जो रामजी को नहीं भजता वो च$म##र है, जैसी जातिवादी टिप्पणी करने वाले रामभद्राचार्य को भी ज्ञानपीठ पुरस्कार, उठने लगे सवाल

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राम के बहाने दलित जाति के खिलाफ विवादास्पद टिप्पणी के बाद उठी थी जगदगुरु की उपाधि से नवाजे गये रामभद्राचार्य की गिरफ्तारी की मांग, अब उन्हें साहित्य के सर्वोच्च ज्ञानपीठ पुरस्कार से नवाजें जाने पर इस सम्मान को लेकर ही उठने लगे हैं सवाल और लोग कर रहे हैं तरह तरह की टिप्पणियां…

Jnanpith Award 2024 Rambhadracharya :  थोड़े समय पहले दलितों को आहत करने वाली टिप्पणी करने के बाद चर्चा में आये रामभद्राचार्य फिर एक बार चर्चा में हैं। चर्चा का कारण है उन्हें मिलने वाला ज्ञानपीठ पुरस्कार। जी हां, इस बार उन्हें 58वें ज्ञानपीठ पुरस्कार के लिये चुना गया है। उनके साथ ही प्रसिद्ध गीतकार गुलजार को भी ज्ञानपीठ पुरस्कार से नवाजा जायेगा।

जगद्गुरु के उपाधि से सम्मानित रामभद्राचार्य का एक वीडियो सोशल मीडया पर अयोध्या राम मंदिर में मूर्ति प्राण प्रतिष्ठा के दौरान जमकर वायरल हुआ था। इस वीडियो में रामभद्राचार्य भगवान राम की उपासना करने की बात करते हुए दलितों के लिए जातिसूचक शब्द का इस्तेमाल कर रहे हैं, जिसके बाद उनकी गिरफ्तारी की मांग भी उठने लगी थी। साथ ही उनके संत होने पर भी सवालिया निशान लगे थे कि आखिर एक संत की भाषा इतनी घटिया कैसे हो सकती है और उसकी मानसिकता इतनी जातिवादी कैसे हो सकती है। लोगों के बीच संतों की वाणी को लेकर भी विमर्श शुरू हो गया था कि क्या किसी संत को जाति विशेष के खिलाफ ऐसी वाणी का प्रयोग करना चाहिए।

गौरतलब है कि जो वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ था, वह संस्कार टीवी पर प्रसारित श्रीराम कथा पर रामभद्राचार्य के एक कार्यक्रम का था। जिसमें वह गोस्वामी तुलसीदाके हवाले से कहते हैं कि जो रामजी को नहीं भजता वो चमार है…’ यह वीडियो सामने आने के बाद सोशल मीडिया पर लोगों का जमकर गुस्सा फूटा और उनकी गिरफ्तारी की मांग उठने लगी थी। भीम आर्मी चीफ चंद्रशेखर आजाद ने भी उनके चमार वाले बयान की कड़ी निंदा की थी।

रामभद्राचार्य को ज्ञानपीठ पुरस्कार दिये जाने पर वरिष्ठ लेखक विष्णु नागर कहते हैं, ‘भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार गुलज़ार और रामभद्राचार्य को मिला है। गुलज़ार को तो छोड़िए, इस पुरस्कार का रामभद्राचार्य को देना, जो राममंदिर आंदोलन के स्तंभों में से हैं और जो राम को नहीं भजता, यह कहते हुए एक जाति विशेष के लिए अपमानजनक टिप्पणी के कारण हाल ही विवाद में रहे हैं, जिन पर 2009 में भी रामचरित मानस के साथ छेड़छाड़ का विवाद जुड़ा है, जिनके साहित्यिक अवदान के बारे में कोई नहीं जानता, उन्हें भी भारत का सर्वश्रेष्ठ माना जाने वाला पुरस्कार दिया जा सकता है तो फिर क्या बचा?’

विष्णु नागर आगे कहते हैं, ‘विनोद कुमार शुक्ल और हिंदी के अनेक और बड़े लेखकों की उपेक्षा करते हुए इस तरह का निर्णय हताश करनेवाला है। जिन विनोद कुमार शुक्ल को अंतरराष्ट्रीय पेन पुरस्कार मिल चुका है, वे भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार के लिए उपयुक्त नहीं पाए गए, यह दुर्भाग्यपूर्ण है। जिन्होंने अपनी उत्कृष्ट रचनात्मकता से पिछले चार दशकों से अधिक समय से हिंदी और हिंदीतर दुनिया को चमत्कृत किया है, जिनकी अनूठी कविताओं और दो उपन्यासों; ‘नौकर की कमीज़’ तथा ‘दीवार में एक खिड़की रहती थी’ का भारतीय साहित्य में विरल स्थान है, उन और अनेक अन्य महत्वपूर्ण रचनाकारों की उपेक्षा करके रामभद्राचार्य को पुरस्कृत करना अपमानजनक है। जिस भारतीय ज्ञानपीठ ने दशकों तक विभिन्न भारतीय भाषाओं के अधिकतर उत्कृष्टतम लेखकों को पुरस्कृत कर अपनी एक प्रतिष्ठा बनाई थी, उसे भी आखिर इस दौर से गुजरना पड़ा है।’

