आज 15 मार्च है, मान्यवर कांशीराम जी का जन्मदिवस है। बहुजन आंदोलन के इस महान योद्धा को नमन करते हुए, हम उनके विचारों और संघर्षों को स्मरण करते हैं।
कांशीराम जी ने न केवल बहुजन समाज को राजनीतिक चेतना दी, बल्कि एक ऐसी राह दिखाई, जिससे सत्ता में भागीदारी और सामाजिक न्याय सुनिश्चित किया जा सके। उन्होंने स्पष्ट किया कि “राजनीति किए बिना सत्ता नहीं मिलेगी, और सत्ता के बिना परिवर्तन संभव नहीं है।”
आज के समय में, जब बहुजन समाज की राजनीति और विचारधारा के नाम पर सैकड़ों संगठन, पत्र-पत्रिकाएँ और दल उभर आए हैं, यह आवश्यक हो जाता है कि हम समझें कि कौन वास्तव में बहुजन समाज का हितैषी है और कौन केवल अवसरवादी?
इन्द्रा साहेब जी अपनी पुस्तक “मान्यवर साहेब संगठन – सिद्धांत एवं सूत्र” में लिखते हैं कि बहुजन समाज को अपने वास्तविक हितैषी और शोषकों के बीच भेद करने के लिए कुछ स्पष्ट मापदंड अपनाने होंगे। यदि कोई संगठन इन सात प्रमुख शर्तों को पूरा करता है, तो ही वह बहुजन समाज का असली प्रतिनिधि कहा जा सकता है।
1. बहुजन इतिहास और सांस्कृतिक विरासत से गहरा लगाव
कांशीराम जी का मानना था कि “जो समाज अपने इतिहास से कट जाता है, वह अपना भविष्य खो देता है।”
बहुजन राजनीति केवल एक राजनीतिक संघर्ष नहीं, बल्कि एक सांस्कृतिक और ऐतिहासिक पुनरुद्धार का आंदोलन है। यदि कोई संगठन बहुजन नायकों – डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर, ज्योतिबा फुले, सावित्रीबाई फुले, पेरियार, बिरसा मुंडा, शाहूजी महाराज और अन्य महान व्यक्तित्वों की विचारधारा को अपनाने की जगह केवल उनके नाम का उपयोग करता है, तो वह संगठन बहुजन हितैषी नहीं हो सकता।
वास्तविक बहुजन संगठन वही होगा, जो बहुजन समाज के संघर्षपूर्ण इतिहास को जीवंत बनाए रखे और उसकी सांस्कृतिक विरासत को पुनर्जीवित करे।

2. बहुजन वैचारिकी का होना
कांशीराम जी की राजनीति केवल सत्ता प्राप्ति तक सीमित नहीं थी, बल्कि एक ठोस विचारधारा पर आधारित थी।
सच्चा बहुजन संगठन वही होगा, जो अंबेडकरवाद, फुलेवाद और बहुजन चिंतन को अपनी नीतियों और कार्यक्रमों में लागू करे। अगर कोई संगठन केवल राजनीतिक समीकरणों के आधार पर चलता है, लेकिन बहुजन वैचारिकी से दूर है, तो वह बहुजन समाज के लिए हितकारी नहीं हो सकता।
3. बहुजन नायकों-नायिकाओं का नेतृत्व
“हमारे समाज का नेतृत्व कोई और नहीं करेगा, हमें अपना नेतृत्व खुद तैयार करना होगा।”
यदि किसी संगठन का नेतृत्व ऐसे लोगों के हाथों में है, जो बहुजन समाज से नहीं आते, उनकी समस्याओं से अनजान हैं, और केवल बहुजन समाज के नाम का उपयोग करते हैं, तो वह संगठन बहुजन हितैषी नहीं हो सकता।
सच्चे बहुजन नेतृत्व की पहचान यह है कि वह केवल चुनावी अवसरों के लिए सक्रिय न होकर समाज के प्रति निरंतर प्रतिबद्ध रहे, समाज के लिए संघर्ष करे और व्यक्तिगत स्वार्थ से ऊपर उठकर बहुजन समाज की भलाई के लिए कार्य करे।
4. बहुजन वित्त से पोषित होना
मान्यवर कांशीराम जी का एक महत्वपूर्ण सिद्धांत था –
“जो आर्थिक रूप से स्वतंत्र नहीं है, वह राजनीतिक रूप से भी स्वतंत्र नहीं हो सकता।”
यदि कोई संगठन बाहरी पूंजीपतियों, उच्च वर्ग के दानदाताओं, या शोषक शक्तियों के धन से संचालित होता है, तो वह बहुजन समाज के लिए नहीं, बल्कि उन पूंजीपतियों के हित में कार्य करेगा।
