दिल्ली चुनाव में अरविंद केजरीवाल और अखिलेश यादव का गठबंधन दलित हितों की अनदेखी और राजनीतिक स्वार्थ का प्रतीक है। केजरीवाल सरकार ने दलित बहुल क्षेत्रों में शिक्षा, स्वास्थ्य, और बुनियादी सुविधाओं की अनदेखी की, जबकि अखिलेश यादव का रिकॉर्ड भी उत्तर प्रदेश में दलितों के लिए निराशाजनक रहा है। यह गठबंधन केवल सत्ता की राजनीति तक सीमित है, जिससे दलित समुदाय को कोई लाभ नहीं मिलेगा। दलितों के उत्थान के लिए वास्तविक नीतियों और नेताओं की जरूरत है, न कि राजनीतिक जोड़-तोड़ की।
दिल्ली चुनाव में आम आदमी पार्टी और समाजवादी पार्टी के गठबंधन ने दलित और हाशिए के समुदायों के हितों को नजरअंदाज कर दिया है। 30 जनवरी को रिठाला विधानसभा में अरविंद केजरीवाल और अखिलेश यादव का रोड शो और रैली महज राजनीतिक स्वार्थ का खेल है। ये दोनों पार्टियां भले ही खुद को गरीबों और दलितों की हितैषी बताती हों, लेकिन इनके कार्यकाल का रिकॉर्ड इनके वादों को खोखला साबित करता है। केजरीवाल सरकार ने अपने दस साल के शासन में दिल्ली के दलित बहुल इलाकों को योजनाओं और बुनियादी सुविधाओं से वंचित रखा, जबकि सपा का इतिहास उत्तर प्रदेश में दलितों के साथ भेदभाव और अत्याचार से भरा है।
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दिल्ली सरकार की असफलताएं: दलित बहुल क्षेत्रों में स्थिति दयनीय
केजरीवाल सरकार ने सत्ता में रहते हुए शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार, और जल आपूर्ति जैसे बुनियादी क्षेत्रों में बड़े-बड़े दावे किए, लेकिन इन दावों का लाभ दलित समुदायों तक नहीं पहुंचा। पूर्वी दिल्ली और नरेला जैसे दलित बहुल इलाकों में पीने के पानी और सफाई की स्थिति बेहद खराब है। सरकारी स्कूलों में सुविधाओं की कमी और शिक्षा के नाम पर केवल प्रचार ने दलित बच्चों के भविष्य को प्रभावित किया है। सरकारी अस्पतालों में स्वास्थ्य सेवाएं दलितों के लिए सुलभ नहीं हैं, जबकि मोहल्ला क्लीनिक केवल पोस्टर की शोभा बढ़ा रहे हैं।
सपा और अखिलेश यादव: दलितों के मुद्दों पर विफल नेतृत्व
समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव दिल्ली में केजरीवाल के समर्थन में रैली कर रहे हैं, लेकिन उनका अपना रिकॉर्ड उत्तर प्रदेश में दलितों के लिए निराशाजनक रहा है। सपा सरकार के दौरान दलित अत्याचार के मामलों में बढ़ोतरी हुई और उनके लिए कोई ठोस नीति नहीं बनाई गई। दलित बहुल क्षेत्रों में विकास योजनाएं ठप पड़ी रहीं। अखिलेश यादव का केजरीवाल का समर्थन करना इस बात का प्रमाण है कि दोनों नेता केवल राजनीतिक समीकरण साधने के लिए एकजुट हुए हैं, न कि दलितों के हित में।
इंडिया गठबंधन का दोहरा चरित्र
आम आदमी पार्टी और समाजवादी पार्टी दोनों ही इंडिया गठबंधन का हिस्सा हैं, जिसमें दलित और पिछड़े वर्गों के लिए न्याय की बात की जाती है। लेकिन, दिल्ली में कांग्रेस को किनारे कर सपा का आप का समर्थन करना यह दिखाता है कि गठबंधन का सिद्धांत केवल सत्ता की राजनीति तक सीमित है। यह फैसला क्षेत्रीय ताकतों को मजबूत करने के नाम पर लिया गया है, लेकिन इससे दलितों और वंचित वर्गों को कोई लाभ नहीं होगा।
दलितों के मुद्दों को क्यों किया जा रहा है नजरअंदाज?
दलित समाज की समस्याओं को लेकर न तो आम आदमी पार्टी ने कोई ठोस योजना बनाई है और न ही समाजवादी पार्टी ने उनके उत्थान के लिए प्रयास किया है। दिल्ली में झुग्गी-झोपड़ी में रहने वाले लाखों दलित परिवार आज भी शिक्षा, स्वास्थ्य और रोज़गार जैसी बुनियादी सुविधाओं के लिए तरस रहे हैं। खासतौर पर सफाई कर्मचारी और दैनिक मजदूरी करने वाले दलितों को केजरीवाल सरकार की योजनाओं से कोई वास्तविक लाभ नहीं हुआ।
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हाल ही में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अरविंद केजरीवाल को यमुना में डुबकी लगाने की चुनौती दी थी। इसपर अखिलेश यादव ने केजरीवाल का समर्थन किया, लेकिन यह सब केवल राजनीतिक बयानबाजी तक सीमित है। असल मुद्दा यह है कि यमुना जैसी नदी, जो दलित बहुल इलाकों से गुजरती है, वह आज भी प्रदूषित है और इन इलाकों के लोग स्वच्छ जल तक से वंचित हैं।
दलितों को सशक्त बनाने की जरूरत
दिल्ली और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में दलित समुदाय के विकास के लिए ठोस नीतियों और योजनाओं की जरूरत है। केवल राजनीतिक गठबंधन और मंच साझा करने से दलितों की समस्याएं हल नहीं होंगी। दलित समुदाय के अधिकारों की सुरक्षा के लिए उन नेताओं और पार्टियों की जरूरत है, जो वास्तव में उनके लिए लड़ सकें। केजरीवाल और अखिलेश यादव का यह गठबंधन सिर्फ राजनीतिक समीकरण तक सीमित है और इससे दलित समाज को कोई फायदा नहीं मिलेगा।
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दलित हितों की अनदेखी पर जवाबदेही जरूरी
दिल्ली चुनाव में केजरीवाल और अखिलेश यादव का गठबंधन दलित और वंचित वर्गों के खिलाफ एक नई साजिश है। यह गठबंधन न केवल दलितों के अधिकारों को दबाने का प्रयास है, बल्कि राजनीतिक स्वार्थ की नई परिभाषा भी लिखता है। दलित समुदाय को इन सत्ताधारी पार्टियों की सच्चाई को समझना होगा और अपनी आवाज को मजबूत करने के लिए सही विकल्प चुनना होगा।
*दलित टाइम्स उन करोड़ो लोगो की आवाज़ है जिन्हें हाशिए पर रखा गया है। *
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