Inspirational: दलित किसान की अनोखी खोज, एचएमटी-सोना चावल ने रचा इतिहास, पढ़िए दिल छूने वाली स्टोरी

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दादाजी खोबरागड़े, एक दलित किसान, ने दुनिया भर में मशहूर “एचएमटी-सोना चावल” की खोज की। उनकी इस उपलब्धि ने भारतीय कृषि को नई दिशा दी और किसानों के लिए एक सस्ती और उन्नत किस्म का चावल प्रदान किया। उनकी मेहनत और नवाचार ने उन्हें एक प्रेरणास्रोत बना दिया, जिससे दलित समाज और भारतीय कृषि दोनों को गौरव मिला।

भारत की हरित क्रांति के इतिहास में दलित किसान दादाजी खोबरागड़े का नाम स्वर्ण अक्षरों में लिखा जाना चाहिए। महाराष्ट्र के चंद्रपुर जिले के नांदेड़ गांव के एक साधारण किसान, दादाजी खोबरागड़े ने ऐसा अनमोल योगदान दिया, जिसने न केवल भारतीय कृषि को बदल दिया, बल्कि पूरी दुनिया में उनकी पहचान बनाई। उन्होंने एचएमटी-सोना चावल की किस्म विकसित की, जिसे अपनी अधिक उपज, गुणवत्ता और कम लागत के कारण दुनियाभर में सराहा गया।

संघर्ष से सफलता तक का सफर

दादाजी खोबरागड़े का जन्म एक गरीब दलित परिवार में हुआ था। उनके पास सीमित जमीन थी, लेकिन उनके सपने विशाल थे। गरीबी के बावजूद, उन्होंने खेती को विज्ञान के नजरिए से समझने की कोशिश की। 1983 में, अपने प्रयोगों और मेहनत के बल पर, उन्होंने चावल की एक नई किस्म विकसित की। यह किस्म कम पानी में उगाई जा सकती थी, जल्दी पकती थी और अधिक उपज देती थी। इस नई किस्म को “एचएमटी-सोना चावल” का नाम दिया गया, क्योंकि इसके दाने सोने जैसे चमकते थे।

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एचएमटी चावल: क्रांति का प्रतीक

एचएमटी चावल ने कृषि क्षेत्र में क्रांति ला दी। इस किस्म ने किसानों को कम लागत में अधिक लाभ कमाने का अवसर दिया। यह चावल भारत ही नहीं, बल्कि एशिया, अफ्रीका और अन्य महाद्वीपों में भी लोकप्रिय हुआ। इसकी विशेषता यह थी कि यह न केवल अधिक उत्पादन देता था, बल्कि स्वाद में भी बेहतरीन था।

मान्यता और भुला दिया गया संघर्ष

दादाजी खोबरागड़े को उनकी उपलब्धियों के लिए अनेक पुरस्कार मिले, लेकिन उनके योगदान को वह सम्मान और पहचान नहीं मिली जिसके वे हकदार थे। सरकार और समाज ने उनके संघर्ष और उपलब्धियों को लंबे समय तक अनदेखा किया। उनका जीवन इस बात का उदाहरण है कि कैसे समाज के हाशिए पर रहने वाले लोग भी दुनिया को बदल सकते हैं, अगर उन्हें अवसर मिले।

दुनिया के लिए प्रेरणा

आज दादाजी खोबरागड़े की कहानी सिर्फ चावल की एक किस्म तक सीमित नहीं है। यह कहानी इस बात का प्रमाण है कि प्रतिभा जाति और वर्ग की बेड़ियों से ऊपर होती है। उन्होंने साबित किया कि साधारण परिस्थितियों में भी असाधारण काम किए जा सकते हैं। उनकी यह उपलब्धि न केवल दलित समाज, बल्कि पूरी मानवता के लिए प्रेरणा है।

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खेत से लेकर दुनिया तक: दादाजी की विरासत

एचएमटी-सोना चावल आज भी भारत के लाखों किसानों की आजीविका का आधार है। यह केवल एक कृषि उत्पाद नहीं, बल्कि दादाजी खोबरागड़े के सपनों और संघर्ष का प्रतीक है। उनकी कहानी हमें यह याद दिलाती है कि अगर अवसर और समर्पण हो, तो कोई भी बाधा रास्ते में नहीं आ सकती।

मेहनत और जुनून का अद्वितीय उदाहरण

दादाजी खोबरागड़े ने अपनी मेहनत और वैज्ञानिक दृष्टिकोण से यह दिखा दिया कि महान उपलब्धियां समाज के किसी भी कोने से आ सकती हैं। उनकी कहानी भारतीय कृषि और समाज के लिए एक मील का पत्थर है। उनकी उपलब्धि हर किसान और युवा को सपने देखने और उन्हें पूरा करने का हौसला देती है।

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