सच्चा बहुजन संगठन वही होगा, जो बहुजन समाज के सहयोग और समर्थन से संचालित हो, ताकि उसकी नीतियाँ और निर्णय बहुजन समाज के हितों के अनुसार हों, न कि बाहरी शक्तियों के इशारों पर।
5. सर्वजन हिताय, सर्वजन सुखाय का एजेंडा
“राजनीति का उद्देश्य केवल सत्ता प्राप्त करना नहीं, बल्कि समाज का उत्थान करना होना चाहिए।”
सिर्फ जातिगत मुद्दों पर राजनीति करना ही बहुजन राजनीति नहीं होती। एक सच्चे बहुजन संगठन का लक्ष्य शिक्षा, रोजगार, स्वास्थ्य और सामाजिक न्याय को सशक्त बनाना होना चाहिए।
अगर कोई संगठन केवल भावनात्मक नारों तक सीमित है, लेकिन बहुजन समाज के वास्तविक विकास के लिए ठोस नीतियाँ नहीं बना रहा है, तो वह बहुजन समाज का सच्चा हितैषी नहीं हो सकता।
6. खुद की रणनीति और नारे
“नकलची मानसिकता से आंदोलन सफल नहीं होते, हमें अपनी रणनीति खुद बनानी होगी।”
अगर कोई संगठन केवल दूसरे संगठनों की नकल करता है और अपनी विचारधारा या योजनाओं में मौलिकता नहीं रखता, तो वह केवल दिखावे के लिए काम कर रहा है।
सच्चा बहुजन संगठन वही होगा, जो अपनी स्वतंत्र रणनीति बनाए, अपने संघर्षों के नारे खुद तय करे और अपने आंदोलन को बाहरी प्रभावों से मुक्त रखे।
7. बहुजन नेतृत्व की प्रतिबद्धता
“एक सच्चा नेता समाज के लिए जीता है, न कि केवल अपने स्वार्थ के लिए।”
किसी भी संगठन की पहचान उसके नेतृत्व से होती है।
अगर कोई नेता केवल चुनाव के समय सक्रिय होता है, या अपने व्यक्तिगत हितों के लिए बहुजन समाज का उपयोग करता है, तो वह सच्चा बहुजन नेता नहीं हो सकता।
सच्चे बहुजन नेतृत्व में उन लोगों की प्रतिबद्धता होनी चाहिए, जो बिना किसी स्वार्थ के बहुजन समाज के हक के लिए लड़ें, बहुजन समाज को जागरूक करें और समाज को सत्ता में भागीदारी दिलाने के लिए संघर्ष करें।
कैसे पहचानें कि कोई संगठन इन शर्तों पर खरा उतरता है?
1. उनके पुराने कार्यों और नीतियों का विश्लेषण करें – क्या उन्होंने वास्तविक बदलाव किए हैं, या केवल भाषण दिए हैं?
2. फंडिंग के स्रोत को देखें – क्या यह संगठन बहुजन समाज के सहयोग से चलता है, या पूंजीपतियों और बाहरी शक्तियों से?
3. नेतृत्व को परखें – क्या यह नेतृत्व वास्तव में बहुजन समाज से आता है और समाज के लिए प्रतिबद्ध है?
4. विचारधारा को समझें – क्या यह संगठन डॉ. आंबेडकर, फुले, पेरियार और कांशीराम के विचारों पर चलता है, या सिर्फ उनके नाम का उपयोग करता है?
5. काम और नीतियों की समीक्षा करें – क्या संगठन केवल नारों तक सीमित है, या वास्तव में बहुजन समाज के लिए योजनाएँ बना रहा है?
यही उनके प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगी
यदि कोई संगठन, दल, पत्रिका या संस्था इन सातों शर्तों को पूरी तरह से पूरा करता है, तो वह निस्संदेह बहुजन समाज का हितैषी है। लेकिन अगर कोई संगठन इनमें से कुछ शर्तों पर भी खरा नहीं उतरता, तो उसकी मंशा पर सवाल उठाना जरूरी है।
बहुजन समाज को अब अवसरवादियों से सावधान रहकर अपनी राजनीतिक शक्ति को सही दिशा में ले जाना होगा। यही मान्यवर साहेब कांशीराम जी की सच्ची विरासत होगी, और यही उनके प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगी।
लेखिका – दीपशिखा इन्द्रा
स्त्रोत – A-LEF series – 1
मान्यवर कांशीराम साहेब
संगठन – सिद्धांत एवं सूत्र