दलित समुदाय के लोगों का अपने घरों में रहना भी सुरक्षित नहीं है। हाई टेंशन तार जैसे जानलेवा खतरों से जूझ रहे लोगों की जान-माल की सुरक्षा के लिए प्रशासनिक कदम अब तक नहीं उठाए गए हैं। दलित बस्ती के लोगों ने कई बार हाई टेंशन लाइन को हटाने की मांग की, लेकिन उनकी समस्याओं को नजरअंदाज किया गया।
UP News : घिरोर थाना क्षेत्र के ग्राम कोसमा मुसलमीन की दलित बस्ती में बीते कुछ समय से हाईटेंशन लाइन मौत का साया बनकर झूल रही है, जिससे स्थानीय लोगों में भारी आक्रोश और दहशत है। हाल ही में हुई एक दर्दनाक घटना में बस्ती की एक महिला, शीला, इस हाइटेंशन लाइन की चपेट में आकर गंभीर रूप से झुलस गई। बताया जा रहा है कि सोमवार की रात शीला अपने आंगन में किसी काम से गई थी, तभी उसका हाथ टिनशेड में लगे एक पाइप से छू गया, जिसमें हाईटेंशन लाइन का करंट आ रहा था। चीख-पुकार सुनकर परिवार के अन्य सदस्य मौके पर पहुंचे और उसे किसी तरह से करंट से अलग किया। शीला को तत्काल निजी अस्पताल में भर्ती कराया गया, जहां उसकी हालत अब भी गंभीर बनी हुई है।
हाईटेंशन लाइन से पहले भी कई हादसे हो चुके हैं
इस घटना ने गांव के लोगों में गहरा आक्रोश भर दिया है। ग्रामीणों ने बताया कि इस हाईटेंशन लाइन से पहले भी कई हादसे हो चुके हैं। कुछ समय पहले इसी कारण एक भैंस और दो बकरों की मौत हो गई थी, लेकिन इसके बावजूद प्रशासन या बिजली विभाग ने कोई कार्रवाई नहीं की। लगभग 20 साल पहले यह लाइन बस्ती के ऊपर से गुजारी गई थी, और तब से ही इसका खतरा मंडरा रहा है। समय के साथ अब यह तार और भी नीचे आ गए हैं और घरों की छतों के बिल्कुल करीब झूल रहे हैं, जिससे ग्रामीणों को हमेशा अपनी जान का डर सताता रहता है। छत पर जाने में भी लोग अब डरने लगे हैं, क्योंकि तार इतने करीब हैं कि कभी भी बड़ा हादसा हो सकता है।
ग्रामीणों ने कोसमा बिजलीघर पर जोरदार प्रदर्शन किया
ग्रामीणों ने कई बार बिजली विभाग से इस समस्या के समाधान की गुहार लगाई, लेकिन उनकी मांगों को हमेशा अनसुना कर दिया गया। इस हादसे के बाद गुस्साए ग्रामीणों ने कोसमा बिजलीघर पर जोरदार प्रदर्शन किया और बिजली कर्मियों के खिलाफ जमकर नारेबाजी की। उनका कहना है कि अब इस समस्या का तुरंत समाधान नहीं किया गया तो वे बड़े स्तर पर आंदोलन करेंगे। ग्रामीणों ने मांग की है कि या तो इस हाइटेंशन लाइन को हटाया जाए या फिर इसे ऊंचा किया जाए ताकि बस्ती में रह रहे लोगों की जान-माल की सुरक्षा हो सके। ग्रामीण राकेश कठेरिया ने बताया कि पिछले कई वर्षों से इस लाइन की वजह से उनकी बस्ती में डर का माहौल बना हुआ है, लेकिन प्रशासन और बिजली विभाग ने इस दिशा में कोई ठोस कदम नहीं उठाया है।
हाई टेंशन तारों में बहने वाले करंट बेहद खतरनाक
हाई टेंशन तारों में बहने वाले करंट और उससे जुड़े खतरों को समझना बेहद महत्वपूर्ण है, खासकर उन क्षेत्रों में जहां यह तार बस्तियों के पास से गुजरते हैं। हाई टेंशन तारों में 400 से 800 केवी तक का करंट हो सकता है, जो हमारे घरों में इस्तेमाल होने वाले सामान्य करंट से कई गुना अधिक होता है। यह करंट इतना खतरनाक होता है कि इसके संपर्क में आने पर व्यक्ति की तुरंत मौत हो सकती है।
इन तारों को बिना छुए भी मौत हो जाती है
क्या आपको पता है कि बिना तार को छुए भी झटका लग सकता हैं .यह समस्या तब और गंभीर हो जाती है जब मौसम में नमी होती है, जैसे कि बारिश के दौरान। नमी के कारण इलेक्ट्रिक फील्ड और अधिक विस्तृत हो जाता है, जिससे करंट तारों से दूर तक फैल सकता है। तो इसलिए बिना तार को छुए भी करंट का झटका लग सकता है। इस करंट की तीव्रता इतनी अधिक होती है कि व्यक्ति की जान भी जा सकती है।
क्या प्रसाशन के लिए दलित की जान की कोई कीमत नहीं है
अब सवाल यह उठता है कि ये जब इतना खतरनाक है तो दलित की इस बस्ती में तारों को लेकर प्रसाशन सतर्क क्यों नहीं हैं .आज इस प्रकार की घटनाएं इस बात को दर्शाती हैं कि समाज के हाशिए पर मौजूद समुदायों को प्रशासन की प्राथमिकता में लाने के लिए अभी भी संघर्ष करना पड़ रहा है। दलित बस्तियों में ऐसी लापरवाही न केवल प्रशासन की विफलता को उजागर करती है, बल्कि यह भी सवाल उठाती है कि इन लोगों के जीवन की सुरक्षा के लिए जरूरी कदम कब उठाए जाएंगे। यह एक गंभीर स्थिति है, जहां बार-बार हादसे होने के बावजूद कोई ठोस कार्रवाई नहीं हो रही है, जिससे इन लोगों को यह महसूस हो रहा है कि उनकी जान की कोई कीमत नहीं है।
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दलित बस्ती में तारों को लेकर प्रसाशन सतर्क क्यों नहीं?
ऐसे में यह जरूरी है कि प्रशासन तुरंत हरकत में आए और हाई टेंशन लाइन को हटाने या उसे ऊंचा करने के लिए आवश्यक कदम उठाए। यह न केवल इन लोगों की सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि यह भी सुनिश्चित करेगा कि भविष्य में इस तरह के हादसे न हों। यदि समय रहते इन समस्याओं का समाधान नहीं किया गया, तो यह प्रशासनिक असफलता का एक बड़ा उदाहरण बन जाएगा, जो दलित समुदाय के प्रति सरकारी तंत्र की उदासीनता को स्पष्ट रूप से दर्शाएगा।
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