दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने जाट समुदाय को केंद्रीय ओबीसी सूची में शामिल करने की मांग उठाई, लेकिन राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग के चेयरमैन हंसराज अहीर ने स्पष्ट किया कि दिल्ली सरकार से ऐसा कोई प्रस्ताव नहीं मिला। जाट आरक्षण की मांग को चुनावी रणनीति माना जा रहा है, जो दलित और अन्य पिछड़े वर्गों के अधिकारों पर असर डाल सकती है। आयोग ने पहले भी जाटों को ओबीसी सूची में शामिल करने के प्रस्ताव खारिज किए थे, यह तर्क देते हुए कि जाट समुदाय सामाजिक और आर्थिक रूप से मजबूत है। आरक्षण का उपयोग वोट बैंक की राजनीति के बजाय वंचित समुदायों के उत्थान के लिए होना चाहिए।
Delhi Politics: दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने विधानसभा चुनाव से ठीक पहले जाट समुदाय को केंद्रीय ओबीसी सूची में शामिल करने की मांग उठाई है। यह मुद्दा दिल्ली के किशनगढ़, मुनिरका और नरेला जैसे इलाकों में जाट मतदाताओं को लुभाने की कोशिश के तौर पर देखा जा रहा है। जाटों की दिल्ली के बाहरी और दक्षिणी हिस्सों में मजबूत पकड़ है, जो चुनावी परिणाम को प्रभावित कर सकती है। लेकिन इस मांग ने आम आदमी पार्टी (आप) की सरकार को कटघरे में खड़ा कर दिया है। राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग के चेयरमैन हंसराज अहीर ने स्पष्ट किया है कि बीते 10 वर्षों में दिल्ली सरकार की ओर से ऐसा कोई प्रस्ताव ही नहीं आया, जिसमें राजधानी के जाटों को केंद्रीय ओबीसी सूची में शामिल करने की मांग की गई हो। उन्होंने कहा कि अगर ऐसा प्रस्ताव आता, तो आयोग इस पर विचार जरूर करता।
जाट समुदाय से मुलाकात पर केजरीवाल का दोगला रवैया: दलित हितों की अनदेखी
पिछड़े वर्ग के अधिकारों पर राजनीति: दलित समाज के लिए अन्याय
इस विवाद के बीच यह सवाल उठता है कि केजरीवाल सरकार की प्राथमिकताएं क्या हैं? जाट समुदाय को आरक्षण दिलाने की मांग को उठाकर वे क्या दलित समाज के अधिकारों को कमजोर करने का प्रयास कर रहे हैं? यह तथ्य महत्वपूर्ण है कि जाट समुदाय कई इलाकों में आर्थिक और सामाजिक रूप से पहले से मजबूत है। ऐसे में उन्हें ओबीसी सूची में शामिल करने की मांग पिछड़े और दलित समुदायों के हकों पर सीधा प्रहार है। दलित समाज, जो सदियों से शोषण और भेदभाव का शिकार रहा है, को आरक्षण के जरिए जो अधिकार मिले हैं, वे किसी भी प्रकार की राजनीति की भेंट नहीं चढ़ने चाहिए।
यूपीए सरकार पर भी सवाल: क्यों खारिज हुआ था प्रस्ताव?
राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग के मुताबिक, दिल्ली से 2010 और 2014 में जाट आरक्षण का प्रस्ताव यूपीए सरकार के कार्यकाल में भेजा गया था, लेकिन इसे दोनों बार खारिज कर दिया गया। आयोग के सदस्य एके मंगोत्रा ने 2014 में सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय को 138 पन्नों की रिपोर्ट में सुझाव दिया था कि जाटों को पिछड़े वर्ग में शामिल करना तर्कसंगत नहीं है। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया था कि जाट समुदाय कई राज्यों में सामाजिक और आर्थिक रूप से प्रभावशाली है। ऐसे में यह निर्णय दलितों और अन्य पिछड़े वर्गों के अधिकारों को कमजोर करेगा।
राजनीतिक एजेंडे पर सवाल: केजरीवाल की रणनीति या सामाजिक न्याय?
केजरीवाल सरकार का यह कदम चुनावी राजनीति से प्रेरित नजर आता है। यह वही सरकार है, जिसने पिछले कई सालों में दलितों और अन्य पिछड़े वर्गों के उत्थान के लिए ठोस कदम उठाने के बजाय केवल वादे किए। जाटों को ओबीसी सूची में शामिल करने की मांग उन लोगों के हितों को नजरअंदाज कर रही है, जो वास्तव में सामाजिक और आर्थिक पिछड़ेपन का सामना कर रहे हैं। अगर यह कदम केवल चुनावी लाभ के लिए उठाया जा रहा है, तो यह उन समुदायों के साथ अन्याय होगा, जो आरक्षण के जरिए अपने अधिकार और सम्मान की लड़ाई लड़ रहे हैं।
दलित समाज की अनदेखी: क्या यही है सामाजिक न्याय?
केजरीवाल सरकार पर यह सवाल उठता है कि उन्होंने अब तक दलित समाज के उत्थान के लिए क्या किया? जबकि दलित समुदाय के लोग शिक्षा, रोजगार और सामाजिक सम्मान के क्षेत्र में अब भी संघर्ष कर रहे हैं। जाट आरक्षण की मांग को उठाकर वे यह साबित कर रहे हैं कि उनकी प्राथमिकता केवल उन समुदायों को लुभाना है, जिनका चुनावी प्रभाव अधिक है। यह कदम सामाजिक न्याय के मूलभूत सिद्धांतों के विपरीत है।
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आरक्षण राजनीति का साधन नहीं, सामाजिक न्याय का अधिकार
जाट आरक्षण का मुद्दा केवल एक चुनावी रणनीति बनकर रह गया है। केजरीवाल सरकार की इस मांग ने दलित और अन्य पिछड़े वर्गों के अधिकारों को खतरे में डाल दिया है। राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग का यह स्पष्ट बयान कि दिल्ली सरकार ने कभी प्रस्ताव नहीं भेजा, आप सरकार की कथनी और करनी में फर्क को उजागर करता है। आरक्षण केवल एक राजनीतिक एजेंडा नहीं है, बल्कि यह उन वर्गों के लिए एक अधिकार है, जो सदियों से वंचित रहे हैं। ऐसे में जरूरी है कि आरक्षण का उपयोग केवल वोट बैंक की राजनीति के लिए न किया जाए, बल्कि इसे वंचित समुदायों के उत्थान के लिए सही तरीके से लागू किया जाए।
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