दिल्ली विधानसभा चुनाव 2025 में दलित समुदाय, जो कुल आबादी का 16% है, निर्णायक भूमिका में है। अरविंद केजरीवाल सरकार पर दलितों की उपेक्षा के आरोप लग रहे हैं, जैसे झुग्गी पुनर्वास और शिक्षा योजनाओं में कमी। इससे दलित वोटर्स भाजपा और कांग्रेस की ओर झुक सकते हैं। दलितों की नाराजगी और उनकी राजनीतिक प्राथमिकता इस बार चुनावी नतीजों में अहम भूमिका निभाएगी।
दिल्ली विधानसभा चुनाव 2025 नजदीक है और सभी राजनीतिक दल अपनी रणनीतियों को अंतिम रूप देने में जुटे हैं। इस बार चुनावी समीकरण जातिगत वोट बैंक के इर्द-गिर्द घूम रहे हैं, जहां दलित वोटर्स का प्रभाव निर्णायक साबित हो सकता है। दिल्ली की कुल आबादी का लगभग 16% हिस्सा दलित समुदाय से आता है, जो कई विधानसभा क्षेत्रों में हार-जीत का फैसला करने की स्थिति में हैं। कारोल बाग, कस्तूरबा नगर, मोती नगर और राजेंद्र नगर जैसी सीटों पर दलित वोटर्स का प्रभाव इतना मजबूत है कि यहां का रुख चुनाव परिणामों को तय करता है।
केजरीवाल सरकार पर दलितों की अनदेखी का आरोप
हालांकि, आम आदमी पार्टी की सरकार पर दलितों की उपेक्षा के आरोप लगातार लगते रहे हैं। पिछले एक दशक में अरविंद केजरीवाल की अगुवाई वाली सरकार ने दलित समुदाय के लिए कोई ठोस नीतियां लागू नहीं की हैं। दिल्ली में अनुसूचित जाति के छात्रों के लिए छात्रवृत्ति योजनाओं में कटौती, झुग्गी-झोपड़ियों में रहने वाले दलित परिवारों के पुनर्वास में देरी, और सरकारी नौकरी में आरक्षण को लेकर ठोस कदम न उठाना, यह सभी मुद्दे इस बार के चुनाव में केजरीवाल सरकार के खिलाफ माहौल बना सकते हैं।
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दलित वोटर भाजपा और कांग्रेस की ओर झुकाव की संभावना
अतीत में दलित वोटर्स ने आम आदमी पार्टी को समर्थन दिया था, लेकिन सरकार की वादाखिलाफी ने इन्हें अब भाजपा और कांग्रेस की ओर झुका दिया है। दिल्ली में दलित समुदाय के लिए विशेष योजनाओं की कमी ने केजरीवाल सरकार की लोकप्रियता को बुरी तरह प्रभावित किया है। वहीं, भाजपा ने दलित समुदाय को जोड़ने के लिए कई योजनाएं और कार्यक्रम चलाए हैं, जिससे इनका समर्थन पाने की कोशिश की जा रही है। दूसरी ओर, कांग्रेस भी “दलित अधिकार यात्रा” जैसे अभियानों के जरिये समुदाय के समर्थन को फिर से हासिल करने की कोशिश कर रही है।
दलितों की नाराजगी बन सकती है केजरीवाल सरकार के लिए चुनौती
दिल्ली के दलित इलाकों में केजरीवाल सरकार के खिलाफ गहरी नाराजगी देखी जा रही है। झुग्गी पुनर्वास योजनाएं अधूरी रह गईं, सफाईकर्मियों के वेतन में देरी और उनके लिए बुनियादी सुविधाओं की कमी जैसे मुद्दे इस समुदाय के लिए बड़े सवाल खड़े कर रहे हैं। इसके अलावा, मटिया महल, त्रिलोकपुरी, और संगम विहार जैसे क्षेत्रों में दलित परिवारों को मिलने वाली सुविधाओं में कटौती ने लोगों की नाराजगी को और बढ़ा दिया है।
क्या इस बार दलित वोट बैंक बनेगा सत्ता की चाबी?
इस चुनाव में यह देखना दिलचस्प होगा कि दलित समुदाय किस पार्टी की ओर झुकाव दिखाता है। क्या वे केजरीवाल सरकार के खिलाफ नाराजगी जताएंगे, या फिर भाजपा और कांग्रेस जैसे दलों को मौका देंगे? यह तय है कि दलित वोटर्स इस बार दिल्ली की सियासी तस्वीर को बदलने की ताकत रखते हैं। ऐसे में दलित समुदाय का रुख किस ओर रहेगा, यह 2025 के विधानसभा चुनाव में सत्ता की चाबी तय करेगा।
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