Delhi Election: “इस आदमी में कोई शर्म नहीं, 10 साल में क्या किया?”, कांग्रेस ने केजरीवाल से मांगा काम का हिसाब

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कांग्रेस नेता संदीप दीक्षित ने अरविंद केजरीवाल पर निशाना साधते हुए पूछा कि 10 साल में उन्होंने दिल्ली के विकास के लिए क्या किया। उन्होंने केजरीवाल के सफाई कर्मचारियों को सस्ते घर देने के वादे को चुनावी “नौटंकी” करार दिया और आरोप लगाया कि उनकी सरकार ने अस्पतालों और स्कूलों के लिए आवंटित जमीनों का सही उपयोग नहीं किया। साथ ही, उन्होंने केजरीवाल पर केवल झूठे वादे करने और अपने लिए आलीशान मकान बनवाने का आरोप लगाया।

दिल्ली में चुनावी माहौल गरम है, और हर पार्टी अपनी-अपनी सियासी चालें चल रही है। आम आदमी पार्टी (AAP) के संयोजक और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने हाल ही में एक बड़ा ऐलान किया कि यदि उनकी सरकार दोबारा सत्ता में आई, तो दिल्ली के सभी सरकारी सफाई कर्मचारियों को रियायती दरों पर घर मुहैया कराए जाएंगे। इसके लिए उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर रियायती दरों पर जमीन देने का अनुरोध भी किया। हालांकि, केजरीवाल के इस ऐलान ने विपक्षी दलों को एक और मौका दे दिया है, खासतौर पर कांग्रेस नेता संदीप दीक्षित को, जिन्होंने इस घोषणा को “ढोंग” और “झूठे वादों” का पुलिंदा बताया है।

दिल्ली की आम आदमी पार्टी की सरकार में निराश सफाई कर्मचारी और मरते सीवर सफाईकर्मी

संदीप दीक्षित का तीखा हमला: “इस आदमी में कोई शर्म नहीं”

संदीप दीक्षित ने केजरीवाल पर तीखे शब्दों में हमला बोलते हुए कहा कि “इस आदमी (केजरीवाल) में ना कोई समझ है, ना कोई तर्क और ना ही कोई शर्म बची है।” उन्होंने केजरीवाल की चिट्ठी वाली घोषणा पर तंज कसते हुए कहा, “मैं भी कल प्रभु को पत्र लिखने वाला हूं कि जैसे ही मैं मुख्यमंत्री बनूं, सबके घरों में 50 करोड़ रुपये भेज दें।” दीक्षित ने यह भी आरोप लगाया कि केजरीवाल ने 10 साल तक दिल्ली की जमीनों का सही इस्तेमाल नहीं किया और अब जब चुनाव करीब हैं, तो गरीबों के नाम पर झूठे वादे कर रहे हैं। उन्होंने कहा, “आपके पास 10 साल तक जमीनें थीं। आपने उन जमीनों का क्या किया? यह तो बताइए। डीडीए ने जमीनें अस्पताल और स्कूल बनाने के लिए दी थीं, लेकिन आपने उन्हें वापस लौटने दिया। यह गरीबों के साथ मजाक है।”

AAP सरकार की नीतियों पर सवाल: “झूठ और आडंबर का खेल”

संदीप दीक्षित ने यह भी कहा कि केजरीवाल सरकार ने बीते एक दशक में दिल्ली के लिए जो वादे किए थे, उनमें से अधिकांश अधूरे रह गए हैं। उन्होंने आरोप लगाया कि शीला दीक्षित के कार्यकाल में डीडीए ने 100 स्कूल बनाने के लिए जमीनें दी थीं, लेकिन AAP सरकार ने उनमें से सिर्फ 10 पर काम शुरू किया। उन्होंने सवाल किया, “बचे हुए 90 स्कूल कहां हैं? उन जमीनों का क्या हुआ?” इसके अलावा, दीक्षित ने कहा कि अस्पतालों के लिए सात जमीनें आवंटित की गई थीं, लेकिन उनमें से केवल छह पर ही काम शुरू हो पाया। “आपकी नाकामी के कारण डीडीए ने जमीनें वापस ले लीं। अगर आपको गरीबों की इतनी चिंता होती, तो आपने अब तक इन परियोजनाओं को पूरा कर लिया होता।”

केजरीवाल का आलीशान मकान और गरीबों की दुर्दशा

दीक्षित ने केजरीवाल के निजी जीवन पर भी सवाल उठाते हुए कहा, “केजरीवाल खुद के लिए तो करोड़ों का आलीशान मकान बनवा लेते हैं, लेकिन गरीबों के लिए केवल वादे और चिट्ठियां लिखने तक ही सीमित रहते हैं। अगर उन्हें गरीबों की इतनी ही चिंता थी, तो उन्होंने अपने शीश महल में गरीबों को जगह क्यों नहीं दी?” दीक्षित ने यह भी कहा कि केजरीवाल की राजनीति केवल “नौटंकी” और “जनता को गुमराह” करने पर आधारित है।

कांग्रेस पर भी उठे सवाल: “आरोपों की राजनीति से परे काम कब?”

हालांकि, कांग्रेस खुद भी सवालों से बच नहीं पाई है। दिल्ली के मतदाता अब यह पूछ रहे हैं कि कांग्रेस, जिसने अरविंद केजरीवाल की नीतियों और वादों पर हमला किया है, उसने अपनी सरकार के दौरान क्या खास किया? शीला दीक्षित के कार्यकाल में शुरू की गई कई परियोजनाएं अधूरी रह गईं, और कांग्रेस उस समय केंद्र सरकार में होने के बावजूद दिल्ली में कई मुद्दों को सुलझाने में नाकाम रही। विपक्षी दलों का आरोप है कि कांग्रेस और AAP दोनों ही केवल वादे करने और जनता को गुमराह करने में माहिर हैं।

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चुनावी राजनीति: “वादे, हमले, और अधूरे सपने”

दिल्ली की चुनावी राजनीति अब एक मंच बन गई है, जहां हर नेता बड़े वादे कर रहा है और विपक्षी नेताओं पर आरोप-प्रत्यारोप लगा रहा है। केजरीवाल की सफाई कर्मचारियों को घर देने की योजना और संदीप दीक्षित के तीखे हमले दोनों ही यह दिखाते हैं कि राजनीति अब केवल जनता के मुद्दों से भटककर बयानबाजी तक सीमित हो गई है।

अंततः, दिल्ली की जनता को यह तय करना है कि वे किसे चुनें: वादों की राजनीति करने वाले नेता, या उन नेताओं को, जिन्होंने बीते वर्षों में वास्तविक विकास कार्य किया हो। चुनावी मैदान गरम है, और हर पार्टी अपने “वादों के झोले” के साथ तैयार है। लेकिन असली सवाल यह है कि इन वादों में कितना दम है, और कितना महज एक छलावा?

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