झारखंड ग्राउंड रिपोर्ट : आदिवासियों की उपजाऊ भूमि अडानी कोयला खनन के लिए सौंप रही सरकार, लोग कर रहे आंदोलन

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झारखंड के गोंदल पुप क्षेत्र में अडानी कोयला खनन परियोजना के खिलाफ ग्रामीणों का सतत आंदोलन जारी है। ग्रामीणों का कहना है कि सरकार उनकी उपजाऊ जमीन पूंजीपतियों को सौंप रही है, जिससे हजारों परिवार विस्थापित होंगे। वे खनन के कारण पर्यावरण, खेती और आजीविका को होने वाले नुकसान से चिंतित हैं। प्रदर्शनकारी भूमि अधिग्रहण कानून में संशोधन और सरकार पर पूंजीपतियों को फायदा पहुंचाने का आरोप लगा रहे हैं। ग्रामीण स्पष्ट रूप से कहते हैं, “हमें न पैसा चाहिए, न नौकरी, सिर्फ अपनी जमीन और जीवन बचाना है।”

झारखंड के चुनावी माहौल में हजारीबाग के करीब बड़का गांव से 20 किलोमीटर आगे गोंदल पुप पहाड़ के तलहटी क्षेत्र में चल रहे संघर्ष ने सरकार और जनता के बीच एक अहम मुद्दा खड़ा कर दिया है। यह क्षेत्र अपनी उपजाऊ भूमि, जल संसाधन, और प्राकृतिक संपदा के लिए प्रसिद्ध है। लेकिन अब यह इलाका “अडानी कोयला खनन परियोजना” के विरोध का गढ़ बन गया है। कर्णपुरा बचाव संघर्ष समिति के बैनर तले स्थानीय ग्रामीण सतत धरना दे रहे हैं और अपनी जमीन और जीवनशैली को बचाने की गुहार लगा रहे हैं।

“यह जमीन हमारी है, इसे कोई नहीं ले सकता”

धरना स्थल पर बड़ी संख्या में ग्रामीण अपनी नाराजगी जाहिर करते हुए कहते हैं, “हमने वोट दिया था अपने अधिकारों के लिए, न कि अपनी जमीन से वंचित होने के लिए। सरकार पूंजीपतियों को लाभ पहुंचाने के लिए हमारी जमीन छीनना चाहती है। यह परियोजना हमारे जीवन का आधार खत्म कर देगी।” ग्रामीणों का कहना है कि झारखंड के खनिज संसाधन तो पहले से ही देश के विकास के लिए उपयोग हो रहे हैं, फिर नई खदानें खोलने का क्या औचित्य है? उनका मानना है कि यह परियोजना विकास के नाम पर पूंजीपतियों को फायदा पहुंचाने की योजना है।

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खनिज संपदा बनाम कृषि प्रधान क्षेत्र

यह इलाका झारखंड की उपजाऊ जमीनों में से एक है, जहां बहुफसली खेती होती है। स्थानीय किसान इस बात पर जोर देते हैं कि अगर उनकी जमीन ले ली गई, तो उनकी आजीविका पूरी तरह समाप्त हो जाएगी। “हमारे लिए जमीन ही जीवन है। इसी पर खेती करके हम अपने बच्चों को पढ़ाते हैं, परिवार पालते हैं। सरकार कहती है कि पैसा देगी, लेकिन पैसा खत्म हो जाएगा, हमारी जमीन वापस नहीं आएगी।”

एक किसान ने कहा, “यहां की फसलें ही हमारी पूंजी हैं। अगर यह खदान खुल गई, तो हमारे बच्चे पढ़ाई कैसे करेंगे? क्या हम कोयले की कालिख में उनका भविष्य खोजें? हमारी जमीन नहीं चाहिए, हमें पैसा या नौकरी नहीं चाहिए। हमारी जमीन ही हमारी असली संपत्ति है।”

भूमि अधिग्रहण कानून में बदलाव और जनता का विरोध

ग्रामीणों ने भूमि अधिग्रहण कानून 2013 में किए गए संशोधनों पर सवाल उठाए हैं। उनका कहना है कि पुराने कानून में बहुफसली भूमि और जल स्रोतों के क्षेत्रों को खदानों के लिए आरक्षित नहीं किया जा सकता था। लेकिन अब इन संशोधनों के बाद सरकार बड़ी कंपनियों के पक्ष में नीतियां बना रही है। “सरकार ने कानून बदलकर हमारा जीवन छीनने का रास्ता आसान बना दिया है। जिन क्षेत्रों में खनन होगा, वहां नदियां और उपजाऊ जमीनें बर्बाद हो जाएंगी।”

विस्थापन: जीवन के पुनर्निर्माण का दर्द

गोंदल पुप के पास पहले से विस्थापित गांवों का उदाहरण ग्रामीणों के लिए सबक है। एक व्यक्ति ने बताया, “जो लोग पहले विस्थापित हुए, उनका क्या हुआ? वे आज भी दर-दर भटक रहे हैं। सरकार ने वादे किए थे, लेकिन उनका पालन नहीं किया। नई जगह पर भी उन्हें स्वीकार नहीं किया गया। दाह-संस्कार तक के लिए पैसे देने पड़ते हैं। क्या यही विकास है?”

सरकार की दलील और जनता का आक्रोश

सरकार का कहना है कि देश में कोयले की कमी है, और इसे पूरा करने के लिए नई खदानें जरूरी हैं। यह खनन परियोजना झारखंड और देश के विकास के लिए महत्वपूर्ण बताई जा रही है। लेकिन स्थानीय लोगों का दावा है कि देश में कोयले का पर्याप्त उत्पादन हो रहा है और पहले से बंद पड़ी खदानों को चालू किया जा सकता है। “यहां की जनता का कहना है कि यह खनन परियोजना विकास के लिए नहीं, बल्कि पूंजीपतियों को लाभ पहुंचाने के लिए है। अगर सरकार को वाकई झारखंड का विकास करना है, तो पहले यह देखे कि यहां के लोग किस स्थिति में जी रहे हैं।”

जल, जंगल और जमीन का भविष्य

गोंदल पुप का यह संघर्ष झारखंड के जल, जंगल और जमीन को बचाने की लड़ाई है। ग्रामीण अपने पर्यावरण और पारंपरिक जीवनशैली को बचाने के लिए दृढ़ हैं। “हमारा जीवन हमारी जमीन से है। इसे छीनकर कोई विकास नहीं हो सकता। अगर सरकार सचमुच झारखंड का भला चाहती है, तो पहले हमें समझाए कि हमारी जमीन और पर्यावरण के बिना यह विकास कैसे टिकाऊ होगा।”

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कौन जीतेगा यह लड़ाई?

झारखंड के चुनावी माहौल में गोंदल पुप का यह संघर्ष सवाल खड़े करता है कि विकास किसके लिए और किस कीमत पर हो रहा है। जहां सरकार इसे देश के विकास का हिस्सा मानती है, वहीं स्थानीय लोग इसे अपने अस्तित्व पर खतरा मानते हैं। यह देखना बाकी है कि इस लड़ाई में जीत किसकी होगी—जनता की, जो अपनी जमीन और जीवनशैली बचाने के लिए खड़ी है, या सरकार और पूंजीपति, जो विकास के नाम पर अपने कदम बढ़ा रहे हैं।

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