हरियाणा चुनावो में हार के बाद कांग्रेस ने फिर खेला दलित कार्ड अब दलित चेहरे को फिर मिलेगी हरियाणा कांग्रेस की कमान। दरअसल, प्रदेश अध्यक्ष उदयभान को हटाकर सांसद वरुण चौधरी को नया दलित चेहरा बनाने की योजना है। वही प्रदेश प्रभारी दीपक बाबरिया की छुट्टी तय है, और भूपेंद्र हुड्डा को नेता विपक्ष के पद से हटाया जा सकता है।
Haryana Politics: हरियाणा में हाल ही में हुए विधानसभा चुनावों में कांग्रेस की करारी हार ने एक बार फिर पार्टी की दलित राजनीति और नेतृत्व की कमजोरियों को उजागर कर दिया है। कांग्रेस हमेशा से ही दलितों को अपने पक्ष में लाने के लिए बड़े-बड़े दावे करती रही है, लेकिन यह सच्चाई है कि दलितों की समस्याओं को पार्टी ने कभी भी पूरी तरह से समझने या हल करने का प्रयास नहीं किया। कांग्रेस की दलित कार्ड की राजनीति केवल वोट बटोरने तक ही सीमित रही है। यह पार्टी बार-बार दलित नेताओं को आगे बढ़ाने का दिखावा करती है, लेकिन सत्ता और नीति-निर्माण में उनकी भागीदारी को बहुत सीमित रखती है।
हरियाणा की राजनीति में दलितों की एक महत्वपूर्ण भूमिका रही है, क्योंकि राज्य में लगभग 21% दलित वोटर हैं, जो किसी भी चुनाव के परिणाम को बदल सकते हैं। इसके बावजूद कांग्रेस ने दलितों को केवल एक वोट बैंक के रूप में देखा और उनके असल मुद्दों को लगातार नजरअंदाज किया है।
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भूपेंद्र हुड्डा को नेता विपक्ष के पद से हटाया जा सकता है
अब जब कांग्रेस को हरियाणा चुनाव में हार का सामना करना पड़ा, तो पार्टी ने फिर से दलित नेतृत्व को सामने लाने की बात शुरू कर दी है। कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष उदयभान, जो खुद एक दलित नेता हैं, को अब इस हार के लिए जिम्मेदार ठहराया जा रहा है। पार्टी नेतृत्व उन पर यह आरोप लगा रहा है कि उन्होंने संगठन को संभालने की बजाय खुद चुनाव लड़ा और हार गए। लेकिन यहां असल सवाल यह है कि क्या केवल उदयभान की हार ही कांग्रेस की विफलता का कारण है? क्या भूपेंद्र सिंह हुड्डा जैसे बड़े नेताओं का वर्चस्व, जो हरियाणा कांग्रेस की राजनीति में हमेशा हावी रहे हैं, इस हार का कारण नहीं है? कांग्रेस नेतृत्व ने उदयभान को बलि का बकरा बनाते हुए उनकी जगह एक और दलित नेता, वरुण चौधरी को अध्यक्ष बनाने की योजना बनाई है। वरुण चौधरी, जो अंबाला से सांसद हैं, को दलित चेहरा बनाकर कांग्रेस एक बार फिर अपने पुराने फार्मूले को आजमाने की कोशिश कर रही है।
क्या दलित समुदाय कांग्रेस के इस खेल को समझ पाएगा?
लेकिन यह सवाल उठता है कि क्या दलित समुदाय इस बार भी कांग्रेस के इस खेल को समझ नहीं पाएगा? क्या दलितों को केवल प्रतीकात्मक नेतृत्व देकर कांग्रेस उनकी समस्याओं को हल कर पाएगी? हरियाणा के दलित समुदाय की स्थिति आज भी काफी चिंताजनक है। शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार और सामाजिक सुरक्षा के मामलों में दलितों को अब भी भेदभाव और उपेक्षा का सामना करना पड़ता है। कांग्रेस ने अपने कार्यकाल के दौरान कभी भी दलितों के इन वास्तविक मुद्दों पर ध्यान नहीं दिया। सत्ता में रहते हुए भी दलितों को उनके अधिकारों से वंचित रखा गया, और उनकी समस्याओं को हल करने की बजाय कांग्रेस ने केवल अपने राजनीतिक हित साधने के लिए दलित नेताओं का इस्तेमाल किया।
उदयभान की जगह वरुण चौधरी को अध्यक्ष बनाना एक राजनीतिक चाल
हरियाणा में उदयभान की जगह वरुण चौधरी को अध्यक्ष बनाना भी केवल एक राजनीतिक चाल है। वरुण चौधरी का दलित समुदाय के लिए क्या योगदान रहा है? वे जरूर एक दलित नेता हैं, लेकिन कांग्रेस के अन्य नेताओं की तरह वे भी केवल अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं के लिए ही जाने जाते हैं। उनका कांग्रेसी बैकग्राउंड और पिता फूलचंद मुलाना का राजनीतिक प्रभाव जरूर है, लेकिन इससे दलित समुदाय को क्या फायदा हुआ है? कांग्रेस के भीतर एक गुटबाजी की राजनीति चलती रही है, जिसमें दलित नेताओं की भूमिका केवल सजावटी रही है। भूपेंद्र सिंह हुड्डा जैसे नेता, जो हरियाणा कांग्रेस में हमेशा प्रभावशाली रहे हैं, उन्होंने कभी भी दलितों के हितों को प्राथमिकता नहीं दी।
कांग्रेस की दलित राजनीति में सबसे बड़ी विफलता यह रही है कि पार्टी ने दलित समुदाय को केवल एक वोट बैंक के रूप में देखा और उनके असली मुद्दों को सुलझाने की कभी कोशिश नहीं की। शिक्षा, रोजगार, और सामाजिक सुरक्षा के मामले में दलित समुदाय अब भी हाशिये पर है। कांग्रेस ने हमेशा चुनाव के समय दलित नेताओं को आगे बढ़ाया, लेकिन सत्ता में आने के बाद उनकी समस्याओं को हल करने के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाए। आज जब कांग्रेस को हरियाणा में हार का सामना करना पड़ा है, तो पार्टी फिर से दलित कार्ड खेल रही है, लेकिन क्या दलित समुदाय इस बार कांग्रेस की राजनीति को समझेगा?
कांग्रेस फिर से दलित कार्ड खेल रही है
अब समय ऐसा आ गया है कि दलित समुदाय कांग्रेस जैसी पार्टियों की अवसरवादी राजनीति से दूरी बना रहें है और उन नेताओं और पार्टियों का समर्थन करें, जो सचमुच उनके अधिकारों के लिए लड़ें। कांग्रेस ने हमेशा दलित नेताओं को सत्ता का लालच देकर उनके साथ खेल खेला है, लेकिन इस बार दलित समुदाय को समझना होगा कि उनके असली हितैषी कौन हैं। कांग्रेस की अंदरूनी राजनीति और गुटबाजी ने दलितों को कभी भी मुख्यधारा में नहीं आने दिया, और केवल प्रतीकात्मक नेतृत्व देकर उनकी असली समस्याओं से ध्यान भटकाया है।
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