15 मार्च को महान राजनेता, बहुजन उत्थान के महानायक, सामाजिक परिवर्तन के अग्रदूत मान्यवर कांशीराम साहेब की जयंती पर उन्हें याद कर रही हैं दीपशिखा इंद्रा
15 मार्च यानि आज का दिन बहुत ही ऐतिहासिक दिन है आज के दिन एक ऐसे महान शख्सियत का जन्म हुआ जिसने भारत देश के लोकतंत्र का इतिहास को बदल दिया है। इसी कारण लोग उनको लोकतंत्र का महानायक कहते हैं। जी हां, हम बात कर रहे हैं मान्यवर कांशीराम साहेब जी की, जिनका आज जन्मदिवस है।
मान्यवर कांशीराम का जन्म 15 मार्च 1934 को पंजाब के रोपड़ जिले के ख्वासपुर गांव के एक रैदासिया चमार परिवार में जन्म हुआ था। भारत जैसे देश में जहाँ जाति के नाम पर भेद-भाव होना बहुत आम बात है। मान्यवर साहेब भी जातिगत भेदभाव और तरह तरह की मुसीबतों का शिकार हुए और उनका मुकाबला करते हुए उन्होंने अपनी पढ़ाई पूरी की और 1956 में रोपड़ के सरकारी काॅलेज से बीएससी की डिग्री प्राप्त की।
राजनीतिक सफर
पढ़ाई पूरी होने के बाद मान्यवर कांशीराम साहेब ने पुणे स्थित रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन में बतौर वैज्ञानिक (प्रथम श्रेणी राजपत्रित अधिकारी) ज्वाइन कर लिया। इस दौरान अंबेडकर जयंती पर सार्वजनिक छुट्टी को लेकर हुई घटनाओं से उनका मन नौकरी से हटकर सामाजिक सरोकार की तरफ रम गया। इस दौरान मान्यवर साहेब ने बाबा साहब द्वारा लिखित “एनीहिलेशन आफ कॉस्ट” और गांधी और कांग्रेस ने अछूतों के लिए क्या किया का गंभीर अध्ययन किया। समाज के विभिन्न पहलुओं का अध्ययन करने के बाद उन्होंने 1964 में नौकरी छोड़कर खुद को सामाजिक और राजनीतिक संघर्ष में झोंक दिया।
इस दौरान बाबा साहब की “पीपल्स एजुकेशन सोसाइटी” के लिए भी काम किया। मान्यवर साहेब ने 1964 में नौकरी से इस्तीफा देने के बाद बाबा साहब की “रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया” की सदस्यता ग्रहण कर ली और पूरे तन मन धन से आरपीआई के लिए काम किया, परंतु आरपीआई के नेताओं के साथ के चलते मान्यवर कांशीराम साहेब का पार्टी से मोहभंग हो गया।
मान्यवर कांशीराम साहेब संगठन सिद्धांत एवं सूत्र के अनुसार “3 अक्टूबर 1982 को नागपुर में जनसभा को संबोधित करते हुए मान्यवर साहेब कहते हैं कि दुर्भाग्यवश बाबा साहेब की दुखद मौत के बाद उनके सहयोगियों ने कुछ नहीं किया। शायद उन्होंने अपनी तरफ से उत्तम प्रयास किए हो, लेकिन वे उस ऊंचाई तक नहीं पहुंच सकें जहां कि बाबा साहब हमें देखना चाहते थे लेकिन हम उनका दोष नहीं देंगे। अगर हम वास्तव में इसको अपना कर्तव्य समझते हैं तो हमें इसे इसके लिए स्वयं को तैयार करना चाहिए। शुरू में मैंने और मेरे साथियों ने रिपब्लिकन पार्टी के नेताओं को सभी तरह का सहयोग दिया था, लेकिन जब वे कोई परिणाम नहीं दिखा सके तो अब यह जिम्मेदारी हमें अपने ऊपर लेनी है।” (बहुजन संगठक, वर्ष-3, अंक 20, 1 नवम्बर 1982)
इस तरह से उन्होंने फिर बामसेफ, डीएस-4 और बसपा यानी बहुजन समाज पार्टी का गठन किया और राजनीतिक चेतना का आगाज़ हुआ।
मनी, माफिया और मीडिया को मानते थे सबसे बड़ी रुकावट
मान्यवर साहेब के जीवन पर्यंत संघर्ष का मुख्य उद्देश्य था कि “सामाजिक एवं आर्थिक परिवर्तन” लाना मतलब समता मूलक समाज यानि एक ऐसा समाज बनाना जो समता, स्वतंत्रता, न्याय और बंधुत्व पर आधारित हो अपने लक्ष्य प्राप्ति के लिए वे सत्ता को एक साधन मानते थे और कहते भी थे “सत्ता वो मास्टर चाभी है, जिससे हर दरवाजे खोल जा सकते हैं” लेकिन उनके सामने अनेक कठिनाइयाँ थीं। अपने संघर्ष और लक्ष्य की प्राप्ति के लिए वे मनी, माफिया और मीडिया को सबसे बड़ी रुकावट मानते थे। उन्होंने इनसे मुकाबला करने के लिए अलग-अलग रणनीति बनायीं, और अपने शोध अध्ययन के जरिये पांच सिद्धांतों एवं दस सूत्रों का ईजाद किया और साथ ही बहुजन समाज के लोगों को इन सूत्रों के बारे में बताया और बहुजन समाज को (मनी, माफिया और मीडिया) सावधान रहने का आह्वान भी किया। यदि हम आज वर्तमान की राजनीतिक स्थिति की बात करें और मीडिया के रूख को देखे तो आप पाएंगे कि मान्यवर साहेब जी जैसा कहते थे वह बिल्कुल सटीक आज भी बैठता है।
यहां बहुजन समाज के लोगों को मान्यवर साहेब के सिद्धांतों एवं सूत्रों को समझ कर उसको आत्मसात करके बहुजन आन्दोलन के लिए काम करना चाहिए। और मीडिया द्वारा फैलाये जा रहे नकारात्मक चीजों पर प्रतिक्रिया देने से बचाना चाहिये। जैसे मान्यवर साहेब हमेशा कहते थे “नकारात्मक प्रचार भी एक प्रचार होता है” बहुजन राजनीति को खत्म करने के लिए गैर-अम्बेडकरवादी दल हमेशा से ही मीडिया का सहारा लेकर बहुजन समाज पार्टी के खिलाफ नकारात्मक न्यूज फैलाकर जनता को गुमराह करने की कोशिश करते रहे हैं। इसलिये ये यहां ये गौर करने वाली ये बात है कि हमें अपने सकारात्मक एजेण्डे के तहत काम करते हुए अपने समय और ऊर्जा का प्रयोग अपने बहुजन आन्दोलन के हित में करना चाहिए।
मान्यवर कांशीराम साहेब संगठन सिद्धांत एंव सूत्र के अनुसार, “किसी समाज में सामाजिक बदलाव के लिए एक संगठन की जरूरत होती है। यही वजह है कि तथागत गौतमबुद्ध ने संघ की स्थापना की और बाबा साहेब ने जागरूकता के साथ संगठित होकर संघर्ष करने का मशविरा दिया। अनेकों दल बने लेकिन बाबासाहेब के विचारधारा के अनुरूप न काम कर सकें न ही उस विचारधारा को आगे ले जा सकें। बल्कि अन्य गैर अम्बेडकरवादी दलों में शामिल हो गए या फिर उनसे मदद लेकर अलग संगठन बनायें, ताकि बहुजन आन्दोलन को कमजोर कर सकें। मान्यवर साहेब ने अपने शोध और सिद्धांतों के जरिये बहुजन आन्दोलन और बहुजन राजनीति को न सिर्फ आगे बढ़ाया, बल्कि अखिल भारतीय स्तर पर पहुंचकर उत्तर प्रदेश जैसे बड़े सूबे की 4 बार सरकार बनायी।
आज भले ही मान्यवर साहेब हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन राजनीति का उनका दर्शन उनके विचार उनके सिद्धांत सूत्र हमारे बीच मौजूद हैं। दलितों के लिए वह एक राजनीति का आधार दे गए।उनके इस योगदान को भुलाया नहीं जा सकता।
*दलित टाइम्स उन करोड़ो लोगो की आवाज़ है जिन्हें हाशिए पर रखा गया है। *
महिला, दलित और आदिवासियों के मुद्दों पर केंद्रित पत्रकारिता करने और मुख्यधारा की मीडिया में इनका प्रतिनिधित्व करने के लिए हमें आर्थिक सहयोग करें।