अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी से 2024 में 10 बड़े नेताओं ने इस्तीफा दिया, जिनमें दलित, अल्पसंख्यक और सिख समुदाय के प्रतिनिधि शामिल हैं। इन नेताओं ने पार्टी पर जनता के हक, दलितों और अल्पसंख्यकों की अनदेखी, वादाखिलाफी और भ्रष्टाचार का आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि ‘आप’ अपने मूल सिद्धांतों से भटक चुकी है और कमजोर वर्गों की आवाज दबाई जा रही है। अधिकांश नेता भाजपा और कांग्रेस में शामिल हो गए हैं।
दिल्ली की राजनीति में आम आदमी पार्टी (आप) का प्रभावशाली सफर अब विवादों और इस्तीफों से जूझ रहा है। पार्टी के कई दिग्गज नेताओं ने अरविंद केजरीवाल की नीतियों और नेतृत्व पर सवाल उठाते हुए पार्टी छोड़ दी। इस्तीफा देने वालों में दलित, अल्पसंख्यक, सिख और अन्य प्रमुख वर्गों के नेता शामिल हैं। इन नेताओं का कहना है कि “आप” अब अपने मूल सिद्धांतों से भटक गई है और हाशिए पर खड़े समुदायों की अनदेखी कर रही है।
दिल्ली की राजनीति में दलितों की अनदेखी: केजरीवाल सरकार और कांग्रेस दोनों पर सवाल
राजकुमार आनंद: दलित समाज का प्रतीक लेकिन पार्टी में उपेक्षा का शिकार
पटेल नगर सीट का प्रतिनिधित्व करने वाले राजकुमार आनंद ने अप्रैल 2024 में पार्टी छोड़ दी। वे समाज कल्याण, एससी/एसटी और सहकारिता मंत्री के रूप में कार्यरत थे। उन्होंने भ्रष्टाचार, दलित विरोधी रवैये और प्रशासनिक अक्षमता को पार्टी छोड़ने की वजह बताया। आनंद ने कहा कि “मैंने आप में बदलाव की उम्मीद से काम शुरू किया था, लेकिन पार्टी ने मेरे समुदाय और मेरे अधिकारों को नजरअंदाज किया।” बहुजन समाज पार्टी में शामिल होकर उन्होंने नई दिल्ली सीट से लोकसभा चुनाव लड़ा, लेकिन हार के बाद भाजपा का दामन थाम लिया।
करतार सिंह तंवर: छतरपुर के विधायक का मोहभंग
छतरपुर सीट से विधायक करतार सिंह तंवर ने जुलाई 2024 में आप से इस्तीफा दे दिया। राजनीति में आने से पहले दिल्ली जल बोर्ड में जूनियर इंजीनियर के रूप में काम कर चुके तंवर ने पार्टी पर दलितों और गरीबों के हितों को अनदेखा करने का आरोप लगाया। राजकुमार आनंद के साथ उन्होंने भी भाजपा में शामिल होकर अपनी नाराजगी जताई।
राजेंद्र पाल गौतम: दलित समाज की आवाज दबाने का आरोप
सीमापुरी से विधायक और समाज कल्याण मंत्री रहे राजेंद्र पाल गौतम ने सितंबर 2024 में पार्टी से इस्तीफा दिया। उन्होंने आप पर दलितों के मुद्दों को गंभीरता से न लेने का आरोप लगाया। गौतम ने कहा कि “मैंने दलित समाज के लिए आवाज उठाई, लेकिन पार्टी ने मुझे और मेरे समुदाय को निराश किया।” गौतम ने कांग्रेस का दामन थामकर नई शुरुआत की।
कैलाश गहलोत: पार्टी के संस्थापक सदस्य का जाना बड़ा झटका
