हरियाणा विधानसभा चुनाव 2024 में यादव समुदाय का समीकरण महत्वपूर्ण है।कांग्रेस ने यादव नेताओं को टिकट दिया है, सभी प्रमुख दल जैसे BJP, कांग्रेस, बसपा, जेजेपी और एएसपी दल यादव वोटों को अपने पक्ष में लाने के लिए रणनीति बना रहे हैं।
Haryana Election: हरियाणा विधानसभा चुनाव 2024 में यादव समुदाय का राजनीतिक समीकरण जटिल और व्यापक है, और इसे समझने के लिए हमें इसके ऐतिहासिक, सामाजिक और राजनीतिक परिप्रेक्ष्य को ध्यान में रखना होगा। यादव समुदाय, जो हरियाणा की आबादी का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, विशेष रूप से राज्य के दक्षिणी हिस्सों में बड़ी संख्या में रहता है। महेंद्रगढ़, रेवाड़ी, गुड़गांव, नूंह, और आसपास के क्षेत्रों में यादवों की संख्या सबसे अधिक है, और इसलिए, इन क्षेत्रों को यादव बहुल क्षेत्र माना जाता है। पिछले कुछ दशकों में यादव समुदाय ने हरियाणा की राजनीति में बड़ी भूमिका निभाई है, और आगामी चुनाव में भी यह समुदाय एक निर्णायक कारक साबित हो सकता है।
ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य:
हरियाणा में यादवों का राजनीतिक प्रभाव 1980 के दशक से मजबूत हुआ जब वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी जैसी प्रमुख पार्टियों से जुड़ने लगे। चौधरी देवीलाल के नेतृत्व में, जो एक लोकप्रिय जाट नेता थे, यादवों को जाट समुदाय के साथ गठबंधन में लाया गया। हालांकि, धीरे-धीरे यादव समुदाय ने अपनी स्वतंत्र राजनीतिक पहचान बनाई और विभिन्न दलों में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई। यादवों ने खुद को एक मजबूत वोट बैंक के रूप में स्थापित किया और इस समुदाय के नेता विभिन्न राजनीतिक दलों में उभरने लगे। हरियाणा की राजनीति में यादव नेताओं की बढ़ती संख्या और प्रभाव ने उन्हें एक महत्वपूर्ण राजनीतिक शक्ति बना दिया है।
राजनीतिक दलों द्वारा यादव वोट बैंक पर ध्यान:
हरियाणा विधानसभा चुनाव 2024 में यादव वोटरों को साधने के लिए सभी प्रमुख राजनीतिक दल विशेष ध्यान दे रहे हैं। कांग्रेस, भाजपा, जेजेपी, और अन्य छोटे दल, जैसे आजाद समाज पार्टी (कांशीराम), सभी ने यादव बहुल क्षेत्रों में अपना जोर बढ़ाया है। यादवों के लिए ये चुनाव बहुत महत्वपूर्ण हैं, क्योंकि उनकी राजनीतिक मांगें और आकांक्षाएं इन चुनावों में प्रमुख भूमिका निभा सकती हैं।
बसपा और यादव समीकरण:
हरियाणा विधानसभा चुनाव 2024 में बहुजन समाज पार्टी (बसपा) का यादव समुदाय के साथ राजनीतिक समीकरण महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। परंपरागत रूप से बसपा का वोट बैंक दलित समुदाय रहा है, लेकिन इस बार पार्टी ने इनेलो (इंडियन नेशनल लोक दल) के साथ गठबंधन करके यादव समुदाय को भी साधने की कोशिश की है। यादव बहुल क्षेत्रों में बसपा ने महिला सशक्तिकरण, बेरोजगारी भत्ता, और मुफ्त सिलेंडर जैसी योजनाओं के जरिए गरीब और मध्यम वर्गीय यादव परिवारों को लुभाने का प्रयास किया है। मायावती की चुनावी रैलियों का भी इस समुदाय में असर दिखने की संभावना है। हालांकि, कांग्रेस और जेजेपी जैसी पार्टियां पहले से यादव वोट बैंक पर मजबूत पकड़ रखती हैं, लेकिन यदि बसपा-इनेलो गठबंधन यादव और दलित वोटों को एक साथ लाने में सफल रहता है, तो यह चुनावी समीकरण में बड़ा बदलाव ला सकता है।
जेजेपी और एएसपी का गठबंधन
जननायक जनता पार्टी (JJP) और आजाद समाज पार्टी (कांशीराम) का गठबंधन हरियाणा में यादव समुदाय के राजनीतिक समीकरण को महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित कर सकता है। JJP, दुष्यंत चौटाला के नेतृत्व में, पारंपरिक रूप से जाट और यादव समुदायों के बीच एक मजबूत गठबंधन बनाने की कोशिश करती रही है, विशेषकर दक्षिण हरियाणा के यादव बहुल क्षेत्रों में। दूसरी ओर, आजाद समाज पार्टी, चंद्रशेखर आजाद के नेतृत्व में, दलित-यादव गठबंधन को बढ़ावा देने की दिशा में सक्रिय है, और सामाजिक न्याय व समानता के मुद्दों पर जोर देती है। दोनों पार्टियों का गठबंधन यादव समुदाय को एक नया राजनीतिक विकल्प प्रस्तुत करता है, जो कांग्रेस और भाजपा के साथ चुनौतीपूर्ण मुकाबला कर सकता है। यदि JJP और आजाद समाज पार्टी मिलकर यादव और दलित समुदायों के मुद्दों को प्रभावी ढंग से उठाने में सफल होती हैं, तो यह गठबंधन चुनावी परिदृश्य में बड़ा बदलाव ला सकता है।
कांग्रेस और यादव समीकरण:
कांग्रेस पार्टी, जिसने पारंपरिक रूप से यादवों का समर्थन प्राप्त किया है, ने इस बार यादव बहुल क्षेत्रों में प्रभावशाली नेताओं को टिकट दिया है। महेंद्रगढ़ से राव दान सिंह और नूंह से आफताब अहमद जैसे नेताओं को टिकट देकर कांग्रेस ने यह संकेत दिया है कि वह यादव वोट बैंक को लेकर गंभीर है। राव दान सिंह और आफताब अहमद दोनों ही यादव समुदाय के प्रभावशाली नेता हैं, और उनके जरिए कांग्रेस ने इस समुदाय में अपनी पकड़ बनाए रखने का प्रयास किया है। कांग्रेस की रणनीति यादवों को जाटों और दलितों के साथ गठबंधन में बनाए रखने की है, ताकि वह एक मजबूत सामाजिक गठबंधन के जरिए सत्ता में वापसी कर सके।
बीजेपी और यादव समीकरण:
भाजपा की स्थिति यादव बहुल क्षेत्रों में थोड़ी चुनौतीपूर्ण है, क्योंकि इस समुदाय का झुकाव परंपरागत रूप से कांग्रेस की ओर रहा है। हालांकि, भाजपा ने विकास के मुद्दों, राष्ट्रीय सुरक्षा, और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता का हवाला देकर यादवों को अपनी ओर आकर्षित करने की कोशिश की है। भाजपा के नेता लगातार इस बात पर जोर दे रहे हैं कि उनकी सरकार ने यादव बहुल क्षेत्रों में विकास परियोजनाओं पर ध्यान दिया है, और उन्हें उम्मीद है कि इससे यादव समुदाय का समर्थन उन्हें मिलेगा। मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर भी अपने कार्यकाल के दौरान इन क्षेत्रों में विकास योजनाओं पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं, ताकि भाजपा यादव वोटों में सेंध लगा सके।
राजनीतिक दलों की रणनीतियां:
हरियाणा में यादव समुदाय को अपने पक्ष में करने के लिए राजनीतिक दल कई तरह की रणनीतियां अपना रहे हैं। चुनाव प्रचार के दौरान यादव नेताओं की भागीदारी बढ़ाने, स्थानीय मुद्दों पर जोर देने, और सामाजिक योजनाओं के जरिए इस समुदाय को लुभाने की कोशिश की जा रही है। भाजपा और कांग्रेस दोनों ने विकास के मुद्दे को केंद्र में रखते हुए यादव बहुल क्षेत्रों में विकास योजनाओं का प्रचार किया है। वहीं, जेजेपी और आजाद समाज पार्टी ने सामाजिक न्याय और समानता के मुद्दों पर जोर दिया है, ताकि वे यादव समुदाय के साथ बेहतर तालमेल बिठा सकें।
इसे देखें: “दिल्ली की जनता को हिसाब कौन देगा” मायावती ने केजरीवाल के इस्तीफे को बताया चुनावी चाल
दल यादव वोट बैंक को साधने में पूरी ताकत झोंक रहे
हरियाणा विधानसभा चुनाव 2024 में यादव समुदाय का समीकरण जटिल और महत्वपूर्ण है। यह समुदाय, जो राज्य की राजनीति में एक प्रमुख भूमिका निभाता है, चुनाव के नतीजों को प्रभावित कर सकता है। सभी प्रमुख राजनीतिक दल यादव वोट बैंक को साधने के लिए अपनी पूरी ताकत झोंक रहे हैं, और आगामी चुनावों में इस समुदाय का समर्थन जीतने के लिए हर संभव प्रयास कर रहे हैं।
*दलित टाइम्स उन करोड़ो लोगो की आवाज़ है जिन्हें हाशिए पर रखा गया है। *
महिला, दलित और आदिवासियों के मुद्दों पर केंद्रित पत्रकारिता करने और मुख्यधारा की मीडिया में इनका प्रतिनिधित्व करने के लिए हमें आर्थिक सहयोग करें।