अंबेडकरनगर उपचुनाव में बसपा अपने गढ़ को बचाने के लिए संघर्ष कर रही है, जहां 95,000 अनुसूचित जाति मतदाता चुनावी परिणाम को पलटने की ताकत रखते हैं। भाजपा और सपा, दोनों दल बसपा के कोर वोट बैंक में सेंध लगाने की कोशिश में हैं।
अंबेडकरनगर के पांच विधानसभा क्षेत्र बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के गढ़ माने जाते थे। मायावती के नेतृत्व में बसपा ने यहां लंबे समय तक अपनी धाक जमाई थी, लेकिन 2017 और 2022 के चुनावों में पार्टी की जड़ें कमजोर होने लगीं। इन वर्षों में बसपा के कई दिग्गज नेता दूसरी पार्टियों में चले गए और संगठन को भारी झटका लगा। हालांकि, इन क्षेत्रों में दलित समुदाय का प्रभाव आज भी बसपा के कोर वोट बैंक के रूप में बरकरार है। यहां 95,000 से अधिक अनुसूचित जाति के मतदाता अकेले चुनावी परिणाम को पलटने की ताकत रखते हैं। इस जनाधार को सहेजने की कोशिश में बसपा ने पहली बार उपचुनाव में पूरी ताकत झोंक दी है।
चुनावी माहौल काफी गर्म
अंबेडकरनगर उपचुनाव में 13 नवंबर को मतदान हुआ, जिसमें मतदान प्रतिशत औसतन अच्छा रहा। चुनावी माहौल काफी गर्म था, और सभी प्रमुख दलों—भाजपा, सपा, और बसपा—ने जोर-शोर से प्रचार किया। इस सीट पर बसपा के लिए चुनाव बेहद महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह क्षेत्र पहले बसपा का गढ़ माना जाता था, लेकिन हाल के चुनावों में पार्टी का प्रदर्शन कमजोर रहा है।
बसपा के नेताओं का मानना है कि यह उपचुनाव उनके कोर दलित वोट बैंक को वापस जीतने का मौका है, जो हाल के वर्षों में अन्य दलों की ओर झुका है। बसपा ने इस बार स्थानीय स्तर पर आक्रामक प्रचार किया और प्रत्याशी कमर हयात को चुनावी मैदान में उतारा। वहीं, भाजपा और सपा ने भी बसपा के कोर वोट बैंक में सेंध लगाने की कोशिश की, जिससे मुकाबला त्रिकोणीय हो गया।
भाजपा-सपा की रणनीति: बसपाई वोटरों पर नजर
इस बार का उपचुनाव त्रिकोणीय मुकाबले का संकेत दे रहा है, लेकिन असल संघर्ष भाजपा और सपा के बीच है। भाजपा अपने प्रत्याशी धर्मराज निषाद के जरिए बसपा के पुराने वोट बैंक में सेंधमारी की कोशिश कर रही है। पार्टी की विकास योजनाएं और जनकल्याणकारी योजनाएं इस रणनीति का हिस्सा हैं। उधर, सपा ने अपने प्रत्याशी शोभावती वर्मा के जरिए दलित और अन्य पिछड़ा वर्ग के वोट बैंक को अपने पक्ष में करने की योजना बनाई है। शोभावती के पति और सांसद लालजी वर्मा, जो कभी बसपा के मजबूत स्तंभ थे, अब सपा की ओर से पुराने बसपाई नेटवर्क का फायदा उठाने की जुगत में हैं।
बसपा की चुनौती: अपने घर को सहेजने की लड़ाई
बसपा इस बार उपचुनाव में पहली बार अपने कोर वोटरों को बचाने के लिए तीसरे मोर्चे के रूप में उतरी है। पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष ने गांव-गांव जाकर दलित और मुस्लिम वोटरों को अपनी ओर खींचने के लिए अभियान शुरू किया था। बसपा के लिए यह उपचुनाव एक चुनौती के साथ-साथ अवसर भी है। यदि पार्टी अपने पुराने जनाधार को समेटने में सफल होती है, तो वह न केवल भाजपा और सपा की उम्मीदों पर पानी फेर सकती है, बल्कि अपनी खोई हुई साख को भी दोबारा स्थापित कर सकती है।
जातीय समीकरण और वोटों का गणित
अंबेडकरनगर के मतदाता जातीय समीकरणों के आधार पर मतदान करने के लिए जाने जाते हैं। यहां दलित वोट बैंक के साथ-साथ निषाद और यादव समुदाय का भी खासा प्रभाव है। भाजपा जहां हिंदू मतदाताओं के एकीकरण के जरिए जीत का सपना देख रही है, वहीं सपा यादव और मुस्लिम गठजोड़ को मजबूत करने में जुटी है। इस बीच, बसपा की कोशिश है कि दलित वोटों को अपने पक्ष में रखते हुए मुस्लिम मतदाताओं को भी साथ जोड़ा जाए।
त्रिकोणीय मुकाबले का रोमांच
इस चुनाव में भाजपा और सपा के बीच कांटे की टक्कर है, लेकिन बसपा का प्रदर्शन निर्णायक साबित हो सकता है। यदि बसपा अपने कोर वोटरों को बनाए रखने में सफल होती है, तो यह मुकाबला त्रिकोणीय बन जाएगा और चुनावी परिणाम रोमांचक हो सकता है। वहीं, यदि बसपा कमजोर पड़ी, तो भाजपा या सपा में से कोई एक स्पष्ट बढ़त ले सकता है। अंबेडकरनगर के उपचुनाव में दलित वोट बैंक की भूमिका अहम है, और यही इस चुनाव का परिणाम तय करेगा।
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