महाकुंभ में दलित संतों को मान्यता: 370 दलितों को संत पदवी मिलने से समाज में आएगा बदलाव?

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प्रयागराज महाकुंभ में जूना अखाड़ा ने 370 दलितों को संत पदवी देने का निर्णय लिया है, जिससे दलित समाज को धर्म में समान अधिकार और सम्मान मिलेगा। इस पहल का उद्देश्य समाज में समरसता लाना और सभी जातियों को सनातन धर्म में एक समान स्थान देना है।

Mahakumbh: महाकुंभ 2025 की तैयारियों के तहत इस बार प्रयागराज में एक ऐतिहासिक कदम उठाया जा रहा है। जूना अखाड़ा, जो हिंदू संतों का एक प्रतिष्ठित संगठन है, ने महाकुंभ के दौरान 370 दलितों को संत दीक्षा देने का निर्णय लिया है। इस कदम के पीछे जूना अखाड़ा के महामंडलेश्वर स्वामी महेंद्रानंद गिरि का बड़ा योगदान है, जो लंबे समय से दलित समाज को सनातन धर्म में उचित स्थान देने के लिए प्रयासरत हैं।

जूना अखाड़ा का संकल्प: सनातन धर्म में सबको समानता

सनातन धर्म में सबको समानताजूना अखाड़े के प्रमुख स्वामी महेंद्रानंद गिरि ने बताया कि यह पहल दलित समाज को संत समाज में सम्मान और अधिकार दिलाने के उद्देश्य से की जा रही है। उन्होंने कहा कि सनातन धर्म में जाति या वर्ग के आधार पर कोई भेदभाव नहीं होना चाहिए। उनके अनुसार, ये संत दीक्षा पद देकर समाज में एक सकारात्मक संदेश दिया जाएगा कि धर्म की सेवा के लिए किसी भी जाति का व्यक्ति योग्य है। इस पहल में कुल 907 लोगों का चयन किया गया है, जिनमें से 370 दलित हैं। ये सभी दलित महाकुंभ के पवित्र आयोजन के दौरान संत के रूप में प्रतिष्ठित होंगे।

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महाकुंभ में दलित संतों को मिलेगी विशेष जिम्मेदारी

इन नव-दीक्षित दलित संतों को महाकुंभ में विभिन्न पद और जिम्मेदारियाँ दी जाएंगी, जो समाज में उनकी भूमिका को मजबूत करेंगी। इनमें महामंडलेश्वर, मण्डलेश्वर, महंत, पीठाधीश्वर, श्रीमहंत, थानापति सहित कई महत्वपूर्ण पद शामिल होंगे। इससे दलित समाज के लोगों को अपने धर्म में समान रूप से सेवा और योगदान देने का अवसर मिलेगा, और उनके आत्मसम्मान में भी वृद्धि होगी।

संरक्षक स्वामी हरि गिरि का मार्गदर्शन और प्रेरणा

इस ऐतिहासिक पहल के पीछे अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के राष्ट्रीय महामंत्री स्वामी हरि गिरि का मार्गदर्शन भी है। उन्होंने ही स्वामी महेंद्रानंद गिरि को सनातन धर्म के प्रति यह महत्वपूर्ण कदम उठाने के लिए प्रेरित किया है। उनका मानना है कि दलितों को भी धर्म के प्रचार-प्रसार में वही सम्मान मिलना चाहिए जो अन्य संतों को मिलता है। उनके सानिध्य में ही यह पहल और भी प्रभावी और व्यापक बन रही है।

मौजगिरि आश्रम की प्रेरणा से बढ़ता दलित संत समाज

इससे पहले मौजगिरि आश्रम में करीब चार महीने पहले कैलाशानंद, जो कि दलित समुदाय से आते हैं, को महामंडलेश्वर का पद दिया गया था। यह कदम दलितों के उत्थान में एक महत्वपूर्ण प्रेरणा के रूप में देखा गया। स्वामी महेंद्रानंद गिरि ने बताया कि इसी तरह की प्रेरणा से अब 370 दलितों को महाकुंभ के दौरान संत दीक्षा दी जाएगी। यह पहल दलित समाज को धर्म की मुख्य धारा में शामिल करने का एक सार्थक प्रयास है और समाज में उनके योगदान को और सम्मानित करेगा।

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धर्म में समरसता का संदेश

महाकुंभ के दौरान दलित समाज को संत पदवी देने का निर्णय देशभर में चर्चा का विषय बन चुका है। इससे यह संदेश जाएगा कि धर्म किसी जाति विशेष का नहीं है, बल्कि सभी के लिए है। दलित समाज को संत समाज में शामिल कर उन्हें एक महत्वपूर्ण पहचान दी जा रही है, जिससे सामाजिक एकता और समरसता को बढ़ावा मिलेगा।

इस पहल से यह उम्मीद है कि आने वाले समय में समाज में जाति आधारित भेदभाव को कम करने में सहायता मिलेगी। 370 दलितों को संत पदवी देने का यह प्रयास सिर्फ धार्मिक ही नहीं, बल्कि सामाजिक समरसता की दिशा में भी एक बड़ा कदम माना जा रहा है। यह प्रयागराज के महाकुंभ में एक ऐतिहासिक अवसर बनेगा, जब दलित संत समाज में अपनी जगह और अधिकार को पहचानने के साथ ही सनातन धर्म में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने का अवसर प्राप्त करेंगे।

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