स्वास्थ्य व्यवस्था पर सबसे ज्य़ाजा खर्च करने के बाद भी उत्तर प्रदेश का हेल्थ सिस्टम क्यों है सवालों के घेरे में..?

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यूपी की योगी सरकार ने इसी साल फरवरी में अपना बजट पेश किया था। जो 10 हजार करोड़ रुपए का था। वहीं इसमें योगी सरकार के वित्त मंत्री सुरेश खन्ना ने 27, 086 करोड़ रुपए यूपी की स्वास्थ्य व्यवस्था पर खर्च करने का प्रावधान रखा था। यह यूपी की स्वास्थ्य व्यवस्था के लिए भारी भरकम बजट था। हालांकि इसके बावजूद यूपी में अस्पतालों की खस्ता हालत किसी से छिपी नहीं है।

 

लखनऊ: उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में सरकारी अस्पतालों में पीडियाट्रिक वेंटिलेटर की भारी कमी की वजह से बच्चों की जान जा रही है। हाल ही में, यह स्थिति और भी भयावह हो गई है क्योंकि बच्चों को सही समय पर वेंटिलेटर न मिलने के कारण माता-पिता दर-दर भटक रहे हैं। तीन प्रमुख सरकारी चिकित्सा संस्थानों में केवल 62 वेंटिलेटर उपलब्ध हैं, जिनमें पांच माह से 14 साल तक के बच्चों को भर्ती किया जाता है। इसके विपरीत, सरकारी अस्पतालों में मात्र 28 वेंटिलेटर हैं, जो एक साल से अधिक उम्र के बच्चों के लिए हैं।

अस्पतालों में वेंटिलेटर की कमी :

सिविल अस्पतालों में एक साल से अधिक उम्र के बच्चों के लिए मात्र आठ वेंटिलेटर हैं, जो हमेशा फुल रहते हैं। इस वजह से यहां आने वाले बच्चों के लिए वेंटिलेटर उपलब्ध नहीं हो पाते, जिससे बच्चों की जान चली जाती है। वहीं लोकबंधु अस्पताल में 10 पीडियाट्रिक वेंटिलेटर हैं, परंतु यह भी बच्चों की जरूरतों को पूरा करने में असमर्थ हैं। बलरामपुर अस्पताल में भी 10 वेंटिलेटर होने का दावा किया गया है, लेकिन फिर भी वेंटिलेटर की कमी बनी रहती है।

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नवजातों के लिए वेंटिलेटर की स्थिति :

जन्म के बाद नवजातों के लिए किसी भी सरकारी अस्पताल में वेंटिलेटर की सुविधा नहीं है। इस वजह से नवजातों को केजीएमयू, लोहिया और पीजीआई अस्पतालों में ले जाना पड़ता है। केजीएमयू बाल रोग विभाग में 46 वेंटिलेटर हैं, लेकिन जरूरतमंद बच्चों को वेंटिलेटर मिलना मुश्किल होता है। लोहिया संस्थान में केवल 10 पीडियाट्रिक वेंटिलेटर हैं। पीजीआई में सिर्फ छह बेड हैं, जो वेंटिलेटर सुविधा से लैस हैं।

वेंटिलेटर की कमी से बच्चों की मौतें :

उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में बच्चों को समय पर वेंटिलेटर न मिल पाने की वजह से आए दिन बच्चों की मौतें हो रही हैं। इसके बावजूद राज्य सरकार द्वारा स्वास्थ्य व्यवस्था को सुधारने के बजाय अन्य प्राथमिकताओं पर ध्यान केंद्रित किया जा रहा है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में नाम बदलने और नई नीतियों को लागू करने के कार्यों को प्राथमिकता दी जा रही है, जबकि स्वास्थ्य सेवा की गंभीर समस्याओं पर पर्याप्त ध्यान नहीं दिया जा रहा है।

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अभिभावकों की पीड़ा :

अस्पतालों में वेंटिलेटर की कमी से बच्चों के इलाज में हो रही देरी से माता-पिता की पीड़ा बढ़ रही है। बच्चों के वेंटिलेटर के लिए भटकने वाले अभिभावकों को यह उम्मीद होती है कि उनके बच्चों को सही समय पर उपचार मिल सके, लेकिन वेंटिलेटर की कमी के कारण यह संभव नहीं हो पाता। यह स्थिति न केवल बच्चों की जान के लिए खतरा है बल्कि माता-पिता के लिए भी बेहद पीड़ादायक है।

इस गंभीर स्थिति को देखते हुए, स्वास्थ्य व्यवस्था को सुधारने और बच्चों के इलाज के लिए आवश्यक उपकरणों की उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए त्वरित कदम उठाने की आवश्यकता है। सरकारी अस्पतालों में वेंटिलेटर की संख्या बढ़ाने और स्वास्थ्य सेवाओं की गुणवत्ता में सुधार करना अत्यंत आवश्यक है ताकि भविष्य में इस प्रकार की घटनाओं को रोका जा सके। 

सुस्त चिकित्सा व्यवस्था और बदहाली पर उठे सवाल : 

इस पूरी समस्या पर नगीना सांसद चंद्रशेखर आज़ाद ने सरकार की सुस्त चिकित्सा व्यवस्था और उसकी बदहाली पर सवाल उठाए हैं। उन्होंने अपने सोशल मीडिया X पर पोस्ट करते हुए लिखा, “बेहद पीड़ादायक। ये हाल उस प्रदेश की “राजधानी”का है जिसके मुख्यमंत्री शहरों व संस्थानों का नाम बदलने और दुकानों और ठेलों पर नाम लिखने का काम प्राथमिकता से कर रहे हैं। देश ने अभी हाल ही में कोरोना जैसी महामारी को झेला जिसके कारण अनगिनत लोगों की जान गई यद्यपि ये कम हो सकती थी अगर स्वास्थ्य व्यवस्था अच्छी होने पर उस त्रासदी के बाद भी उनकी आंखें नहीं खुली, योगी जी उन माता-पिता का दर्द नहीं समझ पाएंगे जिनके बच्चों की जान स्वास्थ्य व्यवस्था की बदहाली के कारण जा रही हैं क्योंकि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी तो अपनी ही धुन में मस्त हैं।” 

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स्वास्थ्य व्यवस्था पर कितना खर्च कर रही योगी सरकार : 

मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो यूपी की योगी सरकार ने इसी साल फरवरी में अपना बजट पेश किया था। जो 10 हजार करोड़ रुपए का था। वहीं इसमें योगी सरकार के वित्त मंत्री सुरेश खन्ना ने 27, 086 करोड़ रुपए यूपी की स्वास्थ्य व्यवस्था पर खर्च करने का प्रावधान रखा था। यह यूपी की स्वास्थ्य व्यवस्था के लिए भारी भरकम बजट था। हालांकि इसके बावजूद यूपी में अस्पतालों की खस्ता हालत किसी से छिपी नहीं है। ये दुख की बात है कि यूपी की स्वास्थ्य व्यवस्था में भारी भरकम बजट आवंटित तो कर दिया गया लेकिन उसका इस्तेमाल सही तरीके से नहीं हो पा रहा है। क्योंकि अगर होता तो यूपी के नवजात बच्चों को वेंटिलेटर की कमी से जान नहीं गवानी पड़ती।   

 

 

 

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