अरविंद केजरीवाल ने स्वीकार किया कि उन्होंने दिल्ली में तीन बड़े वादे – यमुना की सफाई, स्वच्छ पेयजल, और सड़कों को यूरोपीय मानक का बनाना – पूरे नहीं किए हैं। हालांकि, उन्होंने अगले पांच साल में इन्हें पूरा करने की नई डेडलाइन दी है। विपक्ष और जनता इन अधूरे वादों को वादाखिलाफी मानते हुए सवाल उठा रहे हैं कि केजरीवाल सरकार पिछले आठ सालों में इन्हें क्यों नहीं पूरा कर सकी।
आम आदमी पार्टी (AAP) के मुखिया और दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने हाल ही में एक चुनावी सभा के दौरान स्वीकार किया कि उन्होंने दिल्ली की जनता से किए तीन प्रमुख वादों को पूरा नहीं किया है। यह स्वीकारोक्ति ऐसे समय में आई है जब दिल्ली में चुनावी माहौल गर्म है और विपक्षी पार्टियां पहले ही आम आदमी पार्टी पर वादाखिलाफी का आरोप लगा रही थीं। जनता के बीच भरोसे का संकट गहराता जा रहा है, क्योंकि अरविंद केजरीवाल ने अपने भाषण में यह मान लिया कि यमुना नदी की सफाई, स्वच्छ पेयजल की व्यवस्था, और दिल्ली की सड़कों को यूरोपीय मानकों का बनाने जैसे उनके बड़े वादे अभी भी अधूरे हैं। इन मुद्दों पर पिछले आठ सालों से केजरीवाल सरकार ने बड़े दावे किए थे, लेकिन अब पांच साल के लिए नई डेडलाइन देना कई सवाल खड़े करता है।
यमुना सफाई का सपना: क्या यह सिर्फ जुमला है?
केजरीवाल सरकार ने 2015 में सत्ता में आने के बाद दिल्ली की यमुना नदी को स्वच्छ और प्रदूषण मुक्त बनाने का वादा किया था। “2020 तक यमुना इतनी साफ होगी कि इसमें मछलियां तैरेंगी और लोग स्नान कर सकेंगे,” यह बात खुद केजरीवाल ने कही थी। लेकिन हकीकत यह है कि आज भी यमुना नदी गंदगी, औद्योगिक कचरे और सीवेज के पानी से भरी हुई है। इसके सफाई के नाम पर हजारों करोड़ रुपये खर्च किए गए, लेकिन परिणाम शून्य हैं। यमुना आज भी जहरीली नदी के रूप में जानी जाती है। अब केजरीवाल ने जनता से दो-तीन साल और मांगे हैं। सवाल यह उठता है कि क्या अगले पांच सालों में इस वादे को पूरा करने की गारंटी है, या यह सिर्फ एक और बहाना है?
साफ पानी का दावा: हकीकत या छलावा?
केजरीवाल सरकार ने दिल्लीवासियों को हर घर में स्वच्छ और पीने योग्य पानी उपलब्ध कराने का वादा किया था। वादा यह था कि दिल्ली में किसी को RO या फिल्टर की जरूरत नहीं पड़ेगी। लेकिन आज की हकीकत यह है कि दिल्ली के अधिकांश इलाकों में पानी की गुणवत्ता खराब है और कई जगह तो पानी की उपलब्धता ही एक बड़ी समस्या बनी हुई है। केजरीवाल का दावा है कि उन्होंने राजेंद्र नगर में पांडव नगर कॉलोनी में टोंटी से साफ पानी देना शुरू कर दिया है। हालांकि, यह सिर्फ एक छोटा सा क्षेत्र है, जबकि दिल्ली की बाकी जनता अब भी इस सुविधा से वंचित है। ऐसे में यह दावा जनता को गुमराह करने का प्रयास प्रतीत होता है।
दिल्ली की सड़कें: यूरोपीय मानक का सपना अधूरा क्यों?
दिल्ली की सड़कों को यूरोपीय मानकों का बनाने का वादा भी केजरीवाल सरकार का एक बड़ा सपना था। यह वादा पहली बार 2015 में किया गया था और फिर 2020 में इसे दोहराया गया। लेकिन सड़कों की स्थिति में सुधार के नाम पर सिर्फ कुछ मुख्य सड़कों पर काम किया गया, जबकि दिल्ली के बाहरी और ग्रामीण इलाकों की सड़कें अब भी जर्जर स्थिति में हैं। सड़कों पर गड्ढों और जलभराव की समस्या लगातार बनी हुई है। दिल्ली की जनता को यूरोपीय मानक की सड़कें देने का दावा अब भी एक दूर का सपना लगता है।
केजरीवाल सरकार की नई डेडलाइन: जनता के साथ फिर से धोखा?
अरविंद केजरीवाल ने अब इन तीन वादों को पूरा करने के लिए अगले पांच साल की नई डेडलाइन दे दी है। सवाल यह है कि जब पिछले आठ सालों में ये वादे पूरे नहीं हो सके, तो अब जनता पांच साल और इंतजार क्यों करे? क्या यह डेडलाइन केवल जनता को फिर से गुमराह करने का तरीका है? विपक्षी दलों का कहना है कि केजरीवाल सरकार हर चुनाव में नए वादे करती है, लेकिन उनके पुराने वादे हमेशा अधूरे रहते हैं। दिल्ली की जनता अब इन डेडलाइनों और बड़े दावों से थक चुकी है।
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जनता के बीच बढ़ता असंतोष
केजरीवाल सरकार के इन अधूरे वादों ने जनता के बीच असंतोष बढ़ा दिया है। चुनाव प्रचार के दौरान इस बात की चर्चा तेज है कि आम आदमी पार्टी केवल वादे करने में माहिर है, लेकिन उन्हें पूरा करने में विफल रही है। दिल्ली की जनता को अब यह तय करना होगा कि क्या वह फिर से इन्हीं अधूरे वादों के भरोसे ‘आप’ सरकार को मौका देगी या किसी नई दिशा में सोचने का प्रयास करेगी।
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