क्या मायावाती प्रधानमंत्री बन सकती हैं?

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एक सवाल जो लोकसभा चुनाव आने से पहले हर किसी के मन में आता है, सवाल ये कि क्या बहनजी प्रधानमंत्री बनेगीं ?  इस सवाल का फ़िलहाल कोई सटीक जवाब मिलना मुश्किल है क्योंकि मायावती ने अभी तक खुद इस बात का जिक्र नहीं किया है कि वह प्रधानमंत्री बनेंगीं या बनना चाहती हैं। हालांकि अगर यह सवाल इस तरह से पूछा जाए कि क्या बहनजी प्रधानमंत्री बन सकती हैं ?  तो यकीनन इस सवाल का जवाब हाँ में होगा। वहीं अगर मायावती प्रधानमंत्री बनती है तो BSP के जनक औऱ दलितो और वंचितों की मुखर आवाज़ रहे कांशीराम का वो मिशन भी पूरा होगा जिसे लेकर वो राजनीति में आए थे।

 

मिशन के लिए जब कांशीराम ने राष्ट्रपति बनने से किया था इंकार:

जब 1977 में कांशीराम मायावती से मिले थे और उन्हें IAS का सपना छोड़ राजनीति में आने की बात कही थी तब कांशीराम ने मायावती को वादा किया था कि एक दिन मायावती को इतने ऊंचे पद पर पहुंचा देंगे कि कलेक्टर और अधिकारी उनके एक आदेश पर हाथ बांधे खड़े होंगे।

साभार: सोशल मीडिया

 

कांशीराम ने उन्हें उत्तरप्रदेश का मुख्यमंत्री बनाकार अपना ये वादा तो पूरा कर दिया लेकिन उनका मिशन अभी तक भी पूरा नहीं हुआ है। कांशीराम हमेशा से चाहते थे कि दलित समाज के लोगों की पहुंच उच्च पदो तक हो। इसलिए जब अटल बिहारी वाजपेयी ने उन्हें राष्ट्रपति बनाने का ऑफर किया तो कांशीराम ने इस ऑफर को ठुकरा दिया।

क्या था कांशीराम का मिशन:

इस वाक्या को बड़े ही दिलचस्प तरीके से बद्रीनारायण ने अपनी किताब “कांशीराम: द लीडर ऑफ द दलित्स” में लिखा है कि कांशीराम खुद इस बात का जिक्र करते थे कि अटल बिहारी वाजपेयी ने उन्हें राष्ट्रपति बनाने का ऑफर दिया था लेकिन कांशीराम ने इस ठुकरा दिया क्योंकि कांशीराम जानते थे कि असली पॉवर राष्ट्रपति में नहीं बल्कि प्रधानमंत्री के पद में होती है। वह जानते थे कि राष्ट्रपति बनाकर उन्हे चुपचाप बिठा दिया जाएगा। जिसके लिए वह बिल्कुल भी तैयार नहीं थे।“

कांशीराम और मायावती (साभार: सोशल मीडीया)

कांशीराम ने अटल बिहारी वाजपेयी को दो टूक कहा था कि वह राष्ट्रपति नहीं बल्कि प्रधानमंत्री बनना चाहते हैं। कांशीराम तो प्रधानमंत्री नहीं बने लेकिन आज के दौर में मायावती के लिए ये कवायद जरूर लगाई जा रही है कि मायावती प्रधानमंत्री बनेंगी ?  अगर मायावती प्रधानमंत्री बनती है तो कांशीराम का सालों पहले शुरू किया गया मिशन सफल होगा वहीं मायावती पहली दलित महिला होगीं जो भारत की प्रधानमंत्री बनेंगी।

प्रधानमंत्री पद के लिए सही दावेदार:

प्रधानमंत्री बनने के लिए एक नेता की उम्र 30 साल से अधिक होनी चाहिए। वो लोकसभा या राज्यसभा का सदस्य होना चाहिए और वह जिस पार्टी से चुनाव जीतकर आए वो राष्ट्रीय पार्टी होनी चाहिए। वहीं बात मायावती की करें तो उन्हें राजनीति में आए लगभग 40 साल हो चुकें हैं। इस बीच वह उत्तरप्रदेश की चार बार मुख्यमंत्री रही हैं वहीं लोकसभा और राज्यसभा में एक सांसद के तौर पर भी मायावती ने दलितों औऱ वंचितों की आवाज़ को प्रमुखता से उठाया है।

सभा को संबोधित करती मायावती (साभार: सोसल मीडिया)

 

वहीं बहुजन समाज पार्टी भी एक राष्ट्रीय पार्टी है। इस प्रकार से मायावती इस क्राइटेरिया को फुलफिल करती हैं। हालांकि 2019 के लोकसभा चुनावों में बीजेपी के खिलाफ़ पूरा विपक्ष एकसाथ आया था। एक ही मंच पर मायावती, ममता बनर्जी, अखिलेश यादव और अरविंद केजरीवाल के साथ राहुल गांधी दिखे थे लेकिन जब बात विपक्ष की ओर से प्रधानमंत्री का चेहरा कौन होगा तो पूरे विपक्ष में खींचातान होने लगी थी।

लोकसभा चुनावों को लेकर फॉर्म में है BSP:

बहरहाल, उत्तरप्रदेश में बीएसपी एक्टिव दिख रही है क्योंकि बीएसपी सुप्रीमो मायावती एक्टिव हैं। उत्तरप्रदेश के नगर निकाय चुनावों को लेकर और 2024 के लोकसभा चुनावों के लिए मायावती ने कमर कस ली है। मायावती ने इस बार दलित-मुस्लिम गठजोड़ का नया समीकरण बना रही हैं। बता दें कि लोकसभा की उत्तरप्रदेश में 80 सीटें हैं वहीं आबादी के हिसाब से उत्तरप्रदेश का गैर-यादव अति पिछड़े वर्ग के 35 फीसदी मतदाता है।

साभार: सोशल मीडिया

दलित मतदाताओं की संख्या 22 फीसदी के करीब है वहीं 20 फीसदी मुस्लिम आबादी है। तीनों को मिला दिया जाए तो कुल 77 फीसदी मतदाता होते है वहीं मुस्लिम आबादी अपने एक तरफा वोटिंग के लिए जानी जती है। अगर बीएसपी दलित- मुस्लिम औऱ पिछड़ों के वोटों को साध लेती है तो इस सत्ता पर बीएसपी की पकड़ मजबूत हो जाएगी। इससे मायावती के प्रधानमंत्री बनने का रास्ता आसान हो जाएगा।

 

 

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