उत्तराखण्ड के मदरसों में संस्कृत के साथ अब रामायण पढ़ाने का ऐलान, वक्फ बोर्ड के अध्यक्ष ने कही बड़ी बात

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भाजपा शासित राज्यों में संप्रदाय विशेष के साथ दुर्व्यवहार की घटनायें जब-तब मीडिया की सुर्खियां बनी रहती हैं। मदरसों पर भी भाजपा ने एक तरह से नकेल कसना शुरू कर दिया है। जी हां, ये खबर सुनने में जरूर थोड़ी अटपटी लग सकती है, मगर इसकी शुरुआत हो चुकी है। पहाड़ी राज्य उत्तराखण्ड जिसे देवभूमि भी कहा जाता है, में मुख्यमंत्री धामी की सरकार में मदरसों में अब संस्कृत के बाद रामायण पढ़ाये जाने की बात कही जा रही है। गौरतलब है कि उत्तराखण्ड एक ऐसा राज्य है, जहां शायद मुस्लिमों का प्रतिशत और राज्य के मुकाबले बहुत कम होगा, मगर पिछले साल पुरोला की घटना जो पूरे मीडिया की सुर्खियों में रही, ने मुस्लिमों के खिलाफ वैमनस्य और एक कौम का दुष्प्रचार करने का काम किया।

खैर, अब उत्तराखण्ड के मदरसों में संस्कृत और रामायण का प्रवेश कराये जाने पर उत्तराखंड वक्फ बोर्ड के अध्यक्ष शादाब शम्स कहते हैं, हम यहां पढ़ने वाले बच्चों को रामायण का पाठ भी पढ़ाएंगे, ताकि बच्चे अपनी संस्कृति से जुड़ सके। उनको अपने इतिहास की जानकारी रहे। ये बच्चे भी संस्कृत के साथ साथ वेद पुराण और रामायण के बारे में भी जान सकें। वक्त बोर्ड के अंतर्गत पड़ने वाले 117 मदरसों में हम बच्चों को मार्च से शुरू होने वाले नये पाठ्यक्रम में संस्कृत के अलावा रामायण पढ़ायेंगे।

इससे भी दो कदम आगे बढ़ते हुए शादाब शम्स कहते हैं, ‘आधुनिक मदरसों में औरंगजेब के बारे में नहीं पढ़ाया जाए, बल्कि भगवान राम और नबी को पाठ्यक्रम में शामिल किया जाए। हमारा डीएनए भगवान राम से मेल खाता है, हम हिंदुस्तानी हैं। श्रीराम का किरदार ऐसा है, जिसे लोग फॉलो करते हैं। कोई भी पिता श्रीराम जैसी ही औलाद चाहेंगे, जो अपने वालिद के लिए राज-पाठ छोड़ दे। छोड़कर कहे कि मैं वनवास के लिए जा रहा हूं। मेरे पिता के वचन को निभा रहा हूं। लक्ष्मण के जैसा भाई कौन नहीं चाहेगा? ऐसा भाई जो कहे कि मेरे भाई सबकुछ छोड़कर जा रहे हैं, तो मैं भी सब त्याग दूंगा। क्या औरंगजेब जैसा भाई चाहिए किसी को, जो गर्दन काट दे। ऐसा बेटा कौन पसंद करेगा, जो राजपाठ के लिए अपने पिता को सलाखों के पीछे डाल दे। हम औरंगजेब नहीं पढ़ाएंगे। हम बच्चों को श्रीराम पढ़ाएंगे। हम अपने नबियों को मोहम्मद साहब को पढ़ाएंगे। हम हिंदी हैं।

गौरतलब है कि उत्तराखंड के मदरसों में बच्चों को संस्कृत पढ़ाने की बात काफी समय पहले कही गई थी, जिसका मुस्लिम मौलानाओं की ओर से ज़बरदस्त विरोध किया था, मगर अब जिस तरह से भाजपा शासित उत्तराखंड में एक कदम और आगे बढ़ाते हुए मदरसों में रामायण का पाठ पढ़ाने का वक्फ बोर्ड के अध्यक्ष शादाब शम्स ने ऐलान किया है, उससे लगता है कि इस मसले पर राजनीति भी तेज होगी। इस फ़ैसले को लेकर कई तरह की प्रतिक्रियाएं सामने आनी शुरू हो गयी हैं, मगर वक्फ बोर्ड इस बात पर अड़ा हुआ है कि मदरसों में रामायण ज़रूर पढ़ाई जाएगी, चाहे वो यहां पढ़ें या न पढ़े। इस फ़ैसले को लागू करने से रोका नहीं जा सकेगा।

वक्फ बोर्ड अध्यक्ष शादाब शम्स दावा करते हैं, ‘हिंदुस्तान में मुसलमानों ने धर्म परिवर्तन किया है, लेकिन अपने पूर्वजों की परंपरा को बनाए रखना हमारी प्राथमिकता है। इसलिए विकसित भारत की तर्ज पर मदरसों में बदलाव लाने का काम किया जा रहा है, ताकि सभी धर्म, जाति के छात्र अपनी संस्कृति के बारे में जानते हुए बेहतर शिक्षा हासिल कर पायें। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने मदरसों में पढ़ने वाले छात्र-छात्राओं की शिक्षा बेहतर बनाने के लिए एक हाथ में कुरान, दूसरे हाथ में लैपटाप देने का संकल्प लिया है।’

बकौल शादाब शम्स मदरसों में रामायण पढ़ाने के लिए विशेष टीचर रखे जाएंगे, जो छात्रों को किताबों के माध्यम से श्रीराम के चरित्र से रू-ब-रू करायेंगे। मदरसा बोर्ड के अध्यक्ष समूह काजमी ने तो बच्चों को मदरसों में वेदों का ज्ञान दिए जाने तक की वकालत कर डाली थी।

वही इस फैसले के खिलाफ तमाम मुस्लिम संगठनों ने आवाज उठानी शुरू कर दी है। जमीयत उलेमा उत्तराखंड के अध्यक्ष मौलाना मोहम्मद आरिफ ने मीडिया से हुई बातचीत में कहा, ‘ये फैसला लिया नहीं, बल्कि थोपा जा रहा है, जो बिल्कुल भी सही नहीं है। ऐसा करके ये लोग कौम को धर्म से दूर करना चाहते हैं। वो खुद एक मदरसे के प्रिंसिपल हैं, वो ये कभी नहीं कर पाएंगे।अगर कोई फैसला लिया जाता है तो उस फैसले को लेकर पहले चर्चा होती है, फिर बोर्ड में लाया जाता है, लेकिन मुख्यमंत्री और बीजेपी के बड़े नेताओं के आगे नंबर बढ़ाने के लिए इस तरह के बयान दिए जा रहे हैं, जिसकी वो निंदा और विरोध करते हैं।’

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