आप के संस्थापक सदस्यों में से एक और परिवहन मंत्री रहे कैलाश गहलोत ने नवंबर 2024 में पार्टी से इस्तीफा दिया। उन्होंने कहा कि “आप अब बदलाव की पार्टी नहीं रही, यह केवल दिखावे और प्रचार की राजनीति कर रही है।” गहलोत के भाजपा में शामिल होने से आप को जाट और ग्रामीण वोट बैंक में भारी नुकसान हुआ।
अब्दुल रहमान: मुसलमानों और दलितों की अनदेखी का आरोप
सीलमपुर के विधायक अब्दुल रहमान ने दिसंबर 2024 में पार्टी छोड़कर कांग्रेस का दामन थाम लिया। उन्होंने आप पर मुसलमानों और दलितों के अधिकारों को नज़रअंदाज़ करने का आरोप लगाया। रहमान ने कहा कि “पार्टी ने हमारे समुदायों को केवल वोट बैंक के रूप में इस्तेमाल किया।”
सुखबीर सिंह दलाल: आप की वादाखिलाफी पर सवाल
मुंडका के पूर्व विधायक सुखबीर सिंह दलाल ने 21 दिसंबर 2024 को पार्टी छोड़ दी। उन्होंने दावा किया कि “मैंने खेल यूनिवर्सिटी प्रोजेक्ट पर काम किया, लेकिन पार्टी ने वादाखिलाफी की।” दलाल ने भाजपा में शामिल होकर पार्टी की पोल खोली।
बलबीर सिंह और सिख समुदाय की नाराजगी
दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के छह बार सदस्य रहे बलबीर सिंह ने भी 21 दिसंबर 2024 को भाजपा में शामिल होकर आप के प्रति नाराजगी जताई। भाजपा ने उन्हें पार्टी सचिव बनाकर उनके अनुभव का सम्मान किया।
हरशरण बल्ली और गुरमीत सिंह बल्ली: पिता-पुत्र की नाराजगी
हरिनगर के चार बार विधायक रहे हरशरण बल्ली और उनके बेटे गुरमीत सिंह बल्ली ने नवंबर 2024 में भाजपा का दामन थामा। हरशरण ने कहा कि “आप में मुझे वह सम्मान नहीं मिला, जो भाजपा में है।”
नितिन त्यागी: महिला कल्याण योजनाओं पर सवाल
लक्ष्मी नगर से पूर्व विधायक नितिन त्यागी ने भी पार्टी छोड़ दी। उन्होंने कहा कि “आप की महिलाओं को आर्थिक सहायता देने की योजना केवल एक धोखा है।” त्यागी भाजपा में शामिल हो गए।
जाट समुदाय से मुलाकात पर केजरीवाल का दोगला रवैया: दलित हितों की अनदेखी
दलित और अल्पसंख्यकों की अनदेखी बनी बड़ी चुनौती
पार्टी छोड़ने वाले नेताओं ने आरोप लगाया कि आप केवल वोटों के लिए दलितों और अल्पसंख्यकों का इस्तेमाल करती है। इन इस्तीफों ने अरविंद केजरीवाल की नेतृत्व क्षमता और उनकी पार्टी की विश्वसनीयता पर सवाल खड़े कर दिए हैं।
आप की गिरती साख और आगामी चुनावों पर असर
नेताओं के इस्तीफों ने “आप” को बड़ी राजनीतिक चुनौती में डाल दिया है। दलित, सिख और अल्पसंख्यक समुदायों का भरोसा खोने के बाद पार्टी को आगामी विधानसभा और लोकसभा चुनावों में नुकसान हो सकता है। भाजपा और कांग्रेस जैसे दल इन नेताओं का स्वागत कर अपनी स्थिति मजबूत कर रहे हैं।
अरविंद केजरीवाल के लिए यह आत्ममंथन का समय है। यदि “आप” ने अपनी गलतियों को नहीं सुधारा, तो पार्टी का भविष्य गंभीर संकट में पड़ सकता है।
*दलित टाइम्स उन करोड़ो लोगो की आवाज़ है जिन्हें हाशिए पर रखा गया है। *
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