बिहार के वैशाली में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की यात्रा से पहले कस्तूरबा गांधी बालिका विद्यालय में 80 दलित और महादलित बच्चियों को उनके कमरों से निकालकर एक छोटे कमरे में बंद कर दिया गया, और उनका सामान छत पर फेंक दिया गया। यह दिखावटी तैयारियों के तहत छात्रावास की रंगाई-पुताई और फर्श बदलने के लिए किया गया। इस अमानवीय घटना ने प्रशासन की संवेदनहीनता और दलित समाज के प्रति सरकार के दोहरे रवैये को उजागर किया है। मीडिया के सवालों पर अधिकारी भड़क उठे, लेकिन कोई ठोस जवाब नहीं दे पाए।
बिहार के वैशाली जिले में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की 28 दिसंबर को प्रस्तावित प्रगति यात्रा से पहले सरकार और प्रशासन की असंवेदनशीलता का चौंकाने वाला मामला सामने आया है। पटेढ़ी बेलसर के कस्तूरबा गांधी बालिका विद्यालय के छात्रावास में 80 दलित और महादलित बच्चियों को उनके कमरों से जबरन निकालकर एक छोटे से कमरे में बंद कर दिया गया। उनके सामान को छत पर फेंक दिया गया, और रसोई को खुले में शिफ्ट कर दिया गया। अधिकारियों ने यह कदम मुख्यमंत्री के दौरे के दौरान छात्रावास को चमकाने और दीवारों की रंगाई-पुताई, फर्श की टाइल्स बदलने, सोलर लाइट और बड़ी LED लगाने जैसे दिखावटी कामों के लिए उठाया। यह घटना न केवल प्रशासनिक लापरवाही को उजागर करती है, बल्कि यह दर्शाती है कि सरकार के विकास के दावे दलित और महादलित समाज के लिए सिर्फ शब्दों तक सीमित हैं।
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दिखावे के लिए हटा दी बच्चियों की बुनियादी सुविधाएं
मुख्यमंत्री के दौरे के नाम पर जो तैयारियां हो रही हैं, उसमें छात्राओं के मूलभूत अधिकारों और जरूरतों को पूरी तरह नजरअंदाज कर दिया गया है। बच्चियों को जिस तरह से एक कमरे में ठूंस दिया गया और उनके सामान को बेदर्दी से छत पर फेंका गया, वह अमानवीयता और असंवेदनशीलता की पराकाष्ठा है। इन तैयारियों के बीच छात्रावास में अफरातफरी और अव्यवस्था का माहौल है। बच्चियों के साथ ऐसा व्यवहार यह सवाल खड़ा करता है कि क्या दलित और महादलित समाज के बच्चों की गरिमा और उनके अधिकार प्रशासन की प्राथमिकताओं में कहीं शामिल हैं?
मीडिया के सवालों पर भड़के अधिकारी
जब मीडिया ने इस संवेदनहीन घटना को उजागर किया, तो मौके पर मौजूद शिक्षा विभाग के अधिकारी सवालों का जवाब देने के बजाय भड़क उठे। अधिकारी बच्चियों को एक कमरे में बंद करने और उनके साथ किए गए दुर्व्यवहार पर कोई ठोस जवाब देने में नाकाम रहे। यह रवैया न केवल प्रशासन की जवाबदेही पर सवाल खड़ा करता है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि सरकार और उसके अधिकारी दलित और महादलित समाज की समस्याओं को कितनी गंभीरता से लेते हैं।
दलित समाज के साथ लगातार अन्याय
यह घटना एक बार फिर साबित करती है कि दलित और महादलित समाज के प्रति सरकार का रवैया केवल योजनाओं और भाषणों तक सीमित है। असल में उनका जीवन और उनकी समस्याएं सत्ता के लिए कोई मायने नहीं रखतीं। जब मुख्यमंत्री के दौरे के नाम पर ऐसी तैयारी हो रही है, जिसमें उन्हीं बच्चियों का सम्मान और अधिकार दांव पर लगा दिया गया, तो यह स्पष्ट है कि दलित समाज सरकार की प्राथमिकताओं में कहीं नहीं है।
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सरकार के खोखले दावे और दलित समाज की सच्चाई
सरकार की योजनाओं का उद्देश्य अगर वंचित समाज के उत्थान और उनके जीवन स्तर को सुधारना है, तो फिर ऐसी घटनाएं क्यों हो रही हैं? दलित बच्चियों के साथ इस तरह का व्यवहार न केवल उनके अधिकारों का हनन है, बल्कि यह उनकी सुरक्षा और गरिमा के लिए भी खतरा है। यह घटना सरकार के दलितों के प्रति दोहरे मापदंड को उजागर करती है।
जरूरी है ठोस कार्रवाई और जवाबदेही
इस घटना ने यह स्पष्ट कर दिया है कि दलित और महादलित समाज की समस्याओं का समाधान तब तक नहीं होगा, जब तक सरकार और प्रशासन उनके अधिकारों के प्रति ईमानदार और संवेदनशील नहीं होगा। इस मामले में दोषी अधिकारियों पर सख्त कार्रवाई और भविष्य में ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए ठोस कदम उठाने की जरूरत है। दलित समाज के बच्चों को केवल योजनाओं और दिखावे के लिए इस्तेमाल करने की बजाय, उनके वास्तविक विकास और गरिमा के लिए काम करना सरकार की प्राथमिकता होनी चाहिए।
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