हमारे देश में बड़े-बड़े निर्माण परियोजनाओं में कितनी लापरवाही और भ्रष्टाचार है। जनता के पैसों का सही उपयोग न होने से न केवल आर्थिक हानि होती है, बल्कि लोगों को सरकारी योजनाओं और व्यवस्थाओं से विश्वास भी उठने लगता है। जब इतनी महंगी और महत्वपूर्ण परियोजनाओं में इस तरह की समस्याएं सामने आती हैं, तो यह दर्शाता है कि हमारी प्रणाली में गंभीर खामियां हैं।
देश की राजधानी दिल्ली का नाम सुनते ही दिमाग में बड़ी इमारत, मजबूत सड़के, पक्के मकान और सभी आधुनिक सुख-सुविधाओं के साथ सरकार की निगरानी में रहने वाले वास्तु चित्रित होते हैं, जो राजधानी की विश्वसनीयता और सजगता को प्रदर्शित करते हैं। लेकिन वर्तमान स्थिति को देखकर क्या अनुमान लगाएं, जब नई संसद भवन की छत से पानी टपक रहा है और सड़कों पर जलभराव हो रहा है? यह स्थिति राजधानी की बुनियादी ढांचे की गुणवत्ता और योजना की विफलता पर सवाल खड़े करती है।
नई संसद भवन का वीडियो वायरल हो गया है, जिसमें देखा जा सकता है कि 1200 करोड़ की लागत से बनी इस इमारत की छत से पानी टपक रहा है। इस पर लोग सोशल मीडिया पर खूब कटाक्ष कर रहे हैं। इतनी बड़ी रकम और भव्य निर्माण के बावजूद, जब बारिश का पानी संसद भवन की छत से टपकने लगता है, तो आम जनता के मन में सवाल उठना स्वाभाविक है। आइए, इस मुद्दे को विस्तार से समझें और कुछ अन्य उदाहरणों के साथ इसकी तुलना करें।
1200 करोड़ की लागत और फिर भी टपक रहा पानी :
नई संसद भवन का निर्माण आधुनिक भारत की शक्ति और उन्नति का प्रतीक माना जा रहा था। इसके निर्माण में 1200 करोड़ रुपये खर्च किए गए, जो अपने आप में एक बड़ी राशि है। लेकिन जब इतनी महंगी और महत्वपूर्ण इमारत की छत से पानी टपकने लगे, तो यह निश्चित रूप से योजना और निर्माण की गुणवत्ता पर सवाल खड़ा करता है। सोशल मीडिया पर लोग कह रहे हैं कि जब इतनी महंगी इमारत में भी इस तरह की समस्याएं हो सकती हैं, तो आम जनता के घरों की स्थिति क्या होगी? क्या यह संभव है कि निर्माण कार्य में कुछ महत्वपूर्ण मानकों की अनदेखी की गई हो? या फिर यह भ्रष्टाचार का एक और उदाहरण है? यह सवाल न केवल संसद भवन के निर्माण पर, बल्कि समग्र रूप से हमारी सरकारी योजनाओं और बुनियादी ढांचे की गुणवत्ता पर भी सवाल खड़े करता है।
वीडियो पर किसने क्या कहा :
नई संसद भवन की छत से पानी टपकने का वीडियो वायरल होने के बाद विभिन्न नेताओं ने अपनी प्रतिक्रिया दी।
समाजवादी पार्टी के नेता अखिलेश यादव ने ट्वीट किया, “1200 करोड़ की लागत से बनी संसद भवन की छत से पानी टपकना शर्मनाक है। यह सरकार की विफलता का जीवंत उदाहरण है।”
कांग्रेस के नेता राहुल गांधी ने कहा, “यह सरकार की नीतियों और योजना में गंभीर खामियों को दर्शाता है। जनता के पैसे का इस तरह से दुरुपयोग नहीं होना चाहिए।”
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कहा, “संसद भवन का निर्माण एक महत्वपूर्ण परियोजना थी, लेकिन इसमें इस तरह की समस्याएं आना सरकार की विफलता को दर्शाता है।”
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने कहा, “नई संसद भवन की छत से पानी टपकना यह दिखाता है कि इस निर्माण में गुणवत्ता की अनदेखी की गई है। जनता के पैसे का सही उपयोग होना चाहिए।”
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दिल्ली का अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा भी शामिल
नई संसद भवन की तरह, दिल्ली के नए अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे का उद्घाटन भी बहुत धूमधाम से हुआ था। इस हवाई अड्डे की लागत अरबों रुपये में थी, और इसे भारत के आधुनिकता का प्रतीक माना गया था। लेकिन उद्घाटन के कुछ ही समय बाद, हवाई अड्डे पर पानी भरने और छत से पानी टपकने की घटनाएं सामने आई थीं।
इससे यह स्पष्ट होता है कि सिर्फ महंगी और भव्य इमारत बनाने से ही समस्या का समाधान नहीं होता। निर्माण की गुणवत्ता, सामग्री का चयन और निर्माण प्रक्रिया में पारदर्शिता भी उतनी ही महत्वपूर्ण होती है। जब इतनी बड़ी लागत वाली इमारतों में इस तरह की समस्याएं सामने आती हैं, तो यह बताता है कि योजना और निर्माण में गंभीर खामियां हैं।
करोड़ों की लागत वाले पुल भी ढह जा रहे है :
बिहार के पुलों का हाल तो और भी चिंताजनक है। वहां करोड़ों रुपये खर्च कर बनाए गए पुल उद्घाटन के कुछ ही समय बाद ध्वस्त हो गए। उदाहरण के तौर पर गोपालगंज के सत्तरघाट पुल की लागत लगभग 263 करोड़ रुपये थी और यह पुल 29 दिनों में ही ध्वस्त हो गया। आइए आपको बिहार के कुछ और ऐसी घटना बताते हैं जहाँ करोड़ो की लागत वाला पुल पानी में ढह गया..
