रामचरितमानस (ramcharitmanas) पर लागातार विवाद के बीच अब समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव स्वामी प्रसाद मौर्य (swami prasad maurya) ने धर्म को लेकर बाबा साहेब अंबेडकर (ambedkar) का जिक्र किया है। उन्होंने अपनी एक फेसबुक पोस्ट में लिखा कि, “कदम-कदम पर जातीय अपमान की पीड़ा से व्यथित होकर ही डॉ. अम्बेडकर ने कहा था कि ‘मैं हिंदू धर्म में पैदा हुआ यह मेरे बस में नहीं था, किंतु मैं हिंदू होकर नहीं मरूंगा, ये मेरे बस में है।“
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धर्म पर बाबा साहेब की इन पंक्तियों को कोट करते हुए मौर्य ने आगे लिखा कि भारतीय संविधान लागू होने के बाद बाबा साहेब अंबेडकर ने साल 1956 में नागपुर दीक्षाभूमि पर 10 लाख लोगों के साथ बौद्ध धर्म स्वीकार कर लिया था।
कदम-कदम पर जातीय अपमान की पीड़ा से व्यथित होकर ही डॉ. अम्बेडकर ने कहा था कि 'मैं हिंदू धर्म में पैदा हुआ यह मेरे बस में नहीं था, किंतु मैं हिंदू होकर नहीं मरूंगा, ये मेरे बस में है।' फलस्वरूप सन 1956 में नागपुर दीक्षाभूमि पर 10 लाख लोगों के साथ बौद्ध धर्म स्वीकार किया।
— Swami Prasad Maurya (@SwamiPMaurya) February 4, 2023
शूद्र होने का अपमान नहीं तो क्या ?
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स्वामी प्रसाद मौर्य ने अपनी पोस्ट में आगे लिखा कि किस तरह से उच्च पदों पर होने के बाद भी भारत देश में जाति के आधार पर प्रधानमंत्री औऱ राष्ट्रपति तक को अपमान झेलना पड़ा है। मौर्य ने लिखा कि, जब तत्कालीन उपप्रधानमंत्री, बाबू जगजीवन राम (babu jagjivan ram) ने संपूर्णानंद मूर्ति का उद्घाटन किया था तो मूर्ति को गंगा जल से धोया गया था।

वहीं जब उत्तरप्रदेश की कमान संभालने के बाद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ (yogi adityanath) से मिलकर पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव (akhilesh yadav) मुख्यमंत्री आवास से बाहर गए थे तो मुख्यमंत्री आवास को गोमूत्र से धुलवाया गया था। इतना ही नहीं देश के सर्वोच्च पद पर आसीन तत्कालीन राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद (ramnath kovind) जी को उनकी जाति की वजह से सीकर ब्रह्मामंदिर में प्रवेश नहीं करने देना शूद्र होने का अपमान नहीं तो और क्या है ? मौर्य ने आगे लिखा कि सोचिए जब देश के सभी बड़े नेताओं का जाति के नाम पर अपमान होता है, उनके साथ इस तरह की घटनाएं घटती हैं तो गाँव-गाँव में आदिवासियों, दलितों औऱ पिछड़ो के साथ क्या होता होगा ?
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रामचरितमानस को लेकर क्यों हैं विवाद..?
देश में लगातार रामचरितमानस को लेकर विवाद बढ़ रहा है। जिसकी शुरूआत बिहार के शिक्षा मंत्री चंद्रशेखर से हुई। उन्होंने एक कार्य़क्रम में मीडिया से बात करते हुए कहा कि रामचरितमानस में महिलाओं और शूद्रों (यानी आज के SC, ST और OBC) के लिए अपमानजनक बातें कही गई हैं। ऐसे ग्रंथ को बैन कर देना चाहिए..। इसके बाद कई नेता औऱ राजनीतिक पार्टियाँ चंद्रशेखर के सर्मथन में उतर आई। समाजवादी पार्टी के नेता स्वामी प्रसाद मौर्य उनमें से एक हैं।

बहरहाल, रामचरितमानस अपने विवादित श्लोक “ढोल, गँवार, शूद्र, पशु, नारी सकल ताड़ना के अधिकारी” को लेकर ज्यादा चर्चा में हैं। इस विवादित श्लोक का बचाव करने वालों के मुताबिक यहाँ ताड़ने का मतलब “देखरेख” या “शिक्षा” है। तो वहीं इस श्लोक का विरोध करने वालो के मुताबिक तुलसीदास दुबे ने इस श्लोक में ढोल, गँवार, शूद्र, पशु, नारी को पीटने (ताड़ना) का अधिकारी बताया है। बहरहाल, मुद्दे को लेकर राजनीतिक मंच पर खूब मनोरंजन हो रहा है लेकिन इस बात का सटीक जवाब कोई नहीं दे पा रहा है कि “ढोल, गँवार, शूद्र, पशु, नारी किसके हैं आखिर अधिकारी..?”