दिल्ली चुनाव 2025 में BJP ने 30 SC बहुल सीटों पर फोकस कर 45,000 कार्यकर्ताओं और 30 सीनियर नेताओं को दलित वोटरों को लुभाने के लिए तैनात किया है। अंबेडकर और संविधान का सहारा लेकर योजनाओं का प्रचार किया जा रहा है, लेकिन दलित समुदाय ने इन दावों को खोखला बताते हुए सवाल उठाया है कि अब तक उन्हें क्या मिला। विपक्ष ने इसे दिखावटी राजनीति करार दिया है। जागरूक दलित वोटर अब वादों के बजाय जमीनी बदलाव चाहते हैं, जिससे BJP के लिए चुनौती बढ़ गई है।
Delhi News: दिल्ली विधानसभा चुनाव 2025 के मद्देनजर भारतीय जनता पार्टी (BJP) ने 30 SC बहुल सीटों को फोकस में रखा है। इन सीटों पर कम से कम 15% दलित वोटर मौजूद हैं, जो किसी भी उम्मीदवार की जीत-हार तय करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। BJP ने इन सीटों पर 45,000 कार्यकर्ताओं को तैनात किया है और हरियाणा, राजस्थान, पश्चिम बंगाल, पंजाब और उत्तर प्रदेश से 30 सीनियर नेताओं को बुलाकर अपने चुनावी अभियान को मजबूत किया है। इन नेताओं का मुख्य काम दलित वोटरों को BJP की ओर आकर्षित करना है।
“संविधान और अंबेडकर” का सहारा
BJP ने अपने कैंपेन में बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर और संविधान के महत्व को जोर-शोर से शामिल किया है। रैलियों और जनसभाओं में बार-बार यह दावा किया जा रहा है कि पार्टी दलितों के अधिकारों के प्रति प्रतिबद्ध है और उन्होंने हमेशा अंबेडकर के दिखाए रास्ते पर चलने का प्रयास किया है। नेताओं ने कहा है कि BJP ने “हर घर शौचालय,” “उज्ज्वला योजना,” और “हर गरीब को मकान” जैसी योजनाओं के जरिए दलितों का उत्थान किया है।
दलितों का सवाल: “हमें अब तक क्या मिला?”
हालांकि, दलित समाज के बीच BJP की यह कोशिश सवालों के घेरे में है। कई दलित वोटरों ने इस चुनावी अभियान को महज दिखावा करार दिया है। उनका कहना है कि BJP सरकार ने संविधान और अंबेडकर के नाम पर राजनीति तो की, लेकिन ज़मीन पर बदलाव नहीं लाए। एक स्थानीय दलित नेता ने कहा, “वे हर चुनाव में अंबेडकर का नाम लेकर आते हैं, लेकिन जब दलितों को सुरक्षा और सम्मान देने की बात आती है, तब उनकी चुप्पी गहरी हो जाती है। आज भी देश के कई हिस्सों में दलितों पर अत्याचार हो रहे हैं, लेकिन BJP का नेतृत्व इन मुद्दों पर मूकदर्शक बना रहता है।”
जमीनी हकीकत: योजनाएं और समस्याएं
BJP की जिन योजनाओं को दलितों के लिए गेम-चेंजर बताया जा रहा है, उनका लाभ हर किसी को नहीं मिला। कई दलितों का कहना है कि उज्ज्वला योजना के तहत गैस सिलेंडर तो मिला, लेकिन उसकी कीमत इतनी बढ़ गई कि दोबारा भरवाना संभव नहीं। “हर घर शौचालय” योजना का भी हाल ऐसा ही रहा। एक दलित महिला ने बताया, “शौचालय बना तो दिया, लेकिन पानी की व्यवस्था नहीं की। अब हमें दूर जाकर पानी लाना पड़ता है।”
विपक्ष का हमला
कांग्रेस और आम आदमी पार्टी (AAP) ने BJP के इस कैंपेन को “दलित वोटों की खरीद-फरोख्त” करार दिया है। विपक्षी नेताओं का कहना है कि BJP केवल चुनाव के समय दलितों को याद करती है। AAP नेता ने कहा, “जब दिल्ली के दलित समुदाय ने सरकारी नौकरियों और शिक्षा में आरक्षण की मांग की, तब BJP सरकार ने कोई कदम नहीं उठाया। आज वही लोग उनके घर-घर जाकर वोट मांग रहे हैं।”
दलितों की बदलती सोच
पिछले चुनावों के अनुभव और वर्तमान परिस्थितियों को देखते हुए, दलित समाज अब पहले से ज्यादा जागरूक हो गया है। वे अपने अधिकारों और वोट की ताकत को समझ रहे हैं। एक युवा दलित कार्यकर्ता ने कहा, “हमें अब लुभाने वाले नारों और योजनाओं की जरूरत नहीं है। हमें जमीन पर दिखने वाला बदलाव चाहिए। जब तक BJP यह नहीं बताती कि उसने पिछले कार्यकाल में हमारे लिए क्या किया, तब तक हम उनका समर्थन नहीं करेंगे।”
नतीजे पर असर
BJP की 30 SC बहुल सीटों पर जीत की कोशिश में यह साफ है कि चुनावी समीकरण इस बार काफी कठिन हैं। दलित वोटर अब अपनी भूमिका समझने लगे हैं और उन्हें किसी भी पार्टी के खोखले वादे नहीं भा रहे। अगर BJP अपनी रणनीति में वास्तविकता को नहीं शामिल करती, तो यह चुनावी दांव उनके खिलाफ जा सकता है।
निष्कर्ष
BJP का दलित वोटरों पर जोर देने का यह प्रयास उनके लिए कितना फायदेमंद होगा, यह चुनाव नतीजे तय करेंगे। लेकिन एक बात स्पष्ट है कि दलित समाज अब केवल नारों और वादों से संतुष्ट नहीं होगा। उन्हें अपने अधिकारों के प्रति संवेदनशील और जिम्मेदार नेतृत्व चाहिए, जो उनके सवालों का ईमानदारी से जवाब दे सके।
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