वह कहते हैं, ‘क्या गुलज़ार यह पुरस्कार स्वीकार करेंगे? वैसे अब किसी को किसी बात से दिक्कत रही नहीं और व्यावसायिक सिनेमा की दुनिया के आदमी के लिए तो समस्याएं अधिक होती भी नहीं। साहित्य अकादमी ने तो इस बीच प्रतिष्ठा खोई ही और अब यह पुरस्कार भी निर्विवाद नहीं रहा।’

रामभद्राचार्य को ज्ञानपीठ पर सवाल उठाते हुए अंबेडकरवादी भानु नंद कहते हैं, ‘रामभद्राचार्य को मिलेगा ज्ञानपीठ पुरस्कार। जो बहुजनों के महापुरुषों को उल्टा सीधा बोले, जो बहुजनों के संवैधानिक आरक्षण को कोसे, जो एससी समाज को मंच पर बैठकर अपमानित करें उसको ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया जाना क्या दर्शाता है?’

रामभद्राचार्य को ज्ञानपीठ मिलने पर उन्हें बधाई देते हुए उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने टिप्पणी की है, ‘पूज्य संत, संस्कृत भाषा के प्रकांड विद्वान व आध्यात्मिक गुरु, जगद्गुरु रामानंदाचार्य स्वामी रामभद्राचार्य जी महाराज को प्रतिष्ठित ज्ञानपीठ पुरस्कार-2023 से सम्मानित होने पर हृदयतल से बधाई! आपका तपस्वी और शुचिता पूर्ण जीवन पूरे समाज के लिए एक महान प्रेरणा है।’ रामभद्राचार्य के अलावा गीतकार गुलजार को भी बधाई देते हुए योगी कहते हैं, प्रख्यात गीतकार, कवि व फिल्मकार श्री गुलजार जी को प्रतिष्ठित ज्ञानपीठ पुरस्कार.2023 से सम्मानित होने पर हार्दिक बधाई! लेखन के प्रति समर्पण और साहित्य जगत में आपका अतुल्य योगदान सभी के लिए प्रेरणाप्रद है।’

वहीं पुरस्कारों की घोषणा के बाद ज्ञानपीठ चयन समिति ने एक बयान जारी किया है कि ‘यह पुरस्कार ;2023 के लिएद्ध दो भाषाओं के प्रतिष्ठित लेखकों को देने का निर्णय लिया गया है। संस्कृत साहित्यकार जगद्गुरु रामभद्राचार्य और प्रसिद्ध उर्दू साहित्यकार गुलजार… गुलजार के नाम से मशहूर संपूर्ण सिंह कालरा हिंदी सिनेमा में अपने कार्य के लिए पहचाने जाते हैं और वर्तमान समय के बेहतरीन उर्दू कवियों में शुमार हैं। वहीं चित्रकूट में तुलसी पीठ के संस्थापक और प्रमुख रामभद्राचार्य एक प्रसिद्ध हिंदू आध्यात्मिक गुरु, शिक्षक और चार महाकाव्य समेत 240 से अधिक पुस्तकों के लेखक हैं।’

कौन हैं रामभद्राचार्य
रामभद्राचार्य रामानंद संप्रदाय के वर्तमान चार जगद्गुरु रामानंदाचार्यों में से एक हैं और 1982 में उन्हें यह उपाधि मिली थी। 22 भाषाओं पर अधिकार रखने वाले रामभद्राचार्य ने संस्कृत, हिंदी, अवधी और मैथिली सहित कई भारतीय भाषाओं में रचनायें लिखी हैं। 2015 में उन्हें पद्म विभूषण पुरस्कार मिल चुका है। रामभद्राचार्य की वेबसाइट के अनुसार, उनका नाम गिरिधर मिश्र था। दो महीने की उम्र में एक प्रकार के संक्रामक रोग ‘ट्रेकोमा’ के कारण उनकी आंखों की रोशनी चली गई और शुरुआती वर्षों में उनके दादा ने उन्हें घर पर ही पढ़ाया।

क्या है ज्ञानपीठ पुरस्कार
ज्ञानपीठ पुरस्कार भारत का सर्वोच्च साहित्यिक पुरस्कार है। यह पुरस्कार भारतीय ज्ञानपीठ न्यास द्वारा भारतीय साहित्य में उत्कृष्ट योगदान के लिए दिया जाता है। यह पुरस्कार पहली बार 1965 में मलयालम कवि जी. शंकर कुरुप को उनके कविता संग्रह ओडक्कुझल के लिए दिया गया था। इस पुरस्कार से सम्मानित होने वाले व्यक्ति को 11 लाख रुपये की धनराशि दी जाती है। इसके अलावा प्रशस्ति पत्र के साथ ही वाग्देवी की कांस्य प्रतिमा भी दी जाती है।

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