दलितों की आवाज: अंबेडकर जयंती का आयोजन बना सजा, छात्रों का निलंबन और प्रवेश रद्द, प्रशासन ने भी नहीं दिया साथ

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बाबासाहेब अंबेडकर विश्वविद्यालय में चार दलित छात्रों पर फर्जी FIR और निलंबन के साथ ही उनका प्रवेश (Admission) भी रद्द कर दिया गया है। पुलिस द्वारा भी इन छात्रों और उनके परिवारों पर दबाव बनाया जा रहा है कि वे धरना खत्म करें और शिकायत वापस लें। इस अन्याय के खिलाफ छात्र संगठन और दलित समुदाय संघर्ष कर रहे हैं।

Lucknow: बाबासाहेब भीमराव अंबेडकर विश्वविद्यालय, लखनऊ में दलित छात्रों पर प्रशासन द्वारा किए गए बर्बर दमन ने एक गंभीर विवाद खड़ा कर दिया है। इस घटना की जड़ें 16 अप्रैल 2024 से जुड़ी हैं, जब विश्वविद्यालय के दलित छात्रों ने डॉ. अंबेडकर जयंती का आयोजन किया था। हर वर्ष की परंपरा के अनुसार, इस अवसर पर एक समता मार्च आयोजित किया जाता है, लेकिन इस बार प्रशासन ने अचानक से मार्च में साउंड सिस्टम का उपयोग करने की अनुमति देने से इंकार कर दिया। छात्रों के इस फैसले पर आक्रोशित होने पर, उन्होंने विश्वविद्यालय के गेट नंबर 03 पर धरना देना शुरू किया।

हालांकि, कई घंटे तक कोई प्रशासनिक अधिकारी छात्रों से मिलने नहीं आया, जिसके बाद वे कुलपति आवास की ओर कूच करने लगे। लगभग 6-7 घंटे तक चले इस धरने के बाद, विश्वविद्यालय प्रशासन ने रात के करीब 12:30 बजे आकर सांस्कृतिक कार्यक्रम की अनुमति देने की बात कही। हालांकि, यह अनुमति 18 अप्रैल को सीमित समय के लिए दी गई, जिसके बाद छात्रों ने धरना समाप्त किया।

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रामनवमी के कार्यक्रम पर प्रशासन का दोहरा मापदंड

17 अप्रैल को प्रशासन का पक्षपातपूर्ण रवैया और भी स्पष्ट हो गया, जब बिना अनुमति के रामनवमी के उपलक्ष्य में विश्वविद्यालय परिसर में डीजे साउंड सिस्टम का उपयोग कर एक बड़ा कार्यक्रम आयोजित किया गया। इस कार्यक्रम के दौरान प्रशासन की निष्क्रियता और दलित छात्रों द्वारा अंबेडकर जयंती पर साउंड सिस्टम के उपयोग पर प्रतिबंध से छात्रों में गहरा असंतोष पैदा हुआ। जब दलित छात्र कुलपति आवास पर इस भेदभाव के खिलाफ सवाल पूछने पहुंचे, तो सुरक्षा अधिकारी और गार्डों ने उन पर बर्बर हमला कर दिया। वीडियो फुटेज में साफ देखा जा सकता है कि सुरक्षा गार्डों ने छात्रों को बेरहमी से मारा-पीटा, जिनमें एक गार्ड ने तो बंदूक की बट का भी इस्तेमाल किया।

फर्जी FIR और छात्रों का निलंबन

इसके बाद, स्थिति और भी खराब हो गई जब प्रशासन ने उल्टा ही चार निर्दोष दलित छात्रों—अश्वनी कुमार, राहुल कुमार, विकास कुमार, और आलोक कुमार राव—पर फर्जी FIR दर्ज कराई। साथ ही, विश्वविद्यालय प्रशासन ने इन छात्रों को बिना किसी ठोस कारण के तीन महीने के लिए निलंबित कर दिया। यह निलंबन आदेश 27 अप्रैल को मेल द्वारा भेजा गया, जिसमें किसी भी प्रकार का स्पष्टीकरण नहीं दिया गया था। इसके दो दिन बाद, 29 अप्रैल को छात्रों को एक कारण बताओ नोटिस जारी किया गया, जो पूरी तरह से प्रशासन की हठधर्मिता और असंवैधानिक कार्यवाही को दर्शाता है।

घर-घर जाकर धमकियां और मानसिक उत्पीड़न

पुलिस का रवैया छात्रों के प्रति न केवल अनदेखी का है, बल्कि अब वह सीधे उनके घरों तक पहुंचकर उन्हें और उनके परिवारों को धमका रही है। पुलिस अधिकारियों द्वारा छात्रों को बार-बार घर जाकर यह कहा जा रहा है कि वे धरना समाप्त कर दें और किसी प्रकार की कानूनी कार्यवाही न करें। यह एक गंभीर मामला है जहां संविधान द्वारा दिए गए अधिकारों का खुलेआम उल्लंघन हो रहा है। छात्र और उनके परिवार, जो न्याय की उम्मीद में पुलिस के पास पहुंचे थे, अब खुद ही मानसिक उत्पीड़न का शिकार हो रहे हैं।