1. सत्तरघाट पुल (गोपालगंज): लागत 263 करोड़ रुपये, 29 दिनों में ध्वस्त।
2. बागमती पुल (दरभंगा): लागत 140 करोड़ रुपये, 2 महीने में ध्वस्त।
3. कोसी पुल (सुपौल): लागत 85 करोड़ रुपये, 3 महीने में ध्वस्त।
4. गंगा पुल (बक्सर): लागत 120 करोड़ रुपये, 45 दिनों में ध्वस्त।
5. कमला बलान पुल (मधुबनी): लागत 98 करोड़ रुपये, 1 महीने में ध्वस्त।
6.अररिया जिले में 18 जून को बकरा नदी पर बना पल भर भर कर गिर 12 करोड़ से निर्मित स्कूल का अभी उद्घाटन भी नहीं हुआ था
7. 4 जून 2023 सुल्तानगंज के क्रिया के अगवानी गंगा घाट पर निर्माणाधीन पुल के पिलर नंबर 10 11 और 12 अचानक गिरकर नदी में बह गए।
8. जुलाई 2022 में बिहार के कटिहार जिले में एक निर्माणाधीन पुल गिर गया था और पुल गिरने से 10 मजदूर घायल हो गए थे नालंदा में भी नवंबर 2022 में भी ऐसा ही हुआ था।
9. 9 जून 2022 को बिहार के सहरसा में एक फूल गिरने से कई मजदूर घायल हो गए बख्तियारपुर के कडूमर गांव में फूल गिरने से कई लोग दब गए थे।
10. 20 में 2022 को फतुहा पटना में अधिक बारिश के कारण एक पुल गिर गया था यह पल 1984 में बना था।
11. 30 अप्रैल 2022 भागलपुर इसी तरह खगड़िया में एक सड़क पुल गिर गया था इसके लिए खराब तरह के पदार्थ का इस्तेमाल की बात की गई थी
यह घटनाएं बताती हैं कि निर्माण कार्य में गुणवत्ता की अनदेखी और भ्रष्टाचार का बोलबाला है। जनता के पैसों का सही उपयोग न होने से न केवल आर्थिक हानि होती है, बल्कि लोगों का सरकारी योजनाओं और व्यवस्थाओं से विश्वास भी उठने लगता है। जब आम जनता यह देखती है कि उनके पैसे का उपयोग सही तरीके से नहीं हो रहा है, तो उनके मन में सरकार और प्रशासन के प्रति अविश्वास बढ़ता है।
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लापरवाही और भ्रष्टाचार :
यह स्थिति बताती है कि हमारे देश में बड़े-बड़े निर्माण परियोजनाओं में कितनी लापरवाही और भ्रष्टाचार है। जनता के पैसों का सही उपयोग न होने से न केवल आर्थिक हानि होती है, बल्कि लोगों को सरकारी योजनाओं और व्यवस्थाओं से विश्वास भी उठने लगता है। जब इतनी महंगी और महत्वपूर्ण परियोजनाओं में इस तरह की समस्याएं सामने आती हैं, तो यह दर्शाता है कि हमारी प्रणाली में गंभीर खामियां हैं।
क्या हम इससे कुछ सीखेंगे?
इन घटनाओं से सवाल उठता है कि क्या हमारे नेता और अधिकारी इन घटनाओं से सीख लेंगे और भविष्य में ऐसी गलतियों से बचने का प्रयास करेंगे? या फिर जनता को हमेशा ही इन समस्याओं का सामना करना पड़ेगा? सोचिए, अगर यही पैसा शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार सृजन जैसी जरूरी सेवाओं में लगाया जाए, तो हमारे देश का कितना विकास हो सकता है। लेकिन, जब जनता का पैसा बारिश की बूंदों के साथ बहने लगे, तो यह देश के विकास के लिए एक बड़ा धक्का होता है।
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भविष्य में पारदर्शिता और गुणवत्ता की आवश्यकता :
इसलिए, यह जरूरी है कि हम सभी मिलकर इन मुद्दों पर आवाज उठाएं और जिम्मेदार लोगों को उनके कार्यों के लिए जवाबदेह बनाएं, ताकि भविष्य में ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति न हो सके। संसद भवन हो, दिल्ली का अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा हो या फिर बिहार के पुल, सभी जगहों पर पारदर्शिता, गुणवत्ता और ईमानदारी की आवश्यकता है। जब तक हम इन मूल्यों को अपने निर्माण कार्यों में नहीं अपनाएंगे, तब तक हम अपने बुनियादी ढांचे में सुधार नहीं कर पाएंगे।
पारदर्शिता और गुणवत्ता की आवश्यकता को समझना और अपनाना हमारे बुनियादी ढांचे के सुधार के लिए आवश्यक है। यह सुनिश्चित करना कि हमारे द्वारा खर्च किए गए पैसे का सही उपयोग हो, हमारे देश के विकास के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है। जब जनता यह देखेगी कि उनके पैसे का सही उपयोग हो रहा है और उनकी समस्याओं का समाधान हो रहा है, तो उनका विश्वास सरकारी योजनाओं और व्यवस्थाओं में बढ़ेगा।
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