक्ति का आह्वान
“जागो, उठो, शिक्षित बनो,
अपने अधिकारों को पहचानो।
तुम केवल चारदीवारी की वस्तु नहीं,
समाज की धुरी, शक्ति हो तुम।”
इस कविता के माध्यम से वे महिलाओं को शिक्षा प्राप्त करने और अपने अधिकारों के लिए लड़ने की प्रेरणा देती हैं। उनका कहना था कि यदि नारी शिक्षित होगी तो वह न केवल अपने जीवन को संवार सकेगी बल्कि पूरे समाज का उत्थान कर सकेगी।
आज के समय जब माता सावित्रीबाई फूले जैसे अन्य बहुजन महनायिकाओं और महपुरुषों को दलित पिछड़ा समाज अपना आदर्श मानने लगा है तब इनको अपना अपना कहने वालों की होड़ लग है. भारत के सारे राजनीतिक दल इनको अपने अपने पाले की जद्दोजहद कर रहे हैं. परन्तु बहुजन समाज में जन्मे सभी महनायिकाओं और महपुरुषों के प्रति सच्चा सम्मान और प्रेम किसने किया ये समझने का विषय है. इस संदर्भ में बहन मायावती जी द्वारा सभी महनायिकाओं और महपुरुषों के प्रति प्रेम कोई झुठला नहीं सकता. जो की अपने आप में ऐतिहासिक है.
माता सावित्रीबाई फुले के योगदान को सम्मान देने के लिए उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री बहन कुमारी मायावती जी की सरकार के दौरान कई योजनाएँ चलाई गईंजैसे-
1. सावित्रीबाई फुले के नाम पर पार्क और स्कूलों की स्थापना
बहन मायावती जी की सरकार ने सावित्रीबाई फुले की विरासत को आगे बढ़ाने के लिए कई पार्क और स्कूलों का निर्माण करवाया। इन संस्थानों का उद्देश्य दलितों और महिलाओं को शिक्षित करना और उन्हें समाज में समान अवसर प्रदान करना था।
2. सावित्रीबाई फुले छात्रवृत्ति योजना
महिलाओं और वंचित वर्ग की छात्राओं को शिक्षा में सहयोग देने के लिए “सावित्रीबाई फुले छात्रवृत्ति योजना” शुरू की गई। इस योजना के तहत छात्राओं को ₹25,000 की आर्थिक सहायता और एक साइकिल प्रदान की जाती थी, ताकि वे अपनी शिक्षा जारी रख सकें और आत्मनिर्भर बन सकें।
आज के समाज के लिए माता सावित्रीबाई फुले से सीख
1. शिक्षा को सभी के लिए सुलभ बनाना – आज भी कई जगहों पर लड़कियों और दलितों को शिक्षा से वंचित रखा जाता है। हमें इसे सभी के लिए अनिवार्य और सुलभ बनाना चाहिए।
2. जातिवाद और भेदभाव का उन्मूलन – सावित्रीबाई फुले के विचारों को अपनाकर हमें समाज से जातिवाद को मिटाना होगा।
3. महिला सशक्तिकरण – महिलाओं को शिक्षित, स्वावलंबी और आत्मनिर्भर बनाने के प्रयास किए जाने चाहिए।
4. सामाजिक सुधार आंदोलनों को समर्थन देना – हमें सामाजिक कुरीतियों के खिलाफ आवाज उठानी चाहिए और समानता, न्याय और स्वतंत्रता के लिए काम करना चाहिए।
श्रद्धांजलि एवं संकल्प
सावित्रीबाई फुले केवल एक नाम नहीं, बल्कि सामाजिक क्रांति का प्रतीक हैं। आज उनकी पुण्यतिथि पर हम उन्हें नमन करते हैं और उनके दिखाए मार्ग पर चलने का संकल्प लेते हैं।
“महान समाज सुधारिका सावित्रीबाई फुले जी को कोटि-कोटि नमन!”
दीपशिखा इन्द्रा
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