परिवारों पर बढ़ रहा दबाव

पुलिस सिर्फ छात्रों को ही नहीं, बल्कि उनके परिवारों को भी प्रताड़ित कर रही है। पुलिसकर्मी बार-बार उनके घर जाकर धमकियों और दबाव का माहौल बना रहे हैं, जिससे परिवारजन भयभीत हैं। यह स्पष्ट रूप से संविधान के अनुच्छेद 14 और 21 का उल्लंघन है, जो समानता और जीवन के अधिकार की रक्षा करता है। पुलिस का यह रवैया उन सभी सिद्धांतों का अपमान है, जो न्याय, स्वतंत्रता और समानता की वकालत करते हैं।

दमन के खिलाफ संघर्ष

यह स्पष्ट है कि विश्वविद्यालय प्रशासन और पुलिस मिलकर दलित छात्रों की आवाज को दबाने की कोशिश कर रहे हैं। यह सिर्फ चार छात्रों की लड़ाई नहीं है, बल्कि पूरे बहुजन समाज के खिलाफ एक संगठित साजिश है। बिरसा अंबेडकर फुले स्टूडेंट्स एसोसिएशन और अन्य प्रगतिशील संगठन पुलिस के इस दमनकारी रवैये के खिलाफ आवाज उठा रहे हैं। उनका कहना है कि पुलिस और प्रशासन का यह संयुक्त प्रयास छात्रों को मानसिक और शारीरिक रूप से तोड़ने का है, ताकि वे न्याय की मांग न कर सकें।

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पुलिस के खिलाफ कानूनी कार्यवाही की मांग

छात्रों के पक्षधर संगठनों ने इस मामले में पुलिस के खिलाफ भी कानूनी कार्यवाही की मांग की है। पुलिस का यह व्यवहार न केवल अवैध है, बल्कि लोकतांत्रिक मूल्यों के खिलाफ भी है। छात्रों और उनके परिवारों के साथ हो रहे इस मानसिक उत्पीड़न को तत्काल रोकने और दोषी पुलिसकर्मियों के खिलाफ कार्यवाही करने की मांग की जा रही है।

संविधान के मूल्यों का हनन और दलित छात्रों का संघर्ष

इस घटना ने प्रशासन के दलित विरोधी रवैये को उजागर किया है, जहां दलित छात्रों को उनके संवैधानिक अधिकारों से वंचित किया जा रहा है। बिरसा अंबेडकर फुले स्टूडेंट्स एसोसिएशन ने प्रशासन के इस अन्यायपूर्ण रवैये के खिलाफ एकजुट होकर आवाज उठाई है और विश्वविद्यालय के लोकतांत्रिकीकरण की मांग की है। इस संघर्ष में न केवल चार निर्दोष छात्रों के निलंबन और फर्जी FIR के खिलाफ, बल्कि पूरी दलित छात्र समुदाय के सम्मान और अधिकारों के लिए आवाज उठाई जा रही है।

ब्राह्मणवादी मानसिकता के खिलाफ दलित छात्रों की एकजुटता

यह घटना यह दर्शाती है कि किस प्रकार विश्वविद्यालय में ब्राह्मणवादी मानसिकता दलित छात्रों को उनके अधिकारों से वंचित कर रही है। यहां न केवल छात्रों के शैक्षणिक जीवन पर आघात हो रहा है, बल्कि उनके आत्मसम्मान और सामाजिक न्याय की मांग को भी दमन के जरिए दबाया जा रहा है। विश्वविद्यालय के अंदर हो रही इस प्रकार की असमानता ग्रामीण इलाकों में दलित समुदाय के साथ होने वाली अन्यायपूर्ण घटनाओं की याद दिलाती है, जहां पुलिस और प्रशासनिक संस्थान दलितों की आवाज को नजरअंदाज करते हैं।

संघर्ष जारी रहेगा: एकजुट हो दलित छात्र

बिरसा अंबेडकर फुले स्टूडेंट्स एसोसिएशन और अन्य जनवादी संगठन दलित छात्रों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़े हैं। इस संघर्ष को न केवल विश्वविद्यालय के स्तर पर लड़ा जा रहा है, बल्कि इसे राष्ट्रीय स्तर पर भी उठाने की जरूरत है। यह मामला सिर्फ चार छात्रों का नहीं है, बल्कि यह उन सभी छात्रों की लड़ाई है जो भेदभाव और अन्याय का शिकार हो रहे हैं। अब समय आ गया है कि सभी प्रगतिशील, अंबेडकरवादी और जनवादी संगठन एकजुट होकर इस दमनकारी व्यवस्था के खिलाफ आवाज बुलंद करें और चार निर्दोष दलित छात्रों पर लगाए गए फर्जी मुकदमों और निलंबन को तत्काल वापस लेने की मांग करें।

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