UP: गांव छोड़ने की धमकी, दलित परिवार पर अत्याचार और न्याय की गुहार

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UP में दलित परिवार को गांव छोड़ने की धमकी दी गई। संगीता नामक महिला ने आरोप लगाया कि उसके बेटे निखिल के साथ जातिसूचक शब्द कहकर मारपीट की गई। पुलिस में शिकायत दर्ज कराने के बाद आरोपियों ने परिवार को धमकाया और घर में घुसकर अभद्रता की। परिवार अब भी डरा हुआ है और न्याय की गुहार लगा रहा है।

UP : सिविल लाइंस क्षेत्र के भटावली गांव में रहने वाले दलित परिवार के साथ जो घटना घटी, उसने समाज में जातिगत भेदभाव और अत्याचार की गहरी सच्चाई को उजागर कर दिया। गांव हरज्ञान वाल्मीकि की पत्नी संगीता ने अपने परिवार के खिलाफ हो रहे अत्याचार की कहानी बयां की। संगीता का कहना है कि उनका बेटा निखिल जब अपने घर के बाहर सड़क पर खड़ा था, तभी गांव के ही कमल, उसके भाई अरविंद, पिता रतन सिंह, शिवम और पंकज वहां आए। उन्होंने न सिर्फ निखिल के साथ मारपीट की, बल्कि उसे जातिसूचक शब्द कहकर अपमानित भी किया। यह घटना उनके लिए शर्मिंदगी और डर का कारण बनी।

शिकायत के बाद बढ़ा अत्याचार

संगीता ने इस मामले में न्याय की उम्मीद करते हुए सिविल लाइंस थाने में शिकायत दर्ज करवाई। लेकिन इस साहस का नतीजा उल्टा निकला। आरोपियों ने इस शिकायत को अपनी प्रतिष्ठा पर हमला मानते हुए परिवार को धमकाना शुरू कर दिया। संगीता ने बताया कि शिकायत दर्ज कराने के बाद उन्हें धमकियां मिलने लगीं। आरोपियों ने कहा, “तुमने शिकायत करके अच्छा नहीं किया। अब गांव छोड़कर चले जाओ, वरना अंजाम बुरा होगा।”

महिलाओं ने भी घर में घुसकर की अभद्रता

स्थिति और भी गंभीर तब हो गई जब मदनपाल की पत्नी मुन्नी देवी, कमल की पत्नी ज्योति और अरविंद की पत्नी निधि ने संगीता के घर में घुसकर अभद्रता की। उन्होंने न सिर्फ अपमानजनक शब्द कहे, बल्कि परिवार को मानसिक रूप से प्रताड़ित भी किया। यह घटना न केवल संगीता के परिवार के लिए बल्कि समाज के लिए भी एक गंभीर चिंता का विषय है।

पुलिस ने दर्ज किया केस, लेकिन डर बरकरार

सीओ सिविल लाइंस अर्पित कपूर ने बताया कि पीड़िता की तहरीर के आधार पर आरोपियों के खिलाफ मारपीट, धमकी देने और एससी-एसटी एक्ट समेत अन्य धाराओं में केस दर्ज कर लिया गया है। हालांकि, संगीता और उनका परिवार अब भी डरा हुआ है। उनके दिलो-दिमाग में यह सवाल गूंज रहा है कि क्या वे अपने ही गांव में सुरक्षित हैं?

जातिगत भेदभाव का अंत कब होगा?

यह घटना केवल एक परिवार की कहानी नहीं है, बल्कि समाज में फैली उस कुप्रथा का प्रतिबिंब है, जिसमें जातिगत भेदभाव और अत्याचार अभी भी जारी है। संगीता और उनके परिवार ने इस मामले में न्याय की गुहार लगाई है, लेकिन सवाल यह है कि क्या उनकी आवाज को सही तरीके से सुना जाएगा? क्या उन्हें उनका हक मिलेगा, या फिर उन्हें मजबूर होकर गांव छोड़ना पड़ेगा?

 न्याय की लड़ाई और समाज की जिम्मेदारी

यह घटना समाज के हर व्यक्ति के लिए एक चेतावनी है कि अगर जातिगत भेदभाव के खिलाफ आवाज नहीं उठाई गई, तो यह समस्या और गहराती जाएगी। यह जरूरी है कि प्रशासन इस मामले में सख्त कदम उठाए और पीड़ित परिवार को सुरक्षा प्रदान करे। साथ ही, समाज को भी अपनी मानसिकता बदलनी होगी और हर जाति के लोगों को समान अधिकार देने के लिए प्रयास करना होगा।

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