दिल्ली विधानसभा चुनाव 2025 में कुल 719 उम्मीदवार मैदान में हैं, जिसमें सबसे ज्यादा 23 उम्मीदवार अरविंद केजरीवाल की नई दिल्ली सीट से दावेदारी कर रहे हैं। विपक्षी पार्टियां, बीजेपी और कांग्रेस, केजरीवाल सरकार को प्रदूषण, भ्रष्टाचार, अधूरे वादों, और खराब प्रबंधन जैसे मुद्दों पर घेर रही हैं। पटेल नगर और कस्तूरबा नगर जैसी सीटों पर मुकाबला कम उम्मीदवारों के बावजूद कड़ा होगा। जनता के बीच असंतोष और विकल्प की तलाश इस चुनाव को बेहद दिलचस्प बना रही है। 5 फरवरी को मतदान और 8 फरवरी को नतीजे बताएंगे कि AAP सरकार पर जनता ने भरोसा कायम रखा या बदलाव को चुना।
दिल्ली विधानसभा चुनाव 2025 का राजनीतिक तापमान चरम पर है, जहां अरविंद केजरीवाल की नई दिल्ली सीट पर सबसे ज्यादा 23 उम्मीदवार मैदान में हैं। यह इस बात का संकेत है कि उनकी लोकप्रियता और प्रशासनिक पकड़ पर सवाल उठ रहे हैं। 2020 में शानदार जीत हासिल करने वाले केजरीवाल के सामने इस बार बीजेपी के प्रवेश वर्मा और कांग्रेस के संदीप दीक्षित जैसे दिग्गज नेता खड़े हैं। जनता का कहना है कि केजरीवाल सरकार के वादे तो बड़े थे, लेकिन जमीन पर उनके असर को लेकर लोग संतुष्ट नहीं हैं। नई दिल्ली सीट पर बड़े पैमाने पर दावेदारी यह दिखाती है कि विपक्ष ने इस बार पूरी तैयारी के साथ सरकार को घेरने की योजना बनाई है।
दिल्ली में जलभराव और वायु प्रदूषण पर चुप्प क्यों है केजरीवाल सरकार?
981 में से 477 नामांकन रद्द, लेकिन 719 उम्मीदवार मैदान में
चुनाव आयोग के मुताबिक, इस बार कुल 981 उम्मीदवारों ने नामांकन दाखिल किया, जिसमें से 477 नामांकन रद्द कर दिए गए। 719 उम्मीदवार फाइनल सूची में जगह बनाने में सफल रहे। यह चुनावी आंकड़े इस बात की गवाही देते हैं कि दिल्ली के हर विधानसभा क्षेत्र में लड़ाई गंभीर और रोचक होने वाली है। खासतौर पर पटेल नगर और कस्तूरबा नगर जैसी सीटों पर जहां सबसे कम 5-5 उम्मीदवार मैदान में हैं, मुकाबला आम आदमी पार्टी (AAP), बीजेपी और कांग्रेस के बीच सीधा और कड़ा होने की उम्मीद है।
दिल्ली की जनता के सवाल: 10 साल में क्या बदला?
केजरीवाल सरकार के खिलाफ सबसे बड़ा मुद्दा उनके वादों की अधूरी सूची है। जनता बिजली-पानी के फ्री होने की योजना से खुश जरूर हुई, लेकिन यह योजनाएं लंबे समय तक टिकाऊ साबित नहीं हुईं। मोहल्ला क्लीनिक और शिक्षा व्यवस्था की तारीफों के बावजूद, कई इलाकों में प्राथमिक सुविधाएं अभी भी बदहाल हैं। बेरोजगारी, महिला सुरक्षा, और प्रदूषण जैसे प्रमुख मुद्दों पर केजरीवाल सरकार को विपक्ष ने जमकर घेरा है। बीजेपी और कांग्रेस ने इसे चुनावी प्रचार का प्रमुख हिस्सा बनाया है। जनता में बढ़ती असंतोष की लहर के चलते यह कहना मुश्किल नहीं कि इस बार केजरीवाल को 2020 जैसी प्रचंड जीत दोहराना बेहद कठिन होगा।
प्रचार में बढ़त, लेकिन प्रदर्शन पर सवाल
AAP सरकार पर विपक्ष ने आरोप लगाए हैं कि उसने जनता को गुमराह किया है। केजरीवाल ने शिक्षा और स्वास्थ्य को अपनी प्रमुख उपलब्धि के रूप में पेश किया, लेकिन इन क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार और कुप्रबंधन के आरोप भी लगे। बीजेपी ने दिल्ली के कूड़ा प्रबंधन और प्रदूषण के मुद्दे पर सरकार को घेरते हुए कहा कि यह ‘नरक मुनि सरकार’ बन चुकी है, जो सिर्फ विज्ञापनों में उपलब्धियां दिखा रही है। कांग्रेस का भी मानना है कि केजरीवाल ने केंद्र सरकार के खिलाफ लगातार आरोप लगाकर जनता का ध्यान भटकाने का काम किया है।
नई दिल्ली सीट: क्या जनता बदलेगी अपना रुख?
नई दिल्ली विधानसभा क्षेत्र पर 23 उम्मीदवारों की दावेदारी ने यह स्पष्ट कर दिया है कि केजरीवाल के खिलाफ मजबूत विरोधी खड़े हैं। बीजेपी के प्रवेश वर्मा ने जनता के बीच प्रदूषण और भ्रष्टाचार का मुद्दा उठाकर केजरीवाल पर निशाना साधा है। कांग्रेस के संदीप दीक्षित ने आरोप लगाया है कि केजरीवाल ने जनता के विश्वास के साथ खिलवाड़ किया और उनके वादे खोखले साबित हुए।
जनता की नाराजगी या बदलाव की लहर?
दिल्ली में इस बार का चुनाव केवल AAP बनाम बीजेपी नहीं है, बल्कि जनता बनाम वादों की सरकार का भी है। 2020 में जनता ने भारी बहुमत से AAP को सत्ता सौंपी थी, लेकिन अब लोगों की उम्मीदें टूटती नजर आ रही हैं। दिल्ली के लोग बिजली-पानी की योजनाओं से आगे बढ़कर विकास और स्थायी समाधान की मांग कर रहे हैं। कांग्रेस और बीजेपी के आक्रामक प्रचार से यह साफ हो रहा है कि जनता विकल्प तलाश रही है।
क्या केजरीवाल सरकार दोहरा पाएगी इतिहास?
5 फरवरी को होने वाले मतदान और 8 फरवरी को आने वाले नतीजे यह तय करेंगे कि दिल्ली की जनता ने केजरीवाल सरकार पर फिर से भरोसा जताया है या बदलाव का फैसला किया है। फिलहाल, चुनावी माहौल में अरविंद केजरीवाल की नई दिल्ली सीट से लेकर कस्तूरबा नगर जैसे छोटे क्षेत्र तक मुकाबला बेहद कड़ा है। AAP के लिए यह चुनाव उसके प्रदर्शन और वादों की सच्चाई पर जनता का फैसला साबित होगा।
*दलित टाइम्स उन करोड़ो लोगो की आवाज़ है जिन्हें हाशिए पर रखा गया है। *
महिला, दलित और आदिवासियों के मुद्दों पर केंद्रित पत्रकारिता करने और मुख्यधारा की मीडिया में इनका प्रतिनिधित्व करने के लिए हमें आर्थिक सहयोग करें।