पहले दलित की जान लो फिर परिवार को मुआवजा दो: ‘दलितों पर जुल्म और मुआवजे की राजनीति कब तक?’

Share News:

शिवपुरी में दलित युवक नारद जाटव की हत्या पर मुख्यमंत्री ने परिजनों को 4 लाख रुपये मुआवजा देने की घोषणा की, जबकि कांग्रेस ने इसे “दलितों पर अत्याचार और मुआवजे की राजनीति” करार दिया। विपक्ष का आरोप है कि सरकार न्याय दिलाने के बजाय केवल आर्थिक मदद देकर जिम्मेदारी से बचती है। सवाल उठता है, क्या मुआवजा पर्याप्त है, या जातिगत हिंसा रोकने के लिए कठोर कदम जरूरी हैं?

मध्यप्रदेश के शिवपुरी जिले में दलित युवक नारद जाटव की हत्या ने राज्य में जातिगत अत्याचार और प्रशासनिक लापरवाही पर फिर से सवाल खड़े कर दिए हैं। घटना सुभाषपुरा थाना क्षेत्र के ग्राम इंदरगढ़ की है, जहां पानी के कनेक्शन को लेकर विवाद में नारद जाटव को बेरहमी से लाठियों से पीटकर मार डाला गया। आरोप है कि गांव के सरपंच पदम धाकड़ और उनके परिवार ने विवाद को इतना बढ़ा दिया कि नारद की जान चली गई। यह मामला न केवल दलित अत्याचार की एक और कड़ी है, बल्कि यह भी दिखाता है कि जातिगत भेदभाव और हिंसा को रोकने के लिए किए गए सरकारी प्रयास धरातल पर कितने विफल हैं।

राजनीति की आड़ में संवेदनाओं की अनदेखी

मुख्यमंत्री मोहन यादव ने मामले पर दुख जताते हुए मृतक के परिवार को 4 लाख रुपए की सहायता राशि देने की घोषणा की और प्रभारी मंत्री को पीड़ित परिवार से मिलने का निर्देश दिया। उन्होंने यह भी कहा कि राज्य में ऐसी घटनाओं के लिए कोई जगह नहीं है और दोषियों पर सख्त कार्रवाई होगी। हालांकि, विपक्ष ने इसे सरकार की ‘मुआवजा संस्कृति’ और ‘असली समस्याओं से बचने का तरीका’ करार दिया। कांग्रेस नेता जीतू पटवारी ने कहा, “संविधान दिवस मनाने वाले भाजपा के राज में दलितों पर अत्याचार बढ़ता जा रहा है। मुआवजे की राजनीति से दर्द का इलाज नहीं होगा।”

घटना की पृष्ठभूमि: ‘पानी के कनेक्शन पर हत्या’

28 वर्षीय नारद जाटव, जो ग्वालियर जिले के निवासी थे, अपनी मामी के घर आए हुए थे। उनके मामी के खेत में पानी के कनेक्शन को लेकर गांव के सरपंच पदम धाकड़ के परिवार से विवाद हुआ। यह झगड़ा इतना बढ़ गया कि सरपंच और उनके बेटों ने नारद को खेत में पटककर लाठियों से बेरहमी से पीटा। घायल नारद को अस्पताल ले जाया गया, जहां डॉक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया। पुलिस ने मामले में 8 आरोपियों को हिरासत में लिया है, लेकिन इस घटना ने कानून व्यवस्था पर सवाल खड़े कर दिए हैं।

मुआवजा या समाधान?

यह पहली बार नहीं है जब दलित अत्याचार के मामलों में सरकार ने मुआवजे का सहारा लिया है। हर बार ऐसी घटनाओं के बाद एक ‘रोज़मर्रा का पैटर्न’ दिखाई देता है: पहले घटना, फिर राजनीतिक बयानबाजी, मुआवजे की घोषणा, और अंत में मामले को भुला दिया जाना। सवाल उठता है कि क्या आर्थिक सहायता से न्याय की पूर्ति हो सकती है? दलित समाज के लोग इस बात पर आक्रोशित हैं कि सरकार केवल आर्थिक मदद देकर अपनी जिम्मेदारी से बचना चाहती है। उनका कहना है कि ऐसे मामलों को रोकने के लिए सख्त कानून और उनकी प्रभावी क्रियान्वयन की जरूरत है, न कि केवल मुआवजे की।

‘अराजकता का अंत कब होगा?’

मुख्यमंत्री ने अपने बयान में कहा कि मध्यप्रदेश में “अराजकता के लिए कोई स्थान नहीं है,” लेकिन लगातार हो रही घटनाएं उनके दावे पर सवाल खड़े करती हैं। दलित नेताओं और सामाजिक कार्यकर्ताओं का कहना है कि जब तक जातिगत भेदभाव और हिंसा के लिए कठोर दंड नहीं दिया जाएगा, तब तक ऐसी घटनाएं होती रहेंगी। मुआवजा केवल एक अस्थायी उपाय है, स्थायी समाधान नहीं।

बदलाव की मांग

दलित युवक नारद जाटव की हत्या ने देश के सामाजिक ताने-बाने पर गहरे सवाल खड़े कर दिए हैं। क्या मुआवजा देने से दलितों के खिलाफ अत्याचार खत्म हो जाएंगे? क्या सरकार जातिगत भेदभाव को जड़ से खत्म करने के लिए गंभीर है? यह घटना केवल एक व्यक्ति की मौत नहीं, बल्कि सामाजिक अन्याय और प्रशासनिक उदासीनता की कहानी है। जब तक समाज और सरकार इस अन्याय के खिलाफ एकजुट होकर ठोस कदम नहीं उठाएंगे, तब तक दलितों पर अत्याचार का यह चक्र चलता रहेगा।

प्रातिक्रिया दे

आपका ईमेल पता प्रकाशित नहीं किया जाएगा. आवश्यक फ़ील्ड चिह्नित हैं *