कांग्रेस ने भाजपा और आम आदमी पार्टी (आप) पर दलितों, अल्पसंख्यकों और आदिवासियों के खिलाफ हिंसा और दमन को बढ़ावा देने का आरोप लगाते हुए उनकी चुप्पी पर सवाल उठाया। कांग्रेस नेताओं ने जहां भाजपा पर नफरत की राजनीति का आरोप लगाया, वहीं आप पर दलित कल्याण योजनाओं को रोकने और सांप्रदायिक हिंसा पर मूकदर्शक बनने का दावा किया। हालांकि, कांग्रेस की खुद की नीतियों को भी केवल चुनावी रणनीति बताते हुए उनकी ईमानदारी पर सवाल खड़े किए जा रहे हैं।
भारत में दलितों, आदिवासियों और अल्पसंख्यकों के खिलाफ बढ़ती हिंसा और उनके अधिकारों की अनदेखी पर विभिन्न राजनीतिक दलों की भूमिका पर सवाल खड़े हो रहे हैं। हाल ही में दिल्ली प्रदेश कांग्रेस प्रभारी काजी निजामुद्दीन और अन्य नेताओं ने आम आदमी पार्टी (आप) और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) पर तीखा हमला बोला। उन्होंने कहा कि ये दोनों पार्टियां दलितों, अल्पसंख्यकों और आदिवासियों के प्रति अपनी जिम्मेदारियों से बचती रही हैं और इन वर्गों के दमन के खतरनाक ट्रेंड को बढ़ावा दे रही हैं।
आप और भाजपा की चुप्पी: नफरत की राजनीति का समर्थन?
दिल्ली में जहांगीरपुरी और पूर्वी दिल्ली में हुई सांप्रदायिक हिंसा के मामलों में आम आदमी पार्टी की चुप्पी ने राजनीतिक और सामाजिक हलकों में हलचल मचा दी है। कांग्रेस नेताओं ने अरविंद केजरीवाल से सीधा सवाल किया कि वे इन घटनाओं पर चुप क्यों रहे। पूर्व मंत्री राजेंद्र पाल गौतम ने भी आप पर आरोप लगाया कि पार्टी ने हमेशा दलितों और अल्पसंख्यकों के मुद्दों को नजरअंदाज किया। उन्होंने कहा, “जब मैं मंत्री था, तब मैंने दलितों और पिछड़ों के लिए योजनाएं लाने की कोशिश की, लेकिन केजरीवाल सरकार ने मेरे प्रयासों को रोक दिया।”
भाजपा का एजेंडा: दलितों और अल्पसंख्यकों के खिलाफ नफरत की राजनीति
भारतीय जनता पार्टी पर हमेशा से दलितों और अल्पसंख्यकों के खिलाफ नफरत फैलाने का आरोप लगता रहा है। कांग्रेस नेताओं ने भाजपा की नीतियों और कार्यशैली को सीधे तौर पर अल्पसंख्यकों के खिलाफ बताया। उन्होंने बिलकिस बानो मामले में भाजपा की चुप्पी को शर्मनाक कहा और आरोप लगाया कि पार्टी की नीतियां केवल बहुसंख्यक वोट बैंक को खुश करने के लिए बनाई जाती हैं। सीएए और एनआरसी जैसे विवादास्पद कानूनों का भी जिक्र करते हुए कहा गया कि भाजपा का एजेंडा अल्पसंख्यकों को डराने और उन्हें दूसरे दर्जे का नागरिक बनाने का है।
कांग्रेस की कोशिशें: दलित और अल्पसंख्यकों का विश्वास जीतने की राजनीति?
हालांकि कांग्रेस ने खुद को दलितों और अल्पसंख्यकों के सबसे बड़े हितैषी के रूप में प्रस्तुत करने की कोशिश की है, लेकिन उनके अपने कार्यकाल में भी इन वर्गों के कल्याण के लिए पर्याप्त कदम नहीं उठाए गए। दलित आंदोलनों और सामाजिक संगठनों ने कांग्रेस पर आरोप लगाया कि वे केवल चुनाव के समय इन मुद्दों को उठाते हैं। काजी निजामुद्दीन ने खुद अपनी पार्टी की रणनीतियों को लेकर कोई ठोस जवाब नहीं दिया।
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दलित आंदोलन और सामाजिक न्याय की लड़ाई
वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य में दलित और अल्पसंख्यक समुदायों के लिए एकजुट होकर अपने अधिकारों के लिए लड़ना समय की मांग है। यह स्पष्ट हो चुका है कि मुख्यधारा की राजनीतिक पार्टियां उनके कल्याण के लिए केवल प्रतीकात्मक राजनीति करती हैं। चाहे वह आप की असफल योजनाएं हों, भाजपा की विभाजनकारी नीतियां हों, या कांग्रेस की दिखावटी सहानुभूति—तीनों दलों ने इन वर्गों के प्रति अपनी जिम्मेदारी नहीं निभाई है।
इस परिदृश्य में, दलित संगठनों और प्रगतिशील आंदोलनों को आगे आकर अपनी आवाज बुलंद करनी होगी। केवल राजनीतिक पार्टियों पर निर्भर रहना अब व्यर्थ साबित हो चुका है। जब तक दलित, आदिवासी और अल्पसंख्यक समुदाय अपने मुद्दों को लेकर स्वयं जागरूक और संगठित नहीं होंगे, तब तक यह लड़ाई अधूरी ही रहेगी।
*दलित टाइम्स उन करोड़ो लोगो की आवाज़ है जिन्हें हाशिए पर रखा गया है। *
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