दलित सेना ने राज्यभर में चौकीदार और दफादार के पदों पर पासवान समुदाय के लिए आरक्षित स्थानों की बहाली के लिए आंदोलन की घोषणा की है। दलित सेना सरकार के उस निर्णय की आलोचना कर रही है, जिसमें इन पदों के लिए सामान्य भर्ती का प्रस्ताव किया गया है, जबकि इन पदों पर पारंपरिक रूप से 90% बहाली पासवान समुदाय के लोगों की होती रही है। राष्ट्रीय प्रवक्ता श्रवण कुमार अग्रवाल ने इसे अन्यायपूर्ण बताया और आंदोलन की चेतावनी दी। यह आंदोलन पासवान समुदाय के अधिकारों की रक्षा करने के लिए होगा।
Bihar : दलित सेना के राष्ट्रीय अध्यक्ष, पूर्व केंद्रीय मंत्री पशुपति कुमार पारस के नेतृत्व में राज्यभर में आंदोलन की घोषणा की गई है। यह आंदोलन विशेष रूप से पासवान समाज के लोगों को चौकीदार और दफादार की सेवा में बहाल करने के लिए किया जाएगा, क्योंकि दलित सेना का आरोप है कि सरकार इन पदों पर सामान्य बहाली की दिशा में कदम बढ़ा रही है, जो पासवान समाज के लिए अनुचित है। इस मुद्दे पर दलित सेना की राष्ट्रीय प्रवक्ता श्रवण कुमार अग्रवाल ने रविवार को राज्य कार्यालय में एक संवाददाता सम्मेलन में विस्तार से जानकारी दी। उनका कहना है कि पिछले कई वर्षों से इन सेवाओं में 90 प्रतिशत बहाली पासवान समाज के लोगों की होती रही है, और अब सरकार इस पर सामान्य बहाली करने का प्रस्ताव लेकर आई है, जो पासवान समाज के हितों के खिलाफ है।
दलित सेना का विरोध और सड़कों पर उतरी आवाज़
इस आंदोलन के माध्यम से दलित सेना सरकार से यह मांग कर रही है कि चौकीदार और दफादार के पदों पर पासवान समाज के लोगों को उनकी प्राथमिकता के अनुसार बहाल किया जाए। दलित सेना ने चेतावनी दी है कि अगर उनकी मांगों को नजरअंदाज किया गया, तो पार्टी के नेता और कार्यकर्ता सड़कों पर उतरकर विरोध प्रदर्शन करेंगे। इस प्रदर्शन का उद्देश्य सरकार को यह एहसास दिलाना है कि इन पदों पर पासवान समाज के अधिकारों का उल्लंघन किया जा रहा है। आंदोलन का नेतृत्व खुद दलित सेना के राष्ट्रीय अध्यक्ष, पशुपति कुमार पारस करेंगे। वे सड़कों पर उतरकर पासवान समाज के अधिकारों के लिए संघर्ष करेंगे।
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सरकार के निर्णय का विरोध: सामान्य बहाली का निर्णय क्यों है अनुचित?
श्रवण कुमार अग्रवाल ने सरकार के इस कदम को सीधे तौर पर गलत और अनुचित बताया है। उनका कहना है कि पासवान समाज के लोग लंबे समय से इस सेवा में कार्यरत रहे हैं और सरकार द्वारा सामान्य बहाली का निर्णय न केवल उनके अधिकारों का उल्लंघन करता है, बल्कि यह समाज के लिए अन्यायपूर्ण भी है। दलित सेना का यह स्पष्ट आरोप है कि सरकार इस निर्णय के माध्यम से पासवान समाज के लोगों को उनके मेहनत के फल से वंचित करना चाहती है।
दलित सेना की रणनीति और भविष्य की योजना
दलित सेना के अध्यक्ष पशुपति कुमार पारस ने यह भी स्पष्ट किया कि अगर सरकार उनकी मांगों को स्वीकार नहीं करती, तो दलित सेना देशभर में बड़े पैमाने पर आंदोलन करने के लिए तैयार है। उनका कहना है कि इस लड़ाई को जीतने तक वे शांत नहीं बैठेंगे। दलित सेना ने अपनी रणनीति के तहत, समाज के हर वर्ग को इस आंदोलन में शामिल करने के लिए एक व्यापक जन जागरूकता अभियान शुरू करने का भी निर्णय लिया है। इसके तहत, दलित समाज के लोगों को इस मुद्दे पर जागरूक किया जाएगा और उन्हें सड़कों पर उतरने के लिए प्रेरित किया जाएगा।
न्याय की लड़ाई: पासवान समाज के अधिकारों के लिए संघर्ष
पशुपति कुमार पारस और उनके समर्थकों का कहना है कि यह सिर्फ एक नौकरी का मुद्दा नहीं है, बल्कि यह एक सम्मान और अधिकार की लड़ाई है। पासवान समाज के लोग वर्षों से चौकीदार और दफादार जैसे महत्वपूर्ण पदों पर कार्यरत रहे हैं, और उनका इस सेवा से वंचित होना सिर्फ एक व्यक्तिगत नुकसान नहीं, बल्कि पूरे समाज के लिए अपमानजनक है। दलित सेना का यह भी मानना है कि सरकार को इस मुद्दे पर पुनर्विचार करना चाहिए और पासवान समाज के लोगों को इन सेवाओं में उनके इतिहास और योगदान के आधार पर प्राथमिकता देनी चाहिए।
समाज का समर्थन: पासवान समाज की एकजुटता
दलित सेना का मानना है कि यह आंदोलन न केवल पासवान समाज, बल्कि पूरे दलित समुदाय की आवाज बनेगा। पासवान समाज के लोगों ने भी इस आंदोलन में सक्रिय रूप से भाग लेने का वादा किया है और वे इस संघर्ष में पूरी एकजुटता के साथ शामिल होने के लिए तैयार हैं। दलित सेना का दावा है कि सरकार के खिलाफ यह आंदोलन एक ऐतिहासिक कदम साबित होगा, जो पासवान समाज के लोगों के अधिकारों के प्रति संवेदनशीलता को जगाएगा और समाज में समानता के लिए एक मजबूत संदेश भेजेगा।
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संघर्ष जारी रहेगा
दलित सेना का आंदोलन सरकार तक एक मजबूत संदेश पहुंचाने के लिए तैयार है कि यदि पासवान समाज के अधिकारों का उल्लंघन किया जाएगा, तो इसके खिलाफ एक विशाल जनसैलाब उठेगा। पशुपति कुमार पारस के नेतृत्व में यह आंदोलन राज्यभर में फैलने की संभावना है और इसके परिणामस्वरूप सरकार को अपने निर्णय पर पुनर्विचार करने के लिए मजबूर किया जा सकता है।
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