कर्नाटक में दलित परिवारों का बहिष्कार: रेप पीड़िता ने नहीं झुकाया सिर तो सवर्ण नेताओं ने दैनिक चीजों की बिक्री पर लगाई रोक

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कर्नाटक में दलित परिवारों को सामाजिक बहिष्कार का सामना करना पड़ रहा है क्योंकि लड़की से बलात्कार के आरोप में उसके परिवार द्वारा समझौता न करने और युवक के खिलाफ मामला दर्ज कराने से नाराज गांव के सवर्ण नेताओं ने पूरे गांव के दलितों के खिलाफ किराने का सामान समेत अन्य सामानों की बिक्री पर रोक लगा दी है.

Dalit News: यादगीर जिले के बप्पारगा गांव में हाल ही में एक बेहद गंभीर और चौंकाने वाली घटना सामने आई है, जहां एक 15 वर्षीय नाबालिग लड़की को शादी का झांसा देकर शारीरिक संबंध बनाने के बाद युवक ने शादी से इनकार कर दिया, जिससे लड़की गर्भवती हो गई। लड़की के परिवार ने इस मामले में पॉक्सो एक्ट के तहत पुलिस में शिकायत दर्ज कराई। लेकिन लड़की से बलात्कार के आरोप में उसके परिवार द्वारा समझौता न करने और युवक के खिलाफ पॉक्सो एक्ट के तहत मामला दर्ज कराने से नाराज गांव के सवर्ण नेताओं ने पूरे गांव के दलितों के खिलाफ किराने का सामान समेत अन्य सामानों की बिक्री पर रोक लगा दी है.

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दलित परिवारों को कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है

हाल ही में, एक दलित महिला जब नमक खरीदने गई और एक दलित युवक जब स्कूली बच्चों के लिए पेन खरीदने गए, तो दुकानदारों ने उन्हें बहिष्कार की बात बताई। दरअसल , इस कानूनी कार्रवाई से नाराज सवर्ण नेताओं ने पूरे गांव के दलित परिवारों के खिलाफ सामाजिक बहिष्कार की घोषणा की। इसके परिणामस्वरूप, गांव में सभी दुकानदारों को निर्देशित किया गया कि वे दलित परिवारों को किसी भी प्रकार का सामान, चाहे वह किराने का सामान हो, स्कूल की किताबें, पेन-पेंसिल या अन्य दैनिक उपयोग की वस्तुएं, न बेचें। इस बहिष्कार के चलते, दलित परिवारों को अत्यधिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है.

बहिष्कार की ऑडियो रिकॉर्डिंग वायरल

इस तरह के बहिष्कार की ऑडियो रिकॉर्डिंग अब वायरल हो गई है, जिसमें दुकानदार ने अपनी असहायता व्यक्त करते हुए कहा है कि गांव के मुखिया ने उन्हें किसी भी प्रकार का सामान न देने की सख्त हिदायत दी है। स्कूल जाने वाले बच्चों के लिए पेन-पेंसिल देने की गुहार लगाने पर भी दुकानदार ने इनकार कर दिया और कहा कि न केवल पेन-पेंसिल, बल्कि दलित परिवारों को किसी भी प्रकार की वस्तु नहीं दी जाएगी। इस सामाजिक क्रूरता ने बप्पारगा गांव के मुट्ठी भर दलित परिवारों को गहरे संकट में डाल दिया है और उन्हें दैनिक जीवन की आवश्यकताओं के लिए गंभीर चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है।

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गांव के दलित परिवार दहशत में हैं

इस बहिष्कार की वजह से गांव के दलित परिवार दहशत में हैं, और यह जातिगत भेदभाव और सामाजिक क्रूरता का स्पष्ट उदाहरण है। इस स्थिति को सुधारने और प्रभावित परिवारों को सुरक्षा और न्याय प्रदान करने के लिए तत्काल कानूनी और सामाजिक हस्तक्षेप की आवश्यकता